संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य एवं परमाणु शक्ति संपन्न देश अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस भी आज विश्वासपूर्वक यह दावा नहीं कर सकते कि उनकी वायु रक्षा प्रणाली अभेद्य है। ईरान और इजराइल के बीच हालिया युद्ध के नतीजों ने इस तरह के दावों की नींव हिला दी है। ईरान की मिसाइलों ने इजराइल की सबसे सुरक्षित माने जाने वाली वायु रक्षा प्रणाली में सेंध लगाकर दुनिया की महाशक्तियों को सुरक्षा संकट का बखूबी अहसास करा दिया है। इजराइल की रक्षा प्रणाली के कमजोर पड़ने से अमेरिका जैसे देशों की चिंता भी बढ़ गई है, क्योंकि अमेरिका में बनी थाड प्रणाली और इजराइल द्वारा अमेरिकी कंपनी बोइंग की मदद से विकसित किए गए एरो-3 की भी इस युद्ध में कड़ी परीक्षा हुई थी।
ईरान ने इजराइल के सैन्य ठिकानों पर हमला कर अमेरिकी सुरक्षा को चुनौती दी
अमेरिका और इजराइल गहरे रणनीतिक साझेदार हैं। अमेरिका की सैन्य क्षमता विश्व में सबसे व्यापक और तकनीकी रूप से उन्नत मानी जाती है। ईरान ने इजराइल के सैन्य ठिकानों और रिहाइशी इलाकों पर हमला करके अमेरिकी सुरक्षा को भी चुनौती दी है। कतर के अमेरिकी सैन्य अड्डे पर ईरानी मिसाइल हमले के सैन्य संदेश स्पष्ट हैं। वहीं, उत्तर कोरिया की आक्रामकता से अमेरिका पहले से ही चिंतित है। अत्याधुनिक हथियारों की होड़ के बीते सौ साल में आक्रामकता के साथ नियंत्रण और संतुलन की कूटनीति को कई बार देखा और परखा गया। वर्ष 1962 में क्यूबा का मिसाइल संकट अमेरिकी और सोवियत नेतृत्व के बीच शीत युद्ध का सबसे खतरनाक मोड़ था और विश्व परमाणु युद्ध की कगार पर खड़ा था।
हालांकि, समय रहते अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ के बीच इस संकट को सुलझा लिया गया और इससे तीसरे विश्व युद्ध का खतरा टल गया। लेकिन बहुध्रुवीय दुनिया को आकार देने के लिए कई देश अपने सुरक्षा कवच को मजबूत करने एवं सैन्य क्षमता को बढ़ाने को लेकर अरबों डालर खर्च कर रहे हैं।
अमेरिका, इजराइल, रूस, चीन, यूरोप और भारत जैसी सैन्य शक्तियां अपनी सुरक्षा के लिए वायु रक्षा प्रणाली पर निर्भर हैं। अमेरिका के पास मौजूद थाड यानी ‘टर्मिनल हाइ एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस मिसाइल सिस्टम’ को उसने कई सहयोगी देशों की सुरक्षा के लिए तैनात किया है। यह प्रणाली मध्यम रेंज की बैलिस्टिक मिसाइलों को उड़ान के शुरुआती दौर में ही गिराने में सक्षम है। अमेरिका की पैट्रियट प्रणाली क्रूज मिसाइलों और सामरिक बैलिस्टिक मिसाइलों से सुरक्षा प्रदान करती है। एस-300 और एस-400 रूस की एक लंबी दूरी की मिसाइल रोधी प्रणाली है, जिसे बैलिस्टिक मिसाइलों, विमानों और क्रूज मिसाइलों को रोकने के लिए तैयार किया गया है।
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चीन की एच क्यू-9 रक्षा प्रणाली रूसी एस-300 से प्रेरित है, जो बैलिस्टिक या क्रूज मिसाइलों सहित कई तरह के खतरों को रोक सकती है। वायु रक्षा प्रणाली एस-400 को भारतीय सेना ने सुदर्शन चक्र नाम दिया है। इसे मौजूदा समय में दुनिया की सबसे बेहतरीन वायु रक्षा प्रणाली कहा जा सकता है। आपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के हवाई हमलों से भारत का बचाव कर इसने अपनी श्रेष्ठता भी दिखाई है।
वहीं, इजराइल और ईरान के बीच युद्ध में दुनिया की बेहतरीन वायु सुरक्षा प्रणाली की परीक्षा हुई। इजराइल में आयरन डोम मिसाइल रोधी प्रणाली रडार के जरिए मिसाइलों और रोकेटों की पहचान व निगरानी करती है। इस सुरक्षा कवच ने हिजबुल्ला, हूती और हमास के मिसाइल और ड्रोन हमलों से कई बार बखूबी बचाव कर अपनी उपयोगिता को साबित किया है। लेकिन ईरान की कुछ बैलिस्टिक मिसाइलों ने आयरन डोम को भेद कर कई महत्त्वपूर्ण इमारतों को गंभीर नुकसान पहुंचाया है। आयरन डोम को विमान, ड्रोन और क्रूज मिसाइलों से किए जाने वाले हमलों से बचाव करने और उन्हें रोकने के लिए बनाया गया है। जबकि एरो-2 और एरो-3 को लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलों को रोकने के लिए तैयार किया गया है।
इन सबके बीच तुर्किये की स्टील डोम बहुस्तरीय वायु रक्षा प्रणाली पर भी चर्चा हो रही है। यह प्रणाली नेटवर्क केंद्रित होगी और एआइ के जरिए तुर्किये के हवाई क्षेत्र की रक्षा करेगी। दावा किया जा रहा है कि स्टील डोम में चार परतें होंगी, जो बहुत कम दूरी, कम दूरी, मध्यम दूरी और लंबी दूरी के खतरे से निपटेंगी। हालांकि, युद्ध के दौरान इसका परीक्षण कितना कारगर साबित होगा, इसका आकलन करना अभी मुश्किल है। वैसे दुनिया की सबसे बड़ी चिंता हाइपरसोनिक मिसाइल है, जिससे बचने का अभी तक कोई सुरक्षा कवच नहीं बन पाया है।
क्रूज मिसाइल धरती की सतह के नजदीक उड़कर कम दूरी तक मार करती है, जबकि बैलिस्टिक मिसाइल वायु मंडल से बाहर जाकर हजारों किलोमीटर दूर तक निशाना भेद सकती है। बैलिस्टिक मिसाइल का पता लगाने के लिए अमेरिका और रूस ने अंतरिक्ष में इंफ्रारेड सेंसर वाली उपग्रह प्रणाली विकसित की है। मगर, हाइपरसोनिक मिसाइल को पकड़ पाना आसान नहीं है। दावा किया जा रहा है कि चीन ने वर्ष 2021 में दो संभावित हाइपरसोनिक मिसाइलों का परीक्षण किया था, जिनमें एक परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है। हाइपरसोनिक मिसाइल राडार की पकड़ में भी नहीं आती है।
इससे पहले रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने वर्ष 2019 में यह घोषणा कर दुनिया को अचंभित कर दिया था कि रूस की एवनगार्द हाइपरसोनिक मिसाइल प्रणाली मौजूदा और भविष्य में आने वाली किसी भी मिसाइल रक्षा प्रणाली को मात दे सकती हैं।
परमाणु हथियारों से लैस ये मिसाइल आवाज की गति से बीस गुना तेजी से उड़ सकती है। वहीं, चीन ने एक ऐसी हाइपरसोनिक मिसाइल का परीक्षण कर दुनिया को चौंका दिया है, जो पृथ्वी की परिक्रमा करने के बाद लक्ष्य पर हमला कर सकती है। इससे अमेरिका भी चीन की जद में आ गया है। भारत और उत्तर कोरिया ने भी इस तकनीक पर आधारित मिसाइल बनाने में सफलता हासिल की है।
दूसरी ओर अपनी वायु रक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए कई देश भारी निवेश कर रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गोल्डन डोम मिसाइल रक्षा प्रणाली के एक डिजाइन को चुना है, जो उनके मुताबिक भविष्य की मिसाइल रक्षा प्रणाली होगी। ट्रंप का कहना है कि इसका लक्ष्य अमेरिका को अगली पीढ़ी के हवाई खतरों से लड़ने में सक्षम बनाना है।
अमेरिका अपनी गोल्डन डोम रक्षा प्रणाली पर एक सौ पचहत्तर अरब डालर का खर्च कर रहा है। इस प्रणाली के तहत अंतरिक्ष में ऐसे सेंसर और इंटरसेप्टर होंगे, जो हवाई हमलों के खतरों को रोक सकेंगे। इस समय दुनिया के सभी ताकतवर देशों की कोशिश है कि वे हवाई हमलों के प्रति बहुस्तरीय सुरक्षा प्रणाली की व्यवस्था करें। इस वर्ष मई में अमेरिका ने सऊदी अरब के साथ एक सौ बयालीस बिलियन डालर का रक्षा सौदा किया है, जिसे इतिहास का सबसे बड़ा हथियार सौदा करार दिया गया है।
जापान, आस्ट्रेलिया, तुर्किये और दक्षिण कोरिया जैसे कई देश अब मिसाइल रक्षा प्रणालियों में भारी निवेश कर रहे हैं। कतर और संयुक्त अरब अमीरात भी इस दौड़ में शामिल है। भविष्य में और भी कई देशों की सेनाएं मिसाइल रक्षा प्रणाली में निवेश करना चाहेंगी। लेकिन इससे गरीब, पिछड़े और विकासशील देशों में विकास कार्य अवरुद्ध होंगे। मिसाइल रक्षा प्रणाली बनाने में एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ के कारण विध्वंसक हथियारों का निर्माण और ज्यादा बढ़ेगा। अंतत: यह स्थिति मानव अस्तित्व के लिए भी एक बड़ा संकट खड़ा कर सकती है।