नागरिकता संशोधन विधेयक को लोकसभा में पेश किए जाने के साथ ही विपक्ष ने इसकी मंशा पर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। धर्म के आधार पर नागरिकता के प्रश्न पर बहस छिड़ गई है। विधेयक पर विचार करने के लिए बनी संयुक्त संसदीय समिति में इस बारे में आम सहमति नहीं बन पाई और विपक्षी दलों ने नागरिकता को धर्म से जोड़ने का विरोध किया। यह तर्क भी दिया गया कि यह विधेयक असम समझौते का भी उल्लंघन है, जिसके तहत 1971 के बाद भारत आने वाले लोगों को नागरिकता नहीं दी जा सकती। लेकिन संयुक्त संसदीय समिति में सत्ता पक्ष के सदस्यों का बहुमत होने के कारण उसकी रिपोर्ट को मंजूर कर लिया गया।
अंतरराष्ट्रीय सिद्धांत: नागरिकता के मुख्यत: दो सिद्धांत विश्व भर में हैं। पहला ज्यूस सैंग्यूनिस, जिसके मुताबिक नागरिकता नस्ल या रक्त संबंध के आधार पर नागरिकता दी जाती है। माता-पिता की नागरिकता के आधार पर नागरिकता देना इसी का रूप है। दूसरा ज्यूस सोलि, जमीन के आधार पर। यह एंग्लो-अमेरिकन सोच है। नागरिकता के इस सिद्धांत को मानने वाले देश अपनी भूमि पर पैदा होने वाले हर बच्चे को नागरिकता प्रदान करते हैं? एक भारतीय अमेरिका जाकर अमेरिकी नागरिक हो सकता है बशर्ते वह प्रक्रिया पूरी करे। लेकिन एक अमेरिकी दंपति की भारत में पैदा हुई संतान भारतीय नागरिक नहीं होगी। भारत पहले ज्यूस सोलि के आधार पर नागरिकता देता था, लेकिन अब यहां ज्यूस सैंग्यूनिस भी है। नागरिकता कानून 1955 के तहत भारत में जन्म लेने वाले बच्चों को भारतीय नागरिकता दी जाती थी।
संविधान में क्या है: संविधान सभा में नागरिकता संबंधी प्रावधानों पर चर्चा में सरदार वल्लभ भाई पटेल के भाषण का जिक्र आ रहा है। यह है, ‘आधुनिक दुनिया में राष्ट्र्नीयता के बारे में दो विचार हैं, एक व्यापक रूप से राष्ट्रीय स्तर पर आधारित है और दूसरा संकीर्ण राष्ट्रीयता है। दक्षिण अफ्रीका में हम वहां पैदा हुए भारतीयों के लिए दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रीयता का दावा करते हैं। संकीर्ण दृष्टिकोण रखना हमारे लिए सही नहीं है।’ इस पर अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद का जवाब है, ‘हम दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के लिए उस देश की राष्ट्रीयता का दावा न केवल जन्म से, बल्कि वहां बसने के कारण करते हैं।’
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 और 15(1) में नागरिकता और धर्म को लेकर विवेचना दी गई है। अनुच्छेद 14 विधि के समक्ष समता और विधियों का समान संरक्षण करने का अधिकार है। एक जैसी परिस्थितियों में एक सा कानून। अनुच्छेद 15(1) भी धर्म के आधार पर भेदभाव करने की इजाजत राज्य को नहीं देता।
क्या हैं तर्क और वितर्क: नागरिकता संशोधन विधेयक को विपक्षी दलों ने अल्पसंख्यक विरोधी ठहराया है। इसमें मुसलमानों का जिक्र न होने को लेकर सवाल उठ रहे हैं। जबकि, सरकार का कहना है कि जिन देशों से गैर-मुसलिम आबादी का पलायन भारत में हो रहा है, वहां मुसलमानों के खिलाफ धार्मिक प्रताड़ना नहीं होती है। विपक्ष ने संविधान की प्रस्तावना और नागरिकों को प्रदत्त मूल अधिकारों का हवाला देते हुए नागरिकता संशोधन विधेयक को संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताया है। सरकार का तर्क है कि संविधान के अनुच्छेद 11 और 14 में वर्णित समानता के अधिकार की अवहेलना नहीं हो रही।