हरियाणा और राजस्थान की तरह राजधानी दिल्ली में भी कई महत्त्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल हैं, लेकिन अनदेखी के चलते ‘सिंधु-सरस्वती सभ्यता’ से जुड़े ये टीले वर्तमान में खत्म होने के कगार पर हैं। ये पुरातात्विक टीले साहिबी नदी के किनारे हैं और इनकी संख्या दर्जनों में है। लेकिन इन पुरास्थलों के धूमिल होने की वजह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) व राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा इनका संरक्षण नहीं किया जाना है।

साथ ही साहिबी नदी के किनारे खेती करने वाले किसानों व स्थानीय लोगों को भी इनके प्रति जागरूक नहीं करना भी एक प्रमुख वजह है। मालूम हो कि ‘सिंधु-सरस्वती सभ्यता’ का अर्थ होता है वह सभ्यता जो सिंधु नदी व उसकी सहायक नदियों के किनारे पनपी हो।

हरियाणा में हड़प्पा स्थल राखीगढ़ी

साहिबी नदी के किनारे मिले पुरास्थलों को सबसे पहले पुरातत्वविद् और हरियाणा में प्रागैतिहासिक स्थलों की खुदाई में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले प्राध्यापक सूरजभान सिंह ने खोजा था, जिन्होंने हरियाणा में हड़प्पा स्थल राखीगढ़ी की खोज में भी अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने व उनके कई शोधार्थियों ने साहिबी नदी के किनारे बसे गांवों ढांसा, घुम्मनहेड़ा, जैतपुर, शिकारपुर, कांगनहेड़ी, छावला, ईसापुर, झडौदा कला, मुंढेला कला व नरेला में दर्जनों ‘सिंधु-सरस्वती सभ्यता’ के पुरास्थल खोजे थे।

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उनकी यह खोज विभिन्न शोध पत्रिकाओं में प्रकाशित भी की गई थी। जिनमें उन्होंने ढांसा में तीन पुरास्थल के टीले खोजने का दावा किया था। यहां से उन्हें उत्तर हड़प्पाकालीन व अन्य कई सभ्यताओं से जुड़े अवशेष प्राप्त हुए थे। लेकिन एएसआइ और राज्य पुरातत्व विभाग ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया, जिसके चलते कई दशकों तक जागरूकता के अभाव में लोग या तो यहां खेती कर रहे हैं या फिर नई कालोनियां भी काटी जा रही हैं।

दिल्ली विश्वविद्यालय के मुक्त शिक्षा विद्यालय (एसओएल) के इतिहास विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर चंद्रशेखर सिंह ने बताया कि वो इस पर लंबे समय से काम कर रहे हैं। लेकिन इन पुरास्थलों के हालात लगातार खराब होते चले जा रहे हैं। अगर जल्द ही एएसआइ व राज्य पुरातत्व विभाग इस ओर ध्यान नहीं देगा तो हम बेहद महत्त्वपूर्ण पुरातात्विक व ऐतिहासिक टीलों को खो देंगे। साहिबी नदी के संरक्षण के साथ ही सरकारों को चाहिए कि वो इन पुरास्थलों को भी संरक्षित करे और विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले शोधार्थियों को इससे जोड़े ताकि स्थानीय लोग इन पुरास्थलों का महत्व भी समझ सकें।