भारत सरकार ने देश में कोरोनावायरस संक्रमण के बढ़ते मामलों के बीच मार्च में ही लॉकडाउन का ऐलान कर दिया था। इसका सबसे बुरा असर प्रवासी मजदूरों पर पड़ा। बड़ी संख्या में यह वर्ग पैदल ही घरों को निकल गया। हालांकि, बाद में 1 मई से केंद्र सरकार ने श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के जरिए बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाया। सरकारी डेटा के मुताबिक, लॉकडाउन के दौरान देश में 4611 श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलीं। इसके जरिए 63 लाख 7 हजार लोग अपने घरों को भेजे गए। हालांकि सूत्रों के मुताबिक, इस दौरान 110 प्रवासियों की रेलवे परिसर में ही मौत हो गई।

राज्यों से मिले डेटा के मुताबिक, रेलवे परिसर में हुई 110 मौतों में कई के कारण अलग-अलग रहे। इनमें कुछ मौतें कोरोनावायरस और कुछ पहले की बीमारियों की वजह से हुई। सूत्रों का कहना है कि कुछ मौतों का आंकड़ा नहीं जोड़ा गया है, क्योंकि उनका शव रेलवे ट्रैक्स पर मिला था, जिसका मतलब है कि उन पर ट्रेन चढ़ गई थी।

केंद्र सरकार ने अब तक सुप्रीम कोर्ट समेत कई आधिकारिक फोरम पर कहा है कि श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में प्रवासी मजदूरों की मौत को रेलवे परिसर में खाने और पानी की कमी से नहीं जोड़ा जा सकता, क्योंकि इन ट्रेनों में खाना और पानी दोनों ही मुफ्त मुहैया कराए।

श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के संचालन के दौरान हुई मौतों को परिप्रेक्ष्य में रखा जाए, तो सूत्रों ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि 2019 से हर दिन औसतन 75 लोगों की रेलवे परिसर में मौत हुई थी। इनमें रेलवे ट्रैक को पार करने की दौरान ट्रेन की चपेट में आए लोगों और प्राकृतिक कारणों से मरने वाले लोगों को भी शामिल किया जाता है। इसके अलावा ट्रेन से गिरकर हुई मौतों और ट्रैक पर लगे खंभों से टकराकर हुई मौतों भी इसमें जोड़ी गई हैं। यह डेटा आमतौर पर राज्य की रेलवे पुलिस द्वारा जुटाया जाता है। हालांकि, 2019 में ट्रेन एक्सिडेंट से एक भी मौत नहीं हुई।