सरकार एक नया विधेयक लाना चाहती है जो सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों के खिलाफ ‘‘कदाचार और अक्षमता’’ संबंधी शिकायतों की जांच की वर्तमान प्रणाली में बदलाव की बात कहता है। न्यायिक मानक एवं जवाबदेही विधेयक को पूर्व में पूर्ववर्ती यूपीए सरकार द्वारा लाया गया था लेकिन 2014 में 15वीं लोकसभा के भंग होने के बाद यह निष्प्रभावी हो गया था । अब नरेंद्र मोदी सरकार विधेयक को कुछ बदलावों के साथ नए सिरे से लाना चाहती है ।

लॉ मंत्रालय के नोट में कहा गया है, ‘‘न्यायाधीशों में स्वतंत्रता, निष्पक्षता और जवाबदेही को समाहित करने के लिए किसी अधिदेश पर अविलंब विचार किया जाना चाहिए। एक संशोधित न्यायिक मानक एवं जवाबदेही विधेयक फिर से लाकर ऐसा किया जा सकता है ।’’ पिछले साल दिसंबर में लोकसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए कानून मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा ने कहा था, ‘‘न्यायिक मानक एवं जवाबदेही विधेयक निष्प्रभावी हो गया है…हम इस पर काम कर रहे हैं ।’’

उन्होंने कहा था कि कोई भी फैसला ‘‘संबंधित पक्षों से विमर्श के बाद’’ किया जाएगा। यूपीए सरकार ने विधेयक को हालांकि मार्च 2012 में लोकसभा ने पारित कर दिया था, इसके कुछ प्रावधानों को लेकर न्यायपालिका और न्यायविदों के विरोध के बाद राज्यसभा में इसमें कुछ बदलाव किए गए थे ।
निष्प्रभावी विधेयक में उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के खिलाफ कथित कदाचार और अक्षमता संबंधी नागरिकों की शिकायतों को देखने के लिए एक समग्र तंत्र की पैरवी की गई थी