रूस-यूक्रेन संघर्ष और इजराइल-फिलिस्तीन विवाद महाशक्तियों की भयंकर रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता से प्रेरित हैं। ऐसे में भारत के लिए अपने राष्ट्रीय हितों के अनुरूप संतुलित द्विपक्षीय संबंधों पर आधारित रणनीति पर आगे बढ़ते रहना ही बेहतर हो सकता है। भारत को अपनी सामरिक और आर्थिक प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए, इस जटिल वैश्विक स्थिति में संतुलित दृष्टिकोण पर बने रहने और स्थायी मित्रों पर भरोसा बनाए रखने की जरूरत है।
भारत और रूस के बीच कूटनीतिक और सामरिक संबंधों की प्रतिबद्धता का सुनहरा इतिहास रहा है। रूस के धुर विरोधी देश यूक्रेन में भारतीय प्रधानमंत्री की यात्रा को संतुलन की संभावनाओं से जोड़ा गया है, वहीं फिलिस्तीन-इजराइल संघर्ष में भी भारत की कूटनीति एक कदम आगे नजर आई। दरअसल, रूस-यूक्रेन संघर्ष और पश्चिम एशिया को लेकर भारतीय विदेश नीति का बदला हुआ दृष्टिकोण भारतीय हितों की दृष्टि से दूरगामी परिणाम देने वाले हो सकते हैं।
भारत ने रूस के साथ-साथ अमेरिका से भी सामरिक सहयोग बढ़ाया है, जो अभूतपूर्व है। भू-रणनीति की दृष्टि से भारत के लिए रूस और अमेरिका की समान आवश्यकता है और इसमें संतुलन बनाए रखना विदेश नीति के लिए असल चुनौती भी है। रूस-यूक्रेन संघर्ष में अमेरिका और यूरोप, यूक्रेन को आर्थिक और सामरिक मदद दे रहे हैं, जिससे पुतिन बेहद चिढ़े हुए हैं। प्रधानमंत्री मोदी और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की की द्विपक्षीय मुलाकात के दौरान, जेलेंस्की ने रूस की कड़ी आलोचना करने से परहेज नहीं किया और भविष्य में भारत से वैश्विक मंचों पर रूस का विरोध करने की अपेक्षा की।
वहीं, प्रधानमंत्री मोदी ने रूस और यूक्रेन के बीच बातचीत, संवाद और कूटनीति से समस्या के समाधान की जरूरत बताते हुए भारत द्वारा शांति के हर प्रयास में सक्रिय भूमिका निभाने का भरोसा दिया। प्रधानमंत्री मोदी की यूक्रेन यात्रा पर यूरोप और अमेरिका की भी नजर थी। उनकी रूस यात्रा को यूरोप और अमेरिका में संदेह की दृष्टि से देखा गया था। लिहाजा, उनकी यूक्रेन यात्रा को संतुलन की कूटनीति के तौर पर निरूपित किया गया।
रूस भारत का है पुराना सहयोगी
रूस हमारा पुराना मित्र और बड़ा सहयोगी रहा है, वह मध्य एशिया का सबसे बड़ा खिलाड़ी है। हमारे दुश्मन चीन की सीमाएं रूस को छूती हैं। पाकिस्तान की सीमा से भी रूस दूर नहीं है। ऐसे में, रूस से भारत की मित्रता को वैदेशिक संबंधों की दृष्टि से बेहद महत्त्वपूर्ण माना जाता रहा है। भारत-रूस संबंध, चीन पर दबाव बढ़ाने के लिए जरूरी समझे जाते थे, लेकिन अब स्थितियां बदल गई हैं। पिछले करीब दो वर्ष से रूस, यूक्रेन के साथ लड़ाई लड़ रहा है। इस बीच चीन, रूस के लिए एक महत्त्वपूर्ण सहयोगी की तरह सामने आया है। चीन और रूस की बढ़ती भागीदारी अमेरिका के साथ उनकी रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता से प्रेरित है। वहीं चीन और भारत के बीच सीमा पर गहरा तनाव है और चीन अंतरराष्ट्रीय सीमा रेखा का लगातार उल्लंघन करता रहा है।
चीन पर दबाव बढ़ाने के लिए भारत को रूस से मजबूत संबंधों की जरूरत है। चीन और रूस में मजबूत संबंधों के बाद भी भारत को यह समझना होगा कि ये दोनों देश औपचारिक सहयोगी नहीं हैं तथा ऐतिहासिक रूप से एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी रहे हैं। रूस में चीनी कंपनियों के बढ़ते प्रभाव से रूसी व्यापारी आशंकित हैं। वास्तव में मास्को और बेजिंग के संबंध अमेरिकी आधिपत्य को चुनौती देने की इच्छा से प्रेरित हैं। पुतिन और जिनपिंग लंबे समय से सत्ता में बने हुए हैं, इस स्थिति में बदलाव आते ही अमेरिका से संबंधों को लेकर परिस्थितियां बदल सकती हैं।
संतुलन बनाए रखना चाहता है अमेरिका
अमेरिका एशिया, अफ्रीका और यूरोप में शक्ति संतुलन बनाए रखना चाहता है। पिछले डेढ़ दशक में अमेरिका ने एशिया केंद्रित विदेश नीति को मजबूत किया है और उसकी आशाओं और रणनीति का मुख्य केंद्र भारत है। ओबामा, ट्रंप के बाद बाइडेन भी यह बेहतर समझ चुके हैं कि अमेरिका के वैश्विक प्रभाव को बनाए रखने के लिए किसी कीमत पर चीन, रूस और ईरान जैसे देशों के प्रभाव को सीमित करना होगा। इसीलिए वे नियंत्रण और संतुलन पर आधारित नई साझेदारियों को आगे बढ़ा रहे हैं, जिससे अमेरिका के सामरिक और राजनीतिक हित सुरक्षित हो सकें। अब भारत और अमेरिका के बीच न केवल सामरिक सहयोग मजबूत हो रहा है, बल्कि दोनों देश रक्षा, औद्योगिक सहयोग के प्रारूप पर भी निरंतर आगे बढ़ रहे हैं। हाल ही में भारत और अमेरिका ने एक नए रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते से दोनों देशों को एक-दूसरे की जरूरतों को पूरा करने के लिए रक्षा उपकरणों और पुर्जों की आपूर्ति में सहायता मिलेगी। ऐसे समझौते पहले भारत और रूस के बीच हुए थे।
चीनी प्रभाव के वैश्विक खतरों से निपटने के लिए अमेरिका हिंद प्रशांत क्षेत्र में संभावनाएं तलाश रहा है। इस क्षेत्र में चीन को घेर कर वह उसकी आर्थिक और सामरिक क्षमता को कमजोर करना चाहता है। उसे लगता है कि चीन को नियंत्रित करने के लिए एशिया को कूटनीति के केंद्र में रखना होगा। अमेरिका रणनीतिक भागीदारी के साथ आर्थिक और कारोबारी नीतियों पर आगे बढ़ना चाहता है। इसीलिए क्वाड के बाद अब अमेरिका ने ‘इंडो-पैसिफिक इकोनामिक फ्रेमवर्क’ की रणनीति पर आगे बढ़ने की बात कही है, जिसमें व्यापारिक सुविधाओं के साथ आपसी सहयोग बढ़ाना है।
चीन को रोकने के लिए क्वाड एक मजबूत रणनीतिक साझेदारी के तौर सामने आया है। क्वाड को लेकर चीन सख्त रहा है और वह इसे एशियाई ‘नाटो’ कहता रहा है। क्वाड की आलोचना रूस ने भी की थी, पर वह भारत की सामरिक चुनौतियों को जानता है।
लगातार बढ़ी है भारत की भागीदारी
तमाम विरोधाभासों के बावजूद रूस भारत और अमेरिका के मजबूत संबंधों से आशंकित नहीं हुआ है और उससे भारत की भागीदारी लगातार बढ़ी है। भारत और रूस संयुक्त राष्ट्र, जी-20, ब्रिक्स और एससीओ जैसे कई बहुपक्षीय मंचों पर निकटता से सहयोग करते हैं। दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंध साढ़े सात दशक से मजबूत और स्थिर बने हुए हैं। जबकि भारत और यूक्रेन के रिश्ते 1990 के दशक में बने। 1998 में ‘आपरेशन शक्ति’ के तहत भारत ने परमाणु परीक्षण किए थे, तब यूक्रेन ने दुनिया के पच्चीस देशों के साथ मिलकर उसका विरोध किया था। रूस ने जहां पाकिस्तान से संबंधों को लेकर सावधानी बरती, तो यूक्रेन पाकिस्तान को बड़ी संख्या में हथियार आपूर्ति करता है। कश्मीर को लेकर भी यूक्रेन कई बार वैश्विक मंचों पर पाकिस्तान के मत का समर्थन कर चुका है। इस प्रकार भारत की वैदेशिक कूटनीतिक संतुलन में रूस और अमेरिका से द्विपक्षीय संबंध महत्त्वपूर्ण है, लेकिन भारत को बहुपक्षीय संबंधों को बढ़ाने की कोशिशों से आपसी संबंधों में जटिलता उत्पन्न हो सकती है।
वहीं पश्चिम एशिया में भारत के आर्थिक और सामरिक हित चुनौतीपूर्ण रहे हैं। इजराइल भारत का सामरिक भागीदार है, जबकि खाड़ी के अन्य देश भारत की आर्थिक जरूरतों के लिए अपरिहार्य हैं। रूस-यूक्रेन संघर्ष और इजराइल-फिलिस्तीन विवाद महाशक्तियों की भयंकर रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता से प्रेरित हैं। ऐसे में भारत के लिए अपने राष्ट्रीय हितों के अनुरूप संतुलित द्विपक्षीय संबंधों पर आधारित रणनीति पर आगे बढ़ते रहना ही बेहतर हो सकता है। भारत को अपनी सामरिक और आर्थिक प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए, इस जटिल वैश्विक स्थिति में संतुलित दृष्टिकोण पर बने रहने और स्थायी मित्रों पर भरोसा बनाए रखने की जरूरत है।