रुस-यूक्रेन संकट पर भारत और अमेरिका का नजरिया अलग है। कई मौकों पर यह बात सामने आई है। रूस के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र में मतदान का मौका हो या कच्चा तेल व रक्षा खरीद का मसला। रणनीतिक एवं रक्षा खरीद के सवाल पर अमेरिका के कई बयान कूटनीतिक अंदाज में ठीक नहीं कहे जा सकते। इस लिहाज से अमेरिका के डिप्टी एनएसए दलीप सिंह के बयानों की काफी चर्चा रही। ऐसे माहौल में वाशिंगटन में भारत और अमेरिका के बीच 2+2 वार्ता का आयोजन किया गया। भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और रक्षा मंत्री लायड आस्टिन के साथ संयुक्त मंच पर बातचीत की।
कैसे रहे संकेत
पश्चिमी देशों द्वारा रूस को अलग-थलग करने की अभूतपूर्व कोशिशों के बावजूद चीन और भारत अपने-अपने तरीकों से रूस से जुड़ाव बनाए हुए हैं। साथ ही भारत अमेरिका के साथ अपने संबंधों का कूटनीतिक निबाह किए जा रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के कार्यकाल में यह पहली 2+2 स्तर की बातचीत थी। इससे पहले 2+2 स्तर की आखिरी बातचीत अक्तूबर 2020 में नई दिल्ली में हुई थी।
2021 में इस प्रक्रिया में खलल की वजह से ऐसी बातचीत का आयोजन नहीं हो सका। अब दोनों देशों के बीच इस प्रारूप में शीर्ष स्तर पर बातचीत बहाल करने का मौका मिला। सितंबर 2021 में दोनों देशों के अधिकारियों के बीच वैकल्पिक तौर पर वार्ताएं आयोजित की गई थीं। 2+2 के प्रारूप में बातचीत की बहाली से द्विपक्षीय रिश्तों में गति लाने और व्यापक राजनीतिक मिज़ाज को लेकर सकारात्मक संकेत मिले हैं।
यूक्रेन संकट की छाया
बातचीत के मौजूदा दौर पर यूक्रेन संकट की छाया दिखी। हालांकि, 2+2 वार्ताओं ने दोनों पक्षों को इस संकट से परे, आगे के मसलों पर मंथन का मौका दिया। पश्चिमी देशों लारा रूस को अलग-थलग करने की अभूतपूर्व कोशिशों के बावजूद चीन और भारत (दुनिया की दो सबसे बड़ी र्थव्यवस्थाएं) अपने-अपने तरीकों से रूस से जुड़ाव बनाए हुए हैं।
अहम बात ये है कि जर्मनी जैसे कुछ यूरोपीय देशों ने भी ऊर्जा व अन्य आयात जारी रखते हुए रूस के साथ अपने संबंध बरकरार रखे हैं। रूस और यूक्रेन के बीच की जंग को लेकर भारत और अमेरिका के बीच कुछ मतभेद जरूर दिखे, लेकिन वे कूटनीतिक संबंधों के आड़े नहीं आए। दोनों ही पक्षों ने शीर्ष स्तर पर इस मसले पर अपना पक्ष रखकर अपनी-अपनी स्थिति स्पष्ट की। रूस के साथ भारत ने अपने रिश्तों को लेकर साफगोई से बात की।
अमेरिकी रणनीति
वार्ता में कारोबारी और रक्षा संबंधों को लेकर अहम सहमति बनी है। हालांकि, इस बात के भी संकेत हैं कि अमेरिका की ओर से भारत पर रूस के खिलाफ रुख अपनाने और मास्को पर अपनी निर्भरता कम करने को लेकर दबाव डालने की कोशिशें जारी रहेंगी। इस दिशा में अमेरिका खासतौर से दो प्रकार के रणनीतिक लक्ष्यों को लेकर आगे बढ़ेगा- पहला अल्पकालिक और दूसरा दीर्घकालिक।
फौरी तौर पर अमेरिका की ओर से भारत द्वारा रूस से सांकेतिक तौर पर तेल के आयातों में कटौती किए जाने पर बल दिया जाएगा। अमेरिका ने आधिकारिक तौर पर ऐसी बात कही है। इसी प्रकार भारत द्वारा रूसी रक्षा उपकरणों पर हो रहे निवेश को लेकर अमेरिका की एक दीर्घकालिक इच्छा भी है।
दोनों को साधने की कोशिश
रूस शुरू से ही भारत का दोस्त और प्रमुख व्यापारिक साझेदार रहा है। दूसरी ओर, भारत ने अमेरिका के साथ भी अपने द्विपक्षीय संबंधों का ख्याल रखा। एक महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने दो बार बात की। व्यापारिक और रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत बनाने पर चर्चा की। दोनों देशों के द्विपक्षीय एजंडे में अब रक्षा, वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य, आर्थिक और वाणिज्यिक सहयोग, विज्ञान और तकनीकी, स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु वित्त के साथ-साथ आम जनता के स्तर के ताल्लुकात जैसे मसले शामिल हैं।
2+2 वार्ता में हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर जोर रहा। दोनों ही देशों ने मुक्त और खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर प्रतिबद्धता दोहराई है। साथ ही हिंद-प्रशांत आर्थिक ढांचे को गति देने पर भी बातचीत हुई। इसके तहत डिजिटल अर्थव्यवस्था और इलाके में जलवायु और ऊर्जा क्षेत्र में हो रहे बदलावों के हिसाब से रुख तैयार किए जाने का लक्ष्य रखा गया है। साथ ही आपूर्ति श्रृंखलाओं में मजबूती लाने, पारदर्शिता बढ़ाने और सूचनाओं को साझा करने पर भी जोर दिया गया है। ‘बिल्ड बैक बेटर’ कार्यक्रम के तहत हिंद-प्रशांत में बुनियादी ढांचे से जुड़ी खामियों को दूर करने पर भारत और अमेरिका गंभीरता से चर्चा कर रहे हैं।
रूस महत्त्वपूर्ण, अमेरिका भी जरूरी
रूस भारत का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता है। 2020 में भारत ने अपनी कुल हथियार का करीब 50 फीसद रूस से खरीदा था। 2018 से 2021 के दौरान भारत-रूस के बीच रक्षा व्यापार 15 अरब डालर यानी 1.12 लाख करोड़ रुपए का रहा। दोनों देशों का लक्ष्य 2025 तक इसे बढ़ाकर 30 अरब डालर यानी 2.2 लाख करोड़ रुपए करने का है।
भारत-अमेरिका का कुल व्यापार 2019 तक 146 अरब डालर यानी 10 लाख करोड़ रुपए था, जोकि भारत- रूस व्यापार का करीब 15 गुना है। अमेरिका रूस के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा रक्षा सहयोगी है। अमेरिका के साथ भारत का रक्षा व्यापार 21 अरब डालर यानी 1.56 लाख करोड़ रुपए पहुंच गया है।
क्या कहते हैं जानकार
क्वाड समूह में भारत को लेकर समर्थन है। भले ही भारत की रूस के साथ करीबियां कुछ समय से अमेरिका को परेशान करती रही हैं, लेकिन यूक्रेन को क्वाड की मदद में भारत की भागीदारी रही है। इसको लेकर अमेरिका को भी नरमी अख्तियार करनी
पड़ रही है।
- जितेंद्र नाथ मिश्र, पूर्व राजनयिक
अमेरिका जिस रणनीतिक साझेदार से ये चाहता है कि वह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के जवाब के रूप में खड़ा हो, उसे रूसी हथियार या तेल खरीदने के लिए प्रतिबंधों के जरिए कमजोर करना अमेरिका के लिए
फायदेमंद नहीं है।
- अनिल त्रिगुणायत,मास्को में भारत के पूर्व राजदूत