संयुक्त राष्ट्र की ओर से जारी सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) की दसवीं रपट में पाया गया है कि सतत विकास के लिए वर्ष 2030 का एजंडा अपनाने से वैश्विक स्तर पर लाखों लोगों के जीवन में सुधार आया है। मगर अभी भी बहुत से लक्ष्यों में प्रगति अपर्याप्त है। चिंता की बात है कि सभी लक्ष्यों को पाने के लिए निर्धारित पंद्रह वर्ष में से दस वर्ष बीत गए हैं और अब सिर्फ पांच वर्ष रह गए हैं। जबकि, विश्व के कई देश अपने लक्ष्यों को पाने से अभी बहुत दूर हैं। केवल 35 फीसद लक्ष्य ही सही रास्ते पर चल रहे हैं। इस तरह वैश्विक स्तर पर प्रगति अभी पटरी पर नहीं है। सवाल यह है कि अगर लक्ष्यों को पाने की गति ऐसी ही रही तो क्या वर्ष 2030 तक वैश्विक स्तर पर इन्हें हासिल किया जा सकता है!

भारत की बात करें तो कुल 193 देशों में 17 सतत विकास लक्ष्यों को पाने में भारत ने निर्धारित अधिकतम 100 अंकों में से 66.95 अंक प्राप्त कर 99वां स्थान पाया है। पिछले वर्ष 2024 में इन लक्ष्यों की प्रगति में भारत 109वें और 2023 में 112वें स्थान पर था। यानी इस वर्ष भारत ने महत्त्वपूर्ण प्रगति करते हुए वैश्विक रैंकिंग में 100 देशों की श्रेणी में जगह बना ली है।

हालांकि, भारत को वर्ष 2030 तक सभी लक्ष्य प्राप्त करने के लिए अभी काफी प्रयास करने होंगे। क्योंकि, कई क्षेत्रों में भारत पिछड़ा हुआ है। भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश 114वें और पाकिस्तान 140वें स्थान को छोड़ दिया जाए तो चीन 49वें, भूटान 74वें और नेपाल 85वें स्थान पर हैं। यही नहीं, लक्ष्यों की प्रगति में समुद्री पड़ोसी देश मालदीव 53वें और श्रीलंका 93वें स्थान के साथ भारत से आगे हैं।

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संयुक्त राष्ट्र का उच्च स्तरीय राजनीतिक फोरम (एचएलपीएफ) हर साल न्यूयार्क में आयोजित होता है, जिसमें सतत विकास लक्ष्यों की प्रगति पर समीक्षा की जाती है। गत 14 से 23 जुलाई के बीच संपन्न हुए दस दिवसीय सम्मेलन के पहले दिन जारी हुई दसवीं रपट में कहा गया है कि स्वास्थ्य, शिक्षा, ऊर्जा और ‘डिजिटल कनेक्टिविटी’ में विश्व स्तर पर प्रगति से लाखों लोगों के जीवन में सुधार तो आया है, लेकिन वर्ष 2030 तक लक्ष्यों को पूरा करने की गति धीमी है। अभी केवल 35 फीसद लक्ष्य ही सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं और 31 फीसद लक्ष्यों में मामूली प्रगति है। जबकि 17 फीसद में ठहराव आया हुआ है और 18 फीसद लक्ष्य तो बहुत पीछे चल रहे हैं।

एसडीजी संकल्प के दस साल बाद एजंडा 2030 को कई नई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है। विकासशील देशों में विकास के लिए चार हजार अरब डालर की कमी है। स्थिति यह है कि वर्ष 2025 की सतत विकास लक्ष्य रपट में किसी भी देश ने अपने सतत विकास लक्ष्यों में सौ फीसद लक्ष्य प्राप्त करने में अभी तक सफलता नहीं पाई है।

सतत विकास लक्ष्यों के संकल्प के इतिहास में जाएं तो अब से दस वर्ष पहले 25 सितंबर 2015 को न्यूयार्क में संपन्न संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन में पूरी दुनिया के राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों ने विश्व स्तर पर आर्थिक सामाजिक तथा पर्यावरणीय विकास के विभिन्न आयामों को संतुलित करने के प्रयास को लेकर सत्रह वैश्विक लक्ष्यों और इनसे जुड़े 169 विशिष्ट लक्ष्यों को अपनाया था।

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इन लक्ष्यों में गरीबी उन्मूलन, शून्य भूख, अच्छा स्वास्थ्य और कल्याण, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, लैंगिक समानता, स्वच्छ जल और स्वच्छता, सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा, अच्छा काम और आर्थिक विकास, उद्योग नवाचार एवं बुनियादी ढांचे, असमानताओं में कमी, टिकाऊ शहर और समुदाय, जिम्मेदार उपभोग और उत्पादन, जलवायु कार्रवाई, पानी के नीचे जीवन, जमीन पर जीवन, शांति न्याय और मजबूत संस्थाएं एवं साझेदारियां शामिल हैं। साथ ही इन लक्ष्यों को एक जनवरी 2016 से 2030 तक पंद्रह वर्षों में पूरा करने के लिए सभी देशों ने प्रतिबद्धता भी जताई थी। तब से इन सत्रह लक्ष्यों को प्राप्त करने में प्रत्येक देश की प्रगति के तौर पर प्रतिवर्ष संयुक्त राष्ट्र की ओर से रपट जारी की जाती है। लेकिन चिंता की बात है कि अब सिर्फ पांच वर्ष रह गए हैं और कई देश इन लक्ष्यों को पाने में किए गए संकल्प से काफी पीछे हैं।

दुनिया भर में काफी उथल-पुथल हो रही है। एक तरफ रूस और यूक्रेन युद्ध चल रहा है, तो दूसरी तरफ इजराइल और गाजा के अलावा ईरान, सीरिया आदि में युद्ध जैसी वैश्विक चुनौतियों के बावजूद कई लक्ष्यों में वृद्धि हुई है। जैसे एचआइवी संक्रमण में लगभग 40 फीसद की गिरावट आई है। मलेरिया की रोकथाम से 1.27 करोड़ लोगों की जान बच पाई। विश्व की आधी से अधिक जनसंख्या तक सामाजिक सुरक्षा पहुंच गई है। वर्ष 2023 तक विश्व की 92 फीसद आबादी को बिजली की आपूर्ति की जा चुकी है।

वर्ष 2015 में 40 फीसद लोग इंटरनेट का उपयोग करते थे, जो 2024 में 68 फीसद तक हो गया है। यह रपट कई चुनौतियों की ओर भी ध्यान खींचती है। इनमें 80 करोड़ से अधिक लोग अभी भी गरीबी में गुजर-बसर कर रहे हैं। विश्व के करोड़ों लोगों को सुरक्षित पेयजल, स्वच्छता और स्वास्थ्य सेवाएं नहीं मिली हैं। जलवायु परिवर्तन का भी काफी प्रभाव है। 2024 विश्व का सबसे गर्म वर्ष रहा, जिससे तापमान पूर्व औद्योगिक स्तर से 1.55 डिग्री अधिक हो गया। वैश्विक शरणार्थी आबादी भी बढ़ रही है। विश्व में 1.12 अरब लोग बुनियादी सेवाओं के बिना झुग्गी-झोपड़ियां या अस्थायी बस्तियों में रहते हैं।

लक्ष्यों में प्रगति की बात की जाए तो वर्ष 2012 और 2024 के बीच पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में बौनापान 26.4 फीसद से घटकर 23.2 फीसद रह गया है। वैश्विक मातृ मृत्यु दर एक लाख जीवित जन्मों पर 228 से घटकर 197 हुई है। जबकि पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर में 16 फीसद की कमी आई है। भेदभावपूर्ण कानून को हटाने और लैंगिक समानता ढांचे को स्थापित करने में सकारात्मक कानूनी सुधार लागू हुए हैं।

नवीकरणीय ऊर्जा में तेजी से वृद्धि के साथ ऊर्जा स्रोत बढ़े हैं। मोबाइल ब्रॉडबैंड की पहुंच वैश्विक जनसंख्या के 51 फीसद तक पहुंच गई है। कई देशों ने अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में उल्लेखनीय प्रगति की है। 45 देशों ने सार्वभौमिक बिजली तक पहुंच बनाई और 54 देशों ने 2024 के अंत तक कम से कम एक रोग का उन्मूलन किया। लेकिन रपट में कई चुनौतियों से निपटने और लक्ष्यों को प्राप्त करने में प्रगति लाने के लिए तत्काल बहुपक्षीय करवाई और वित्तीय सुधार लाने का आह्वान भी किया गया है, क्योंकि अधिकतर लक्ष्य 40 से 42 फीसद से नीचे हुए हैं।

भारत हर वर्ष अपनी वैश्विक रैंकिंग में सुधार ला रहा है। गरीबी उन्मूलन, स्वास्थ्य सेवाओं और स्वच्छ ऊर्जा सहित कई क्षेत्रों में काफी प्रगति हुई है। मगर अभी भारत को भी अपने लक्ष्यों को पाने में तेजी लानी होगी। दुनियाभर में संघर्ष, जलवायु परिवर्तन और वित्तीय बाधाएं सतत विकास लक्ष्यों तक पहुंचने में मुख्य तौर पर दिक्कतें पैदा कर रहीं हैं। गरीबी, भुखमरी, असमानता, जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण, शांति और न्याय सबसे बड़ी वैश्विक चुनौतियां हैं। विश्वस्तर पर बहुपक्षीय सुधार, विकास के लिए वित्तीय संसाधनों को जुटाने के प्रयास करने होंगे और आपसी संघर्षों को दूर करना होगा। वित्त संघर्षों में जो खर्च हो रहा है, उस धनराशि को पर्यावरणीय चुनौतियों और सतत विकास की योजनाओं में लगाने से कई लक्ष्यों को प्राप्त करने में आसानी होगी।