विनोद के शाह
देश में प्रतिवर्ष सड़क दुर्घटनाओं और उनमें होने वाली मौतों की संख्या बढ़ रही है। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट 2022 के अनुसार देश में कुल चार लाख इकसठ हजार 312 सड़क दुर्घटनाओं के मामले स्थानीय पुलिस थानों में दर्ज हुए थे। इन हादसों में एक लाख अड़सठ हजार 491 लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा था।
2021 की तुलना में सड़क दुर्घटना 11.9 फीसद, इसमें मृत्यु 9.3 फीसद और स्थायी अपंगता 15.3 फीसद की दर से बढ़ी है। राष्ट्रीय राजमार्ग और एक्सप्रेस हाइवे पर दुर्घटना दर 36.2 फीसद और राज्य मार्गों पर 39.4 फीसद है। इन दुर्घटनाओं में मरने वाले 83.3 फीसद अपने परिवार को पालने वाले कामकाजी लोग थे।
संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक घोषणा पत्र 2015 में, जिस पर भारत ने भी दस्तखत किए हैं, 2030 तक सभी देशों को सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाकर इसमें होने वाली मौतों में पचास फीसद की कमी लाने का संकल्प है। इसके अनुरूप विश्व के 108 देश अब तक सड़क दुर्घटनाओं में दस फीसद तक कमी लाने का प्रयास कर रहे हैं, जबकि इनमें शामिल दस देश इस अवधि में पचास फीसद की कमी का लक्ष्य हासिल कर चुके हैं। इसके विपरीत भारत में सड़क दुर्घटनाएं प्रतिवर्ष दस फीसद की दर से बढ़ रही हैं।
भारत सड़क हादसों के मामले में दुनिया में तीसरे स्थान पर है। प्रतिवर्ष सड़कों पर वाहनों में इजाफा, अतिक्रमण में सिकुड़ती सड़कें, शून्य ‘फिटनेस’ और जुगाड़ से चलते वाहन देश में चुनौती बन चुके हैं। वाहन उद्योग की एक अध्ययन रपट में 2030 तक भारत की सड़कों पर दौड़ने वाले वाहनों की संख्या आज के मुकाबले दोगुनी हो चुकी होगी।
भारत में जिस तेजी से सड़कों का विकास हो रहा है, उसी के अनुरूप सड़क दुर्घटनाओं में वृद्धि भी हो रही है। सड़कों के निर्माण में सरकार की प्राथमिकता गंतव्य समय को कम करने की ही रहती आई है। सड़क सुरक्षा लेखाजोखा में भी सिर्फ सड़क निर्माण संबंधी गुणवत्ता को परखा जाता है, जबकि वैश्विक मापदंड के मुताबिक सर्वोच्च प्राथमिकता सड़क दुर्घटनाओं की संभावना को न्यूनतम करते हुए मृत्यु दर को शून्य स्तर पर लाने की होनी चाहिए।
शून्य दुर्घटना ‘डिजाइन’ के आधार पर ही मार्ग निर्माण की मंजूरी का विधान देश में होना चाहिए। सड़कों के निर्माण में घुमावदार मोड़ों को न्यूनतम करते हुए, लंबी दूरी तक दृश्यता स्पष्ट होनी चहिए। मगर इसके विपरीत, देश के राजमार्ग सहित राष्ट्रीय मार्गों पर स्थान-स्थान पर घुमाव, उतार-चढ़ाव दिखाई देते हैं।
राष्ट्रीय राजमार्गों के नजदीक घनी बस्तियां, सड़कों के किनारे अतिक्रमण दुर्घटना के बड़े कारण रहे हैं। देश में सड़क दुर्घटना में मरने वाली सर्वाधिक संख्या पैदल राहगीरों और दुपहिया चालकों की है। दुर्घटना आंकड़ों में 40.7 फीसद संख्या दुपहिया चालकों की थी। 16.9 फीसद पैदल यात्री भारी वाहनों की चपेट में आए।
घायलों की मदद और सड़क निगरानी के लिए जनसंख्या के आधार पर देश में राजमार्ग पुलिस के गठन और त्वरित चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय मार्गों पर टोल नाकों की संख्या और वाहन निकासी दर अधिक रखने के बावजूद इसमें नागरिक सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं दी जाती। सड़क परिवहन नियमों के अनुपालन में प्रशासनिक शिथिलता देखी जाती है।
देश में सड़क दुर्घटना में चालीस फीसद मौतों की मुख्य वजह घायलों को समय पर प्राथमिक उपचार न मिल पाना है। शासकीय अस्पतालों की लंबी दूरी, टक्कर मारने के बाद दोषी चालक का घायल को छोड़कर भाग जाना, बड़े कारण हैं। सड़क दुर्घटनाओं में देश की पुलिस भारतीय दंड संहिता की धारा 279, 337 और 338 के तहत मामले दर्ज करती है। इसमें आरोपी को तुरंत पुलिस थाने से ही जमानत दे दी जाती है।
मामला अदालत में जाने पर भी छह माह की सजा या जुर्माना राशि पर मामला समाप्त हो जाता है। मौत होने की स्थति में घारा 304ए के तहत आरोपी को दो साल की सजा होती है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के 2022 के आंकड़ों में मात्र 47.9 फीसद प्रकरणों में आरोपियों पर अपराध सिद्ध हो पाया है। सड़क दुर्घटनाओं में आरोपियों को सजा मिलने की दर पचास फीसद के आसपास ही रहती आई है। यानी कि पचास फीसद टक्कर मारने वाले चालक आसानी से बरी हो जाते हैं।
सड़क दुर्घटनाओं की पुलिस विवेचना में घटना स्थल पर सड़क की स्थिति, दुर्घटना में शामिल वाहनों की ‘फिटनेस’ आदि का हवाला नहीं दिया जाता है। जबकि उच्चतम न्ययालय ने अनेक बार विवेचना में इन सभी स्थितियों का समावेश करने को कहा है। ‘हिट ऐंड रन’ के मामलों में गंभीर रूप से घायल व्यक्ति के पास अगर मुफ्त इलाज वाला आयुष्मान कार्ड या चिकित्सा बीमा नहीं है, तो इलाज का खर्च न केवल घायल को वहन करना पड़ता है, बल्कि मृत्यु की स्थिति में उसके परिवार को कोई आर्थिक मदद भी नहीं मिल पाती है।
देश में सड़क हादसों का शिकार होने वाले अठारह से पैंतालीस वर्ष आयुवर्ग के 66.5 फीसद युवा हैं। इनमें मरने वालों में 83.4 फीसद लोग कामकाजी वर्ग के थे। इन हालात में मृतक का परिवार गंभीर आर्थिक संकट में पहुंच जाता है, उसके बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो जाता है। कामकाजी और युवा मौतों से देश की जीडीपी में प्रतिवर्ष छह फीसद का नुकसान भी होता है।
मोटर वाहन दुर्घटना अधिनियम के उपबंध 104 (2) में ‘हिट ऐंड रन’ प्रकरण में दोषी चालक की कुछ मानवीय जिम्मेदारी तय करने के साथ दंड का विधान किया गया है। मगर इसमें सड़क हादसों में घायलों और मृतक के परिवारों को मुफ्त इलाज तथा पोषण योग्य आर्थिक मदद का विधान नहीं है। मृतक के परिवार को दो लाख और घायल को मात्र पचास हजार रुपए की आर्थिक मदद महंगाई के इस दौर में उचित नहीं है।
सड़क की गलत ‘डिजाइन’ और सड़कों पर अतिक्रमण, सड़क किनारे खड़े वाहनों की वजह से होने वाले हादसों में घायल और पीड़ित परिवार को आर्थिक मुआवजे के प्रावधान में भी सरकार नाकाम रही है। देश के कृषि प्रधान राज्य पंजाब, हरियाणा, मप्र, छत्तीसगढ़, उप्र में सड़कों पर हादसे की मुख्य वजह कृषि माल ढुलाई में प्रयुक्त ट्रैक्टर ट्राली है। रात के समय ट्राली में लाल बत्ती की कोई व्यवस्था नहीं होती है। ग्रामीण क्षेत्रों से गुजरने वाले राष्ट्रीय और राज्य मार्गों पर निरंतर बड़े हादसों के बाद भी सरकार ने इसमें बदलाव पर ध्यान नहीं दिया है।
देश में शराब और नशीले पदार्थों का सेवन कर वाहन चलाते हुए 1.9 फीसद दुर्घटनाएं होती हैं। मगर राज्यों की पुलिस सख्ती करने में नाकाम दिखाई देती है। उच्चतम न्यायालय की रोक के बाद राष्ट्रीय एवं राजमार्ग पर स्थित शराब की दुकानें भले हटाई गई हैं, लेकिन इन सड़कों पर लगे व्यावसायिक संकेतक शराब की दुकान की दूरी और पहुंच मार्ग का प्रदर्शन करते दिखाई देते हैं।
2021 में सीट बेल्ट न लगाने की वजह से 39,231 लोग दुर्घटनाग्रस्त हुए, जबकि बगैर हेलमेट 93,763 लोग घायल हुए। स्वयं की सुरक्षा में लापरवाही और परिवहन पुलिस की अनदेखी देश में सड़क सुरक्षा कानून से खिलवाड़ के संकेत हैं। जिम्मेदार नागरिक और संगठन न्यायालयों में जनहित याचिकाएं दायर कर सरकार से कानून का अनुपालन कराने की मांग करते रहे हैं। मगर अदालती आदेश पर एकाध हफ्ते की सख्ती के बाद उसे हवा में उड़ा दिया जाता है। बिना प्रशासनिक सख्ती और सड़क निर्माण में दुर्घटनारहित तकनीक का समावेश किए, सड़क दुर्घटनाओं में कमी ला पाना मुश्किल है।