पिछले कुछ सालों से भारत और पाकिस्तान के संबंध पटरी से उतरे हुए हैं। दिल्ली बातचीत को फिर से शुरू करने के लिए आतंक मुक्त माहौल पर जोर देती है। वहीं, दूसरी ओर ऐसा लगता नहीं है कि पाकिस्तान फिर से वार्ता शुरू करने के लिए उत्सुक है। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने भारत के साथ बातचीत से इंकार कर दिया था क्योंकि वह चाहते थे कि दिल्ली कश्मीर में उन संवैधानिक बदलावों को उलट दे जो अगस्त 2019 में पेश किए गए थे।

पाकिस्तान भारत शांति वार्ता

अंग्रेजी वेबसाइट इंडियन एक्सप्रेस पर छपे सी. राजामोहन के ओपिनियन के अनुसार, नवाज शरीफ की मुस्लिम लीग और आसिफ अली जरदारी की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी सहित वर्तमान सरकार के कई बड़े नेताओं ने पिछले तीन दशकों में कई बार भारत के साथ शांति वार्ता के लिए गंभीर प्रयास किए हैं लेकिन वे तत्कालीन सेना नेतृत्व द्वारा खारिज कर दिए गए थे। वहीं, नए सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर के सामने फिलहाल बहुत सारी घरेलू समस्याएं हैं।

सफल वार्ताओं को औपचारिक समझौते में नहीं बदल पाए भारत-पाकिस्तान

भारत-पाकिस्तान के बीच सफल वार्ताओं को भी औपचारिक समझौते में बदलने की अनिच्छा भी दोनों देशों के संबंधों के रास्ते में एक रोड़ा है। विभाजन के समय और उसके बाद से दोनों पक्षों के बीच अनगिनत शिकायतें द्विपक्षीय जुड़ाव पर भारी पड़ी हैं। दूसरी ओर, व्यक्तियों और नागरिक समाज के बड़े वर्गों के स्तर पर असाधारण पारस्परिक सद्भावना है। भारतीय राजनयिक सतिंदर लांबा, जिनका परिवार विभाजन के समय पेशावर से चला गया था, द्विपक्षीय कूटनीति की नकारात्मक और सकारात्मक दोनों पक्षों के साथ पारिचित थे।

जनरल अशफाक परवेज कयानी शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के इच्छुक नहीं थे

2004 और 2007 के बीच लांबा ने बातचीत की शुरुआत की उम्मीद जताई। जनवरी 2014 में प्रधानमंत्री के रूप में अपनी आखिरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में मनमोहन सिंह ने खेद व्यक्त किया कि पाकिस्तान में राजनीतिक अशांति के कारण समझौता नहीं किया जा सका। हालांकि, बातचीत की संभावनाओं को खत्म करने के लिए कई कारक जिम्मेदार थी। पाकिस्तान की ओर जनरल अशफाक परवेज कयानी जो जनरल मुशर्रफ के उत्तराधिकारी थे, वह शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के इच्छुक नहीं थे। जनरल मुशर्रफ के पतन ने सीमा पार आतंकवाद को बढ़ते भी देखा। नवंबर 2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों के बाद पाकिस्तान के साथ शांति वार्ता के लिए भारत में सार्वजनिक समर्थन में लगातार कमी आई।

कश्मीर के अलावा, दिल्ली और इस्लामाबाद के बीच सियाचिन विवाद, व्यापार संबंधों को आसान करने, सीमा पार ऊर्जा और बिजली व्यापार, पर्यटन के विस्तार और लोगों से लोगों के बीच संपर्क पर समझौते के करीब आए। हालांकि, दोनों पक्ष उन्हें ठोस परिणामों में बदलने में विफल रहे। जिसके बाद से स्थिति और खराब हो गई है। फिर भी, जब भारत और पाकिस्तान वार्ता की मेज पर लौटेंगे, तो पुराने फॉर्मूले पर वापस जाने की कोई संभावना नहीं है।

भारत अब पाकिस्तान के साथ संबंधों की शर्तों को बदलना चाहता है

भारत अब पाकिस्तान के साथ संबंधों की शर्तों को बदलना चाहता है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि भारत और पाकिस्तान के बीच शक्ति संतुलन दिल्ली के पक्ष में बदलता रहता है। आज भारतीय अर्थव्यवस्था पाकिस्तान से 10 गुना बड़ी है। पाकिस्तान में व्याप्त आर्थिक असंतुलन, आंतरिक राजनीतिक सामंजस्य को बहाल करने और क्षेत्रीय सहयोग की दिशा में अपनी विदेश नीति को फिर से स्थापित करने में असमर्थता इस असंतुलन को बढ़ा रही है। फिलहाल, पाकिस्तान के लिए भारत के साथ समझौते को आगे बढ़ाना और भी कठिन लग रहा है।

(C Raja Mohan’s Opinion)