जयंतीलाल भंडारी
कोई एक वर्ष पहले दुनिया के प्रमुख आर्थिक और वित्तीय संगठनों की रपटों में कहा जा रहा था कि दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का दर्जा रखने वाला भारत 2030 तक तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में दिखाई देगा। मगर इन दिनों प्रकाशित हो रही रपटों में कहा जा रहा है कि भारत 2027 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में दिखाई दे सकता है।
करीब एक हफ्ता पहले आर्थिक शोध से संबद्ध और बाजार पर नजर रखने वाली संस्था मोर्गन स्टेनली की रपट के मुताबिक भारत की विकास दर चालू वित्तवर्ष में 6.2 फीसद के साथ चीन से अधिक है। इस दशक के अंत तक जहां भारत की विकास दर 6.5 फीसद पर रहेगी, वहीं चीन 3.9 फीसद की सुस्त दर से विकास करेगा। यानी भारत की विकास दर की रफ्तार चीन से दो तिहाई ज्यादा रहेगी।
खास बात यह है कि, मोर्गन स्टेनली ने भारत की आर्थिक परिदृश्य की ‘रेटिंग’ बढ़ा कर तेजी से बढ़ती यानी ‘ओवरवेट’ और चीन की घटा कर समतल यानी ‘इक्वलवेट’ कर दी है। ‘ओवरवेट रेटिंग’ का मतलब है कि बाजार दूसरों से बेहतर प्रदर्शन कर रहा है और आगे भी प्रगति की पूरी संभावनाएं हैं। भारत की अर्थव्यवस्था अपनी श्रेणी के दूसरे देशों से बेहतर प्रदर्शन करेगी, जिसकी वजह से इसका शेयर बाजार भी बेहतर प्रदर्शन करेगा। जबकि चीन के प्रति वैश्विक निवेशकों की भावना नकारात्मक है।
अगर हम चीन की अर्थव्यवस्था को देखें तो पाते हैं कि वित्तवर्ष 2023-24 की डगर पर उसकी अर्थव्यवस्था निराशा और मुश्किलों से घिरी हुई है। विश्व बैंक के मुताबिक चीन की विकास दर करीब 5.6 फीसद रह सकती है। चीन के बाजार में सुस्त उपभोक्ता खर्च, निर्यात में गिरावट, संकटग्रस्त संपत्ति बाजार, बढ़ती बेरोजगारी, भारी स्थानीय सरकारी ऋण, घरेलू मांग में कमी, उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों से लेकर पूंजी बाजारों तक में गिरावट, कर्मचारियों की छंटनी जैसी आर्थिक मुश्किलों और आपदाओं का परिवेश दिखाई दे रहा है।
कुछ साल पहले कहा जा रहा था कि चीन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में अमेरिका से आगे निकल जाएगा और वर्ष 2028 तक दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति बन जाएगा। मगर अब अमेरिका की आर्थिक स्थिति तक पहुंचने में चीन को निश्चित रूप से अधिक समय लगेगा। अमेरिका की ‘इकोनामिस्ट इंटेलीजेंस यूनिट’ के मुताबिक चीन को अमेरिका से आगे निकलने के लिए 2040 के दशक तक इंतजार करना होगा। राष्ट्रपति शी जिनपिंग सरकार के पास आर्थिक चुनौतियों के समाधान के लिए आसान विकल्प नहीं हैं।
दूसरी ओर, भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ रही है। मोर्गन स्टेनली ने अपनी रपट में भारत को एशिया के सबसे उभरते बाजारों की सूची में पहले स्थान पर रखा है। भारत में ढांचागत विकास की तेजी, बढ़ते विदेशी निवेश, बढ़ते शेयर बाजार, मजबूत राजनीतिक नेतृत्व, मध्यवर्ग की ऊंची क्रय शक्ति, कारपोरेट कर में कटौती, ‘प्रोडक्शन लिंक्ड इनसेंटिव’ (पीएलआइ) योजना तथा बढ़ते हुए कामकाजी उम्र वाले लोग अर्थव्यवस्था की ताकत बढ़ा रहे हैं।
‘एसएंडपी’ ग्लोबल ने अपनी ‘लुक फारवर्ड: इंडियाज मूवमेंट’ रपट 2023 में कहा है कि वित्तवर्ष 2023-24 से वित्तवर्ष 2031-32 तक भारत औसतन 6.7 फीसद सालाना दर से आगे बढ़ेगा। इस अवधि में भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 3.4 लाख करोड़ डालर से बढ़कर 6.7 लाख करोड़ डालर यानी लगभग दोगुना हो जाएगा। रपट में कहा गया है कि प्रति व्यक्ति जीडीपी भी बढ़कर करीब 4,500 डालर हो जाएगी।
कोई एक वर्ष पहले दुनिया के प्रमुख आर्थिक और वित्तीय संगठनों की रपटों में कहा जा रहा था कि दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का दर्जा रखने वाला भारत 2030 तक तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में दिखाई देगा। मगर इन दिनों प्रकाशित हो रही रपटों में कहा जा रहा है कि भारत 2027 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में दिखाई दे सकता है।
उल्लेखनीय है कि 27 जुलाई को जारी स्टेट बैंक आफ इंडिया की शोध इकाई ‘इकोरैप’ की रपट में भी कहा किया गया है कि भारत 2027 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की तरफ अग्रसर है। रपट के मुताबिक, वित्तवर्ष 2023-24 की अप्रैल से जून की पहली तिमाही में भारत की आर्थिक विकास दर आठ फीसद से ज्यादा रहने वाली है।
इससे चालू वित्तवर्ष के दौरान सालाना विकास दर के 6.5 फीसद रहने की संभावना बन गई है। रपट के मुताबिक वर्ष 2027 तक अमेरिकी अर्थव्यवस्था का आकार 31.09 खरब डालर का होगा और यह पहले स्थान पर होगी। दूसरे स्थान पर चीन 25.72 खरब डालर के साथ होगा। तीसरे स्थान पर भारत 5.15 खरब डालर की अर्थव्यवस्था के रूप में दिखाई देगा।
संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक आयोग की डिजिटल एवं टिकाऊ व्यापार सुविधा संबंधी रपट में भारत 140 देशों को पीछे छोड़ते हुए दुनिया में सबसे आगे पहुंच गया है। ‘इनवेस्को ग्लोबल’ के अध्ययन के मुताबिक भारत की कारोबारी और राजनीति स्थिरता में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, जो उसका मजबूत पक्ष है।
राजकोषीय घाटा कम हो रहा है और राजस्व संग्रह में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। इसके अलावा भारत की आबादी, नियामक पहल और निवेशकों के लिए अनुकूल माहौल से भी भारत को निवेश की पहली पसंद बनने में मदद मिली है। विकासशील देशों में निवेश के लिए अब चीन नहीं, बल्कि भारत निवेशकों की पहली पसंद बन गया है।
इसमें कोई दो मत नहीं कि देश की अर्थव्यवस्था को तेजी से आगे बढ़ाने में बुनियादी ढांचे के निर्माण में आई क्रांति अहम भूमिका निभा रही है। पिछले नौ वर्षों में आधुनिक बुनियादी ढांचे के निर्माण पर 34 लाख करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। उद्योग-कारोबार को आसान बनाने के लिए डेढ़ हजार पुराने कानूनों और चालीस हजार अनावश्यक अनुपालनों को समाप्त किए जाने की अहम भूमिका है।
इस समय भारत को एक वैश्विक डिजाइन और विनिर्माण केंद्र में बदलने के लिए ‘मेक इन इंडिया 2.0’, विनिर्माण इकाइयों के लिए तकनीकी समाधान को बढ़ावा देने के लिए उद्योग 4.0, ‘स्टार्टअप’ संस्कृति को उत्प्रेरित करने के लिए ‘स्टार्टअप इंडिया’, ‘मल्टीमाडल कनेक्टिविटी’ अवसंरचना परियोजना के लिए पीएम गति शक्ति और उद्योगों को डिजिटल तकनीकी शक्ति प्रदान करने के लिए डिजिटल इंडिया जैसी सफल पहलों से भारत चतुर्थ औद्योगिक क्रांति की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
भारत कारोबार सुगमता के लिए रणनीतिक रूप से तेजी से आगे बढ़ रहा है। इस परिप्रेक्ष्य में लोकसभा ने जिस जन विश्वास (प्रावधान संशोधन) विधेयक, 2023 को मंजूरी दी है, वह उद्योग-कारोबार बढ़ाने में मील का पत्थर साबित होगा। कई और प्रभावी कारण भारत के टिकाऊ विकास और कारोबार को गतिशील कर रहे हैं। साठ फीसद तक वृद्धि घरेलू खपत और निवेश के कारण होती है।
भारतीय बाजार बढ़ती मांग वाला बाजार है। देश में बढ़ते मध्यवर्ग की चमकीली क्रयशक्ति और देश के मजबूत राजनीतिक नेतृत्व के कारण भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ रही है। निश्चित रूप से इस समय जहां एक ओर चीन की आर्थिक आपदाओं के बीच वैश्विक आर्थिक अवसरों को मुट्ठी में करने तथा दूसरी ओर भारत को 2027 तक दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था बनने की संभावनाओं को साकार करने के लिए कई बातों पर ध्यान देना होगा।
आर्थिक सुधारों की रणनीति पर लगातार आगे बढ़ना होगा। नई लाजिस्टिक नीति, गति शक्ति योजना के कारगर कार्यान्वयन पर अधिक ध्यान देना होगा। जरूरत है कि भारत की ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को प्रशिक्षित कार्यबल में परिणित किया जाए। भारत को अपने पारंपरिक और गैर-पारंपरिक ऊर्जा क्षेत्रों के बीच बेहतर तालेमल करना होगा।
निश्चित रूप से ऐसे रणनीतिक प्रयासों से भारत नए आर्थिक अवसरों को मुट्ठियों में करता दिखाई दे सकेगा और 2027 तक दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था के रूप में खड़ा होगा। साथ ही इससे देश के आम आदमी, उद्योग-कारोबार तथा संपूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए विकास का नया दौर निर्मित होता दिखाई देगा।