रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर ने कहा कि भारत इस साल के आखिर तक कम से कम एक ऐसे लड़ाकू विमान को चुनेगा जिसका निर्माण वायुसेना को आपूर्ति के लिए ‘मेक इन इंडिया’ प्रक्रिया के तहत किया जाएगा। उन्होंने कहा कि अगले तीन साल में एक या दो और जेट लड़ाकू संयंत्र या तो चालू हो जाएंगे या फिर स्थापित किए जाने की प्रक्रिया में होंगे।

जब उनसे पूछा गया कि क्या इसका मतलब कि एचएएल और संयंत्र लगाएगा, उन्होंने कहा, ‘यह निजी क्षेत्र होगा जिसकी जरूरत वायुसेना को आपूर्ति करने के लिए होगी। हमें लड़ाकू विमानों की जरूरत है। हम प्रोत्साहित करेंगे….. ऐसे प्रस्ताव हैं।’ पर्रिकर ने मंगलवार को कहा कि उपयुक्त प्रक्रिया के माध्यम से इस साल के आखिर तक ‘हम मेक इन इंडिया के लिए कुछ विमानों का चयन कर सकते हैं। किसका? मैं वचन नहीं दूंगा। लेकिन कम से कम एक तो होगा ही, दो भी हो सकते हैं।’

अमेरिका के बोइंग एंड लॉकहीड मार्टिन, स्वीडन के साब, फ्रांस के डसाल्ट एविएशन और यूरोफाइटर ने भारतीय वायुसेना के लिए उनका विमान चुने जाने पर प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के साथ भारत में विनिर्माण बेस लगाने की पेशकश की है। ये सभी कंपनियां अपने स्थानीय साझेदार के चयन के लिए भारतीय निजी कंपनियों के साथ बातचीत भी कर रही हैं। लेकिन वे अपना साझेदार चुनने से पहले सरकार से स्पष्ट संकेत की बाट जोह रही हैं।

पर्रीकर ने यह भी स्पष्ट किया कि ‘मेक इन इंडिया’ का मतलब महज उपकरणों का संग्रहण नहीं है बल्कि प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के माध्यम से विनिर्माण है। यह सब ऐसे समय में हो रहा है जब भारत और फ्रांस 36 राफेल लड़ाकू जेट विमानों की सीधी खरीद पर अंतर-सरकारी समझौते को पूरा करने के अंतिम चरण में है। सरकार ने भारतीय वायुसेना को स्वदेशी तेजस लड़ाकू विमान से लैस करने का भी फैसला किया है। वायुसेना लड़ाकू विमानों की भारी किल्लत से जूझ रही है। एचएएल हर साल 16 तेजस विमानों के विनिर्माण के लिए अपनी क्षमता बढ़ाने की प्रक्रिया में लगा है।