जी -7 की बैठक ऐसे वक्त में हुई है, जब यूरोप बड़े संकटों से जूझ रहा है। यूक्रेन में युद्ध चल रहा है तो कई देशों में अनाज और ऊर्जा की आपूर्ति बाधित है। दूसरी ओर, ब्रिक्स देशों की बैठक में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने वैश्विक स्तर पर गुटीय टकराव और शीतयुद्ध का मुद्दा उठा दिया। उनके इस बयान को क्वाड देशों की बैठक को लेकर जिनपिंग की कूटनीतिक प्रतिक्रिया मानी गई।

क्वाड की बैठक में चीन की विस्तारवादी नीति पर सवाल उठाते हुए क्षेत्रीय संप्रभुता और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक संतुलन की बात उठाई गई। क्वाड और ब्रिक्स- दोनों ही समूहों की बैठक में भारत की अहम भागीदारी रही। इसके बाद अब यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर जी-7 की बैठक में यूरोपीय समुदाय की शंकाओं के बीच भारत ने विकासशील देशों की बात उठाई। जी-7 में विशेष आमंत्रित देश के तौर पर हिस्सा लेने जर्मनी पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन और द्विपक्षीय वार्ताओं में जलवायु परिवर्तन और परस्पर सहयोग की बात उठाई और स्पष्ट कर दिया कि विदेश नीति को लेकर किसी समूह के दबाव में भारत नहीं हैth ।

एशिया समेत बड़े लोकतंत्रों पर ध्यान

जी-7 की बैठक का नीति-वाक्य है- ‘समानता आधारित दुनिया की ओर बढ़ो’। इस नीति-वाक्य के दायरे में यूक्रेन में जारी युद्ध और उसके दुनियाभर दिख रहे विभिन्न परिणामों पर चर्चा हुई। मेजबान देश जर्मनी के चांसलर ओलाफ शाल्ज को उम्मीद थी कि इस बैठक से दुनिया को संदेश दिया जाएगा कि जी-7 संगठित और प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा, ‘इस साल जी-7 का अतुलनीय महत्व है।’ फरवरी में यूक्रेन युद्ध शुरू होने के कुछ ही समय बाद शाल्ज ने विदेश और सुरक्षा नीति में बड़े बदलावों का एलान किया, जो उसकी अब तक की नीतियों से एकदम अलग थे।

उन्होंने जर्मन सेना को हथियार उपलब्ध कराने पर बड़े खर्च का एलान किया। बैठक में जलवायु परिवर्तन, भुखमरी और गरीबी को लेकर बात हुई है। पश्चिमी देशों की चिंता है कि रूसी नौसेना काला सागर के बंदरगाहों से जहाजों को जाने नहीं दे रही है, जिस कारण यूक्रेन से अनाज की आपूर्ति रुकी हुई है। संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि दशकों में सबसे बड़े अकाल का खतरा पैदा हो गया है। दक्षिणी गोलार्ध में कई देश पहले ही महामारी के विनाशक दुष्प्रभाव झेल रहे हैं।

इन हालात में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और जर्मन चांसलर शाल्ज ने चेतावनी दी है कि अगर जी-7 के देश एका दिखाने में नाकाम रहते हैं और इन देशों की मदद नहीं करते हैं तो रूस और चीन जैसी शक्तियां हालात का फायदा उठा सकती हैं। बाइडेन और जी-7 के अन्य राष्ट्राध्यक्षों का मानना है कि एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में बड़े लोकतंत्रों की ओर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है।

भारत की स्थिति

क्वाड, ब्रिक्स और अब जी-7 सम्मेलन, अंतरराष्ट्रीय मंचों के ये सम्मेलन ऐसे माहौल में हुए हैं, जब यूक्रेन में युद्ध चल रहा है और दुनिया राजनीतिक और कूटनीतिक आधार पर बंटी हुई नजर आ रही है। ब्रिक्स सम्मेलन में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कई देशों के समूहों पर निशाना साधा। उन्होंने सीधे नाम तो नहीं लिया, लेकिन ये स्पष्ट है कि वो नाटो जैसे सैन्य गठबंधन और क्वाड जैसे गठबंधनों की बात कर रहे थे। ब्रिक्स के साझा बयान में भी यूक्रेन युद्ध का जिक्र नहीं था।

इससे पहले क्वाड की बैठक में अमेरिका, भारत, आस्ट्रेलिया, जापान ने चीन की विस्तारवादी नीति को लेकर सवाल उठाए। भारत का सबसे नया गठबंधन क्वाड है, जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा सहयोग के लिए है। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब जी-7 सम्मेलन में पहुंचे तो कूटनीति के जानकार यह पूछने लगे कि क्या उन्हें वहां पश्चिमी देशों की तरफ से कूटनीतिक दबाव का सामना करना पड़ा है। भारत एक तरफ चीन और रूस के साथ संगठनों में है तो वहीं पश्चिमी देशों, एशियाई देशों और मध्य-पूर्व के देशों के साथ भी उसके गठबंधन है।

सभी विकल्प जरूरी

जानकारों का कहना है कि भारत के लिए सभी विकल्पों को खुला रखना जरूरी है। भारत की कूटनीति और रणनीति रणनीतिक स्वतंत्रता पर आधारित है। पहले इसे ही गुटनिरपेक्षता कहा जाता था। भारत को अपने राष्ट्रीय हितों को सबसे पहले रखते हुए अपनी रणनीतिक संप्रभुता को बनाए रखना है। भारत की विदेश नीति काफी सक्रिय रही है।

पश्चिमी देशों को पता चल चुका है कि भारत हमारा मित्र तो है, लेकिन एक सीमा के बाद भारत को दबाया नहीं जा सकता। दूसरी तरफ, चीन को भी पूरी तरह से स्पष्ट कर दिया गया है कि जब तक भारत और चीन के सीमा विवादों का हल नहीं होगा तब तक अन्य क्षेत्रों में संबंध मजबूत नहीं हो पाएंगे। रूस के प्रति भी हम स्पष्ट रूप से कह सकते हैं कि भारत रूस के साथ मजबूत संबंध बनाए रखना चाहता है, मगर हर काम जो रूस करेगा, भारत उसका समर्थन करे, ऐसा नहीं है।तमाम आंतरिक और अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के बावजूद आज भारत बहुत समझदारी से विदेश नीति को संभाले हुए है।

पश्चिमी देशों की चाहत

भारत को जी-7 में बुलाने का मुख्य कारण यह माना जा रहा है कि पश्चिमी देश भारत की तरफ फिर से हाथ बढ़ाना चाहते हैं। यूक्रेन के संदर्भ में भारत ने स्पष्ट कर दिया था कि वह कोई पक्ष नहीं लेगा और गुटनिरपेक्ष बना रहेगा। हो सकता है पश्चिमी देश भारत से ये बात कहें कि भले ही आप खुलकर रूस की आलोचना न करें लेकिन जो साझा मूल्य हैं, लोकतांत्रिक मूल्य हैं, उन पर साथ आएं।

जानकारों की राय में पश्चिमी सरकारों के लोगों को ये अच्छी तरह से पता है कि यूक्रेन पर भारत का रुख कोई विशेष मामला नहीं है, विशेष मामला ये है कि अमेरिका और पश्चिमी देशों ने रूस को शीत युद्ध की समाप्ति के बाद ठीक से संभाला नहीं और इसलिए ही आज की परिस्थिति खड़ी हुई है।

क्या कहते हैं जानकार

भारत की विदेश नीति सक्रिय रही है। अब पश्चिमी देशों को ये पता चल चुका है कि भारत हमारा मित्र तो है, लेकिन एक सीमा के बाद भारत को दबाया नहीं जा सकता है। दूसरी तरफ चीन को भी पूरी तरह से स्पष्ट हो गया है कि जब तक भारत और चीन के सीमा विवादों का हल नहीं होगा तब तक अन्य क्षेत्रों में संबंध मजबूत नहीं हो पाएंगे।

  • राजीव भाटिया, पूर्व राजनयिक

दुनिया में डी-डालराइजेशन (वैश्विक लेनदेन में डालर का इस्तेमाल खत्म करना) हो रहा है, इसके लिए समानांतर भुगतान प्रणाली को बनाने के लिए भारत, चीन और रूस जैसे देश स्विफ्ट बैंकिंग के अलावा अपनी बैंकिंग प्रणाली भी बना
रहे हैं।

  • स्वस्ति राव, विश्लेषक, मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान