अस्सी और नब्बे के दशक में ओड़ीशा के कालाहांडी जिले की चर्चा मीडिया में इसलिए होती रही कि वहां आदिवासी समुदाय की आर्थिक हालत इस कदर बदतर थी कि पेट की आग बुझाने के लिए लोग मक्खी पीस कर खाने को मजबूर थे। महज कालाहांडी नहीं, मध्यप्रदेश, असम, बिहार, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के अनेक जिलों की हालत इतनी बदतर थी कि लोगों को पेड़ों की पत्तियां खाकर गुजारा करना या बगैर खाए सोना पड़ता था। तीन दशक गुजरे।
देश विकास की नित नई छलांगें लगाता हुआ आज दुनिया की पांचवीं महाशक्ति के रूप में स्थापित हो चुका है। वहीं दूसरी तरफ विकास की ऊंचाइयों को छूने वाले भारत की हालत भले बेहतर दिखती हो, लेकिन आज भी कालाहांडी और देश के कई जिलों की दशा में कोई खास बदलाव नहीं हुआ है। यहां गरीब आज भी बिलख कर सोने को मजबूर हैं।
विकासशील देशों में भूख अब भी भयावह बनी हुई है। आयरलैंड के मानवीय संगठन ‘कंसर्न वर्ल्डवाइड’ और जर्मन सहायता एजंसी ‘वेल्थहंगरहिल्फ’ की रपट के मुताबिक भूख का मुद्दा आज भी दुनिया के लिए बहुत बड़ी समस्या है, जिसका समाधान नहीं हो पाया है। रपट बताती है कि गरीब देशों में भूख का स्तर कई दशक तक उच्च बना रहेगा। रपट यह भी बताती है कि भारत का वैश्विक भूख सूचकांक (जीएचआइ) स्कोर चार घटक संकेतकों के मूल्यों पर आधारित है। यहां 13.7 फीसद जनसंख्या कुपोषित है। पांच वर्ष से कम उम्र के 35.5 फीसद बच्चे अविकसित हैं, जिनमें से 18.7 फीसद दुर्बल हैं तथा 2.9 फीसद बच्चे पैदाइश के पांच साल के अंदर मर जाते हैं। रपट में अनुमान जताया गया है कि 2030 तक भूख मुक्त दुनिया बनाने के संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य को हासिल करने की संभावना बहुत कम है।
भारत पड़ोसी देशों से पीछे
ताजा रपट के मुताबिक वैश्विक भूख सूचकांक की 127 देशों की सूची में भारत को 105 वें स्थान के साथ ‘गंभीर’ श्रेणी में रखा गया है। वर्ष 2024 के वैश्विक भूख सूचकांक में 27.3 अंक के साथ भारत में भूख का स्तर ‘गंभीर’ श्रेणी में रखा गया। आंकड़े बताते हैं कि भारत पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, म्यांमार, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भी पीछे है। ‘गंभीर’ श्रेणी में रखने की वजह यह है कि जिस स्तर पर भारत को भुखमरी से निजात पाने के लिए प्रयास करने चाहिए, वे हुए तो, लेकिन नाकाफी साबित हुुए हैं। भारत के सभी पड़ोसी देशों के भुखमरी के मायने में भारत से बेहतर होने की बात से हमारे आर्थिक विकास पर सवाल उठाए जा सकते हैं। इससे समझा जा सकता है कि भारत के सभी पड़ोसी देशों में जो हालात हैं, भूख के मामले में वही भारत की भी स्थिति है।
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फिर कैसे हमारे आर्थिक विकास का सूचकांक इन पड़ोसी देशों से काफी आगे है? अगर आर्थिक हालात बेहतर हैं, तो भुखमरी क्यों गरीबों की जिंदगी का हिस्सा अभी भी बनी हुई है? संयुक्त राष्ट्र की भूख संबंधी वार्षिक रपट के अनुसार 2015 में दुनिया में सबसे ज्यादा 19.4 करोड़ लोग भारत में भुखमरी के शिकार थे। यह संख्या चीन से ज्यादा थी। पिछले दस वर्षों में भुखमरी से निजात पाने के लिए सरकार ने हर स्तर पर कदम उठाए हैं। फिर क्यों करोड़ों लोग भुखमरी का शिकार हैं?
बच्चों में कुपोषण की दर 16.6 फीसद
केंद्र सरकार ने गरीब परिवारों से ताल्लुक रखने वाले बच्चों के कल्याण के लिए अनेक उपाय किए हैं, लेकिन इन उपायों से भी बच्चों में जरूरत से कम वजन की समस्या बरकरार है। केंद्र सरकार के आंकड़े बताते हैं कि गरीब बच्चों में कुपोषण की दर 16.6 फीसद है। इसकी वजह से पांच साल से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु दर 3.1 फीसद है। भारत में इस वक्त पांच साल से कम उम्र के बच्चों में 69 फीसद बच्चे कुपोषण की वजह से मरते हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के आंकड़ों के मुताबिक आदिवासियों और दलितों में कुपोषण की दर सबसे ज्यादा है। पांच वर्ष से कम आयु वर्ग के 44 फीसद आदिवासी बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। इससे यह पता चलता है कि गरीब परिवारों से ताल्लुक रखने वाले बच्चों की सेहत बहुत खराब रहती है।
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केंद्र सरकार पांच लाख करोड़ की अर्थव्यवस्था बनने के साथ दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने का दावा करती है। मगर भूख, गरीबी, कुपोषण और एनीमिया जैसी समस्याएं आज भी भारतीय समाज का हिस्सा बनी हुई हैं। हाल में संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) और यूनीसेफ सहित चार अन्य संयुक्त राष्ट्र एजंसियों की इस वर्ष की विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति’ रपट में यह बात सामने आई है। इस रपट के मुताबिक भारत में 19.5 करोड़ कुपोषित लोग हैं, जिनमें बच्चे सबसे ज्यादा हैं। यह आंकड़ा दुनिया में सबसे ज्यादा है। इसमें यह बताया गया कि आधे से ज्यादा भारतीय 55.6 फीसद यानी 79 करोड़ लोग अभी भी ‘पौष्टिक आहार’ का खर्च उठाने में असमर्थ हैं। इस आंकड़े से यह समझा जा सकता है कि भुखमरी की समस्या का खात्मा तब तक नहीं हो सकता, जब तक कि सभी को भरपेट भोजन न मिल जाए।
हजारों लोग मर रहे भूख से
वार्षिक बजट में खाद्य सुरक्षा के लिए जितना धन आबंटित किया गया है, अगर उसका ईमानदारी से इस्तेमाल किया जाए, तो कोई वजह नहीं कि देश का कोई भी व्यक्ति भूखा सोए। फिर क्या वजह है कि हर वर्ष हजारों लोग भूख से मर जाते हैं? पिछले दस वर्षों में देश के हालात में बड़े बदलाव हुए हैं, लेकिन ये बदलाव सकारात्मक दिशा के साथ ही नकारात्मक दिशा में भी हुए हैं। मसलन, अमीर और गरीब के बीच की खाई जो आजादी के बाद बढ़नी शुरू हुई, आज सबसे उच्चतम स्तर पर है। ‘आक्सफैम’ की रपट के मुताबिक भारतीयों की महज दस फीसद आबादी के पास कुल राष्ट्रीय संपत्ति का सतहत्तर फीसद है। देश की कुल औसत आय में तेजी से इजाफा हुआ है, क्योंकि दस फीसद लोगों के पास संपत्ति तेजी से बढ़ी है। कृषि पर निर्भर रहने वाले किसानों की आय में इजाफा तो हुआ है, लेकिन इससे ग्रामीणों की समस्याएं कम नहीं हुई हैं। सर्वेक्षण बताते हैं कि अभी भी कई प्रदेशों में किसानों और मजदूरों की हालत अत्यंत दयनीय है।
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यह चिंता की बात है कि खाद्य सुरक्षा कानून, खाद्य सुरक्षा योजनाओं और अनाज भंडार भरे होने के बावजूद देश के लाखों लोग भुखमरी का शिकार हैं। खाद्य सुरक्षा कानून का अगर ईमानदारी से पालन किया जाए, तो कोई वजह नहीं कि देश का कोई भी व्यक्ति भूखा सोए या भूखा मरे। अस्सी करोड़ लाभार्थियों को हर महीने पांच किलो मुफ्त अनाज और दूसरी चीजें मिलती हैं, फिर भी भुखमरी खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। दरअसल, गरीबी खत्म करने की कोई भी योजना आज तक पूरी ईमानदारी से लागू नहीं की गई। भ्रष्टाचार, फरेब और ठगी की वजह से गरीबों का हक और उनका हिस्सा आज भी कहीं अंधेरे में दबा हुआ है। देखना यह है कि गरीबी, कुपोषण, भुखमरी और शोषण से समाज के सबसे अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्तियों को कब छुटकारा मिलता है।
खाद्य सुरक्षा कानून का अगर ईमानदारी से पालन किया जाए, तो कोई वजह नहीं कि देश का कोई भी व्यक्ति भूखा सोए या भूखा मरे। अस्सी करोड़ लाभार्थियों को हर महीने पांच किलो मुफ्त अनाज और दूसरी चीजें मिलती हैं, फिर भी भुखमरी खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। दरअसल, गरीबी खत्म करने की कोई भी योजना आज तक पूरी ईमानदारी से लागू नहीं की गई। भ्रष्टाचार, फरेब और ठगी की वजह से गरीबों का हक और उनका हिस्सा आज भी कहीं अंधेरे में दबा हुआ है। देखना यह है कि गरीबी, कुपोषण, भुखमरी और शोषण से समाज के सबसे अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्तियों को कब छुटकारा मिलता है।