इन दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टीका-टिप्पणियों से कई बार भारत के लिए असहज स्थिति पैदा हो जाती है। भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में यह बाधक ही साबित होगा कि ट्रंप के कहने पर एप्पल कंपनी भारत में अपने उत्पादन को अधिक विस्तारित न करे। ट्रंप के वक्तव्य के बाद से भारतीय उद्योग जगत में ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है। एप्पल कंपनी के साथ इस बात को लेकर पारस्परिक सहमति थी कि वह अपने वैश्विक विक्रय के लिए कुल उत्पादन का करीब दस फीसद हिस्सा भारत में बनाएगी। ट्रंप के ताजा बयान के बाद अब संदेह जताया जाने लगा है कि वह भारत में उत्पादन कर पाएगा।

आखिर ट्रंप ने ऐसा क्यों कहा? क्या वे भारत को अपना मित्र नहीं मानते? ऐसे कई प्रश्न लगातार उठ रहे हैं, लेकिन इन सबके बीच वैश्विक स्तर पर अमेरिका और चीन की 12 मई को पारस्परिक शुल्क दरों पर हुई सहमति को भी एक बड़ी कूटनीति के संदर्भ में देखना आवश्यक है। स्पष्ट तौर पर समझा जा सकता है कि ट्रंप ने शुल्क नीतियों में पारस्परिक सुधार के लिए पर्दे के पीछे चीन को इस बात पर सहमति दी कि अमेरिकी कंपनी एप्पल, चीन से अपने पचास फीसद से अधिक उत्पादन के हिस्से को भारत स्थानांतरित नहीं करेगी। राष्ट्रपति ट्रंप ने दूसरे कार्यकाल के दौरान अपनी नीतियों से हर दिन पूरी दुनिया को चकित किया है।

अमेरिका और चीन के बीच टैरिफ पर बनी सहमति

‘अमेरिका प्रथम’ की नीति के चलते उन्होंने शुरूआत से ही चीन को अपने निशाने पर रखा। उन्होंने चीन से आयात पर 145 फीसद शुल्क लगा दिए। जवाब में चीन ने भी 110 फीसद शुल्क अमेरिकी उत्पादों के आयात पर लगाए। मगर बाद में ट्रंप पलटते हुए दिखे और अमेरिका और चीन के राष्ट्रपति के बीच में इस बात पर सहमति हुई कि उन्हें शुल्क कम कर देना चाहिए। इस का परिणाम यह निकला कि चीन पर अमेरिकी शुल्क 145 से घट कर 30 फीसद हो गया और वहीं अमेरिका पर चीनी शुल्क 110 फीसद से घट कर मात्र दस फीसद के स्तर पर पहुंच गया। तो इस पूरी पृष्ठभूमि में क्या इस तरह समझा जाए कि चीन की शह पर ही राष्ट्रपति ट्रंप ने एप्पल को भारत में अपने उत्पादन को बढ़ाने से मना किया?

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हालांकि, एप्पल कंपनी ने भारतीय अधिकारियों से उसी दिन स्पष्ट कर दिया था कि भारत में उसकी निवेश योजनाओं में कोई बदलाव नहीं होगा। उसके कुछ दिन बाद एप्पल ने अपनी सहयोगी कंपनी फाक्सकान के जरिए भारत में 1.5 अरब डालर (12,834 करोड़ रुपए) की घोषणा कर डाली। ट्रंप एप्पल के वक्तव्य तक ही नहीं रुके। इसके बाद उन्होंने एक बयान दिया कि भारत ने अमेरिका पर शून्य फीसद शुल्क का प्रस्ताव दिया है।

हालांकि, राष्ट्रपति ट्रंप के इस कथन का विदेशमंत्री जयशंकर ने तत्काल खंडन किया, लेकिन यह भी सच्चाई है कि जैसे अमेरिका की चीन से शुल्क को लेकर सहमति बनी है, वैसे ही भारत और अमेरिका की बातचीत भी प्रस्तावित है और उस बातचीत में क्या भारत अमेरिका को शुल्क के संबंध में अपने पक्ष में मना पाएगा? क्या भारत राष्ट्रपति ट्रंप को कारोबारी मोर्चे पर अपने हित में सहमत कर पाएगा? यह प्रश्न इन दिनों भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था दोनों में उलझे हुए हैं। ट्रंप के एप्पल पर दिए हालिया बयान के बाद एप्पल ने स्पष्ट कर दिया है कि उसकी रणनीति आपूर्ति शृंखला के मामले में चीन पर निर्भरता कम करने की है और इस मामले में उसे भारत मुफीद लग रहा है।

कई तरह से प्रोत्साहित होकर एप्पल ने भारत में शुरू किया था अपना कारोबार

वर्ष 2017 में भारतीय अर्थव्यवस्था में ‘मेक इन इंडिया’ को तरजीह दी गई और इस तरह प्रस्तावित किया गया था कि भारत आने वाले समय में उत्पादन के क्षेत्र पर एक बड़े आयाम तक जाना चाहता है। उस समय सरकार ने इलेक्ट्रानिक उत्पादों के लिए पीएलआइ योजना के अंतर्गत विभिन्न प्रकार की छूट दी। कई तरह से प्रोत्साहित होकर एप्पल ने भारत में अपना कारोबार शुरू किया था। वर्तमान समय में भारत की तीन इकाइयों में एप्पल अपना उत्पादन कर रही है, जिनमें से दो तमिलनाडु और एक कर्नाटक में स्थित है। भारतीय कंपनी टाटा इलेक्ट्रानिक ने विस्ट्रान और पेगाट्रान को आधिकारिक रूप से खरीद कर एप्पल कंपनी के लिए उत्पादन करना शुरू किया, तो वहीं ताइवान की कंपनी फाक्सकान के माध्यम से पहले से ही तमिलनाडु में उत्पादन चल रहा है। इसके साथ उत्तर भारत में यमुना एक्सप्रेस वे पर तीन सौ एकड़ जमीन पर एक नई इकाई की स्थापना का प्रस्ताव भी चल रहा है। इसके माध्यम से एप्पल कंपनी को अपने उत्पादन को विस्तार देना प्रस्तावित है।

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एप्पल एक अमेरिकी कंपनी है। अमेरिका के बाद उसका सबसे अधिक उत्पादन चीन में होता है और फिर भारत में। वर्तमान परिदृश्य में अमेरिका के घरेलू बाजार में एप्पल कंपनी के मोबाइल और लैपटाप आदि का विक्रय का पारस्परिक संबंध चार-एक का है। यानी अमेरिका के घरेलू बाजार में चीन से उत्पादित होने वाले चार उत्पाद बिकते हैं, तो भारत का एक उत्पाद बिकता है। एप्पल कंपनी भारत में उत्पादन पर अपनी निर्भरता बढ़ाना चाहती है। वर्ष 1976 में कैलिफोर्निया में स्थापित एप्पल कंपनी वर्तमान में विश्व के प्रथम तीन सबसे बड़े ब्रांड में शामिल है। भारत को अपने घरेलू बाजार को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए एप्पल जैसी कंपनी की उपस्थिति बहुत जरूरी है। एप्पल के वैश्विक मुनाफे में भारतीय घरेलू बाजार का हिस्सा पहले से ही बहुत अच्छे मुकाम पर है, जिसे एप्पल स्वयं भी कभी नहीं खोना चाहेगा।

चीन की अर्थव्यवस्था ने अमेरिका के घरेलू बाजार में बहुत अधिक पकड़ भी बना ली

एप्पल कंपनी का चीन में प्रवेश वर्ष 2000 के आसपास हुआ था, जब चीन की अर्थव्यवस्था अपना नए रूप को देने में अग्रसर थी। उस समय एप्पल को अमेरिका में विस्तार करने के लिए और अधिक प्रोत्साहन नहीं मिल रहा था और वह चीन में मिल रहे प्रोत्साहन के चलते वहां अपना कारोबार बढ़ाने की सोच रहा था। चीन में शुल्क की दरों में कमी, वित्तीय सहायता, जमीन की उपलब्धता, कम लागत पर श्रमिकों की उपलब्धता के कारण आज एप्पल कंपनी का 18 से 20 फीसद उत्पादन चीन से होता है। चीन की अर्थव्यवस्था ने अमेरिका के घरेलू बाजार में बहुत अधिक पकड़ भी बना ली है।

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इसके चलते अमेरिका की वैश्विक स्थिति चीन के सामने उतनी अधिक मजबूत नहीं रही, जितनी दूसरे मुल्कों के सामने है। इसी परिदृश्य के कारण ट्रंप जब अपने दूसरे कार्यकाल में आए, तो इस बात का अंदेशा पहले से था कि वह चीन को अपने निशाने पर रखेंगे। इस बात को भी समझा जा सकता है कि एप्पल ने चीन से अपने 50 फीसद उत्पादन के हिस्से को भारतीय बाजार में स्थानांतरित करने की योजना बनाई थी। मगर इन सबके बीच ट्रंप की पलटी से भारतीय अर्थव्यवस्था के अमेरिका और चीन की आर्थिक कूटनीति के जाल में फंसने का अंदेशा था, जो अब नाकाम हो गया है।