79th Independence Day: देश 15 अगस्त (शुक्रवार) को अपना 79वां स्वतंत्रता दिवस मनाने के लिए तैयार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सुबह दिल्ली के लाल किले से राष्ट्र के नाम अपने संबोधन के साथ इस समारोह की शुरुआत करेंगे। हर साल की तरह, इस साल भी इस समारोह की शुरुआत राष्ट्रीय ध्वज फहराने के साथ होगी, जिसके बाद प्रधानमंत्री इस प्रतिष्ठित स्मारक की प्राचीर से अपना संबोधन देंगे।
जैसा कि पूरा देश प्रधानमंत्री मोदी के 12वें स्वतंत्रता दिवस भाषण का इंतजार कर रहा है, आइए भारत के पूर्व प्रधानमंत्रियों के स्वतंत्रता दिवस के पहले भाषण पर एक नजर डालतें हैं।
नरेंद्र मोदी, 15 अगस्त, 2014: ‘आजादी का पर्व…भारत को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा’
2014 में प्रधानमंत्री के रूप में अपने पहले स्वतंत्रता दिवस भाषण में पीएम मोदी ने भारत को नई ऊंचाइयों पर ले जाने की बात कही थी। 68वें स्वतंत्रता दिवस का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा था कि यह राष्ट्रीय पर्व हमें एक ऐसा जीवन जीने का संकल्प लेने की प्रेरणा देता है जहां हमारा चरित्र और निखरता जाए, हम राष्ट्र के लिए समर्पित हों और हमारी हर गतिविधि राष्ट्रहित से जुड़ी हो। तभी आज़ादी का यह पर्व भारत को नई ऊंचाइयों पर ले जाने का प्रेरणा पर्व बन सकता है।
डॉ. मनमोहन सिंह, 15 अगस्त, 2004: ‘जनता की शक्ति सरकार की ताकत से बड़ी है’
2004 में प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने वाले डॉ. मनमोहन सिंह ने उसी वर्ष स्वतंत्रता दिवस पर अपना पहला भाषण दिया था, जिसमें उन्होंने सुशासन और “राजनीतिक दलों और सार्वजनिक जीवन में सभी के लिए आचार संहिता” की आवश्यकता पर ज़ोर दिया था ताकि “संविधान में निहित मूल्यों” को बनाए रखा जा सके। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि जनता की शक्ति किसी भी सरकार की शक्ति से कहीं ज़्यादा है। उन्होंने कहा कि लेकिन, इन दोनों को मिलाकर ही हम अपने देश को सचमुच महान बना सकते हैं।
अटल बिहारी वाजपेयी, 15 अगस्त, 1998: ‘परमाणु परीक्षण युद्ध के लिए नहीं’
1998 में प्रधानमंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी का पहला स्वतंत्रता दिवस भाषण पोखरण परीक्षणों के कुछ ही महीनों बाद आया था। इन परीक्षणों की नींव रखने का श्रेय पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को देते हुए, वाजपेयी ने दोहराया कि परमाणु परीक्षण युद्ध के लिए नहीं थे। उन्होंने पाकिस्तान और चीन के साथ सभी मुद्दों को बातचीत के ज़रिए सुलझाने की बात भी कही।
इंद्र कुमार गुजराल, 15 अगस्त, 1997: ‘महिलाओं को देश की राजनीति में पूर्ण अधिकार मिलना चाहिए’
भारत के प्रधानमंत्री के रूप में इंद्र कुमार गुजराल का पहला और आखिरी संबोधन 15 अगस्त, 1997 को भारत की आज़ादी के 50 साल पूरे होने के मौके पर हुआ। गुजराल ने इस मौके पर भ्रष्टाचार के खिलाफ ‘सत्याग्रह’ का आह्वान किया। उन्होंने भारतीय राजनीति में महिलाओं को समान स्थान देने में ‘झिझक’ को स्वीकार किया और पुरुषों और महिलाओं के समान अधिकारों की वकालत की, जिससे लैंगिक समानता उनके भाषण का मुख्य विषय बन गई।
राजीव गांधी, 15 अगस्त, 1985: ‘भारत का विकास उसके गांवों की प्रगति से आता है’
प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अपने पहले स्वतंत्रता दिवस भाषण में गरीबी पर बात की और कहा कि सरकार भारत से गरीबी उन्मूलन के लिए अपनी पूरी शक्ति और संसाधन लगाएगी। उन्होंने इस काम के लिए आधुनिक वैज्ञानिक तकनीक के इस्तेमाल की बात कही। उन्होंने गाँवों के विकास की भी बात की। कहा कि भारत तभी विकसित होगा जब उसके गाँव प्रगति करेंगे।
इंदिरा गांधी, 15 अगस्त, 1966: ‘समाजवाद के अलावा गरीबी उन्मूलन का कोई रास्ता नहीं’
1966 में, इंदिरा गांधी ने भारत की पहली और अब तक की एकमात्र महिला प्रधानमंत्री के रूप में अपना पहला स्वतंत्रता दिवस भाषण दिया। अपने भाषण में, उन्होंने गरीबी और भारत में गरीबी उन्मूलन के लिए समाजवाद के मार्ग को अपनाने की बात की। उन्होंने भारत में मौजूद जातिवाद का भी ज़िक्र किया और कहा कि सरकार ने समाज के उन वर्गों के कल्याण के लिए कार्यक्रम बनाए हैं जो सदियों से उपेक्षा का शिकार रहे हैं।
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लाल बहादुर शास्त्री, 15 अगस्त, 1965: ‘जय जवान, जय किसान’
लाल बहादुर शास्त्री ने 1965 के स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में देश के किसानों और जवानों की सराहना करते हुए ‘जय जवान, जय किसान’ का लोकप्रिय नारा दिया था, जो आगे चलकर भारत की आत्मनिर्भरता और एकता का प्रतीक बन गया।
जवाहरलाल नेहरू, 15 अगस्त, 1947: ‘नियति से मिलन’
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 15 अगस्त, 1947 को राष्ट्र को संबोधित किया, जो भारत में ब्रिटिश शासन के अंत का प्रतीक था। इस प्रसिद्ध भाषण में नेहरू ने उस नई-नई मिली आज़ादी के बारे में बात की थी जिसके साथ भारत जागा था। उन्होंने कहा था, “एक ऐसा क्षण आता है, जो इतिहास में बहुत कम आता है, जब हम पुराने से नए की ओर कदम बढ़ाते हैं, जब एक युग का अंत होता है, और जब एक राष्ट्र की आत्मा, जो लंबे समय से दमित थी, अपनी अभिव्यक्ति पाती है।” उन्होंने स्वतंत्रता और शक्ति के साथ आने वाली ज़िम्मेदारी के बारे में भी बात की। नेहरू ने कहा कि यह ज़िम्मेदारी इस सभा पर है; एक संप्रभु निकाय जो भारत के संप्रभु लोगों का प्रतिनिधित्व करता है। वहीं, स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का संबोधन। पढ़ें…पूरी खबर।