IND VS PAK 1965 War: भारत पाकिस्तान के बीच जब भी 1965 के युद्ध का जिक्र होता है तो एक कहानी जरूर याद आती है कि जब पाकिस्तान के SSG कमांडों का एक ग्रुप भारतीय वायुसेना के ठिकानों का निशाना बनाने के इरादे से भारत में चोरी छिपे दाखिल हुआ था और फिर उसे पंजाब के किसानों ने पकड़ कर उनकी पिटाई करने के साथ की उन्हें बंधक बना लिया था इसके चलते पाकिस्तान के नापाक मंसूबों पर पानी फिर गया था।

दरअसल, पाकिस्तानी सेना ने भारतीय वायुसेना के अहम ठिकानों यानी आदमपुर, हलवारा और पठानकोट एयरबेस को बर्बाद करने का प्लान बनाय थाा। पड़ोसी मुल्क की शुरुआती प्लानिंग में अंबाला को छोड़ दिया गया था। इस हमले का मकसद था कि भारतीय वायुसेना के विमानों को नष्ट किया जाए और यह सुनिश्चित करना था कि पाकिस्तानी सेना और वायुसेना के खिलाफ कोई भी भारतीय वायुसेना कोई कार्रवाई कर ही न पाए।

बेहद घटिया साबित हुआ था प्लान

पाकिस्तानी वायु सेना के रिटायर्ड एयर कमोडोर कैसर तुफैल द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार यह ऑपरेशन को बिना किसी तैयारी के अंजाम दिया गया। इस प्लान को बेहद ही घटिया बताया गया था, जो कि पाकिस्तानी एयरफोर्स अध्यक्ष एयर मार्शल असगर खान के दिमाग की उपज थी। युद्ध शुरू होने से कुछ समय पहले असगर खान ने पद छोड़ दिया था, लेकिन उनके उत्तराधिकारी एयर मार्शल नूर खान ने इस प्लान को फॉलो किया।

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पीएएफ की एक टीम को स्पेशल सर्विस ग्रुप (SSG) के कमांडर इन चीफ कर्नल सैय्यद गफ्फार मेहदी के साथ संपर्क करने का काम सौंपा गया था। कैसर तुफैल ने लिखा है कि कर्नल मेहदी के अनुसार कुछ भी सराहनीय हासिल नहीं हुआ क्योंकि पीएएफ द्वारा जो डिमांड किया गया, वो हमारे सैनिकों की क्षमता से परे थीं। जुलाई में पेशावर के पैरा ट्रेनिंग स्कूल (पीटीएस) में कर्नल मेहदी ने उनके जीएसओ-2 ऑप्स, मेजर एहसान-उल-हक डार के साथ) द्वारा पीएएफ सी-इन-सी के समक्ष एक औपचारिक प्रजेंटेशन दिया और एसएसजी के दृष्टिकोण को समझाया गया। इस दौरान दो महत्वपूर्ण बिंदु उठाए गए।

ऑपरेशन के सफल होने की गुंजाइश थी कम

इसमें कहा गया कि इस तरह का ऑपरेसन तभी सफल हो सकता है जब हमलावर के पास रणनीतिक और सामरिक दोनों तरह का शॉकिंग एलीमेंट हो। इसलिए, भारतीय ठिकानों पर हमला युद्ध के पहले संकेत के रूप में किया जाना चाहिए था, इसका तात्पर्य यह था कि अगर युद्ध कुछ समय से चल रहा था और दुश्मन के एयरबेस की सुरक्षा अलर्ट की स्थिति में थी, तो द्वितीय विश्व युद्ध के तरीकों का उपयोग करके ऐसे कमांडो ऑपरेशनों की सफलता की संभावना बहुत कम थी।

पाकिस्तान ने हमले के बाद का नहीं सोचा था कोई प्लान

तुफैल ने लिखा कि टारगेट, उसकी विशेषताओं, आकार, आकृति और सुरक्षा के आयाम, तथा लक्ष्य के अस्तित्व वाले सामान्य वातावरण की विशेषताओं का सटीक और विश्लेषण PAF/GHQ द्वारा SSG को उपलब्ध कराया जाना था। मिशन के बाद पैरा-कमांडो की वापसी के बारे में ठीक से नहीं सोचा गया था।

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तुफैल ने कहा कि हमले के बाद पूरी तरह से अलर्ट रहने की उम्मीद वाले एयरफील्ड पर ट्रांसपोर्ट विमान उतारना, कम से कम, एक काल्पनिक विचार था। हेलीकॉप्टरों के मामले में, न तो पाक सेना और न ही पीएएफ के पास सैन्य परिवहन संस्करण थे जो दुश्मन के इलाके से बड़ी संख्या में कमांडो को निकाल सकते थे।

कमांडों को दिए गए थे हथियार और खाना

उन्होंने बताया कि एसएसजी की तीन टीमों को सी-130 प्लेन के जरिए हवाई साधन से उतारा गया था, जिनमें से प्रत्येक में तीन अधिकारियों सहित 60 कमांडो थे। प्रत्येक टीम के पास एक वायरलेस सेट होना था ताकि सी-130 को उसके डेवेलपमेंट के बारे में जानकारी दी जा सके। सभी कमांडो को दो दिन का राशन और 400 रुपये भारतीय मुद्रा के अलावा हथियार, विस्फोटक, ग्रेनेड दिया गया था। प्लान के तहत 7 सितम्बर की सुबह इस ऑपरेशन को अंजाम दिया गया और 64 एसएसजी कमांडो को पठानकोट एयरबेस के पास, 55 कमांडो को आदमपुर के पास और 63 को हलवारा में उतारा गया।

किसानों ने देखकर ही बोल दिया हमला

पठानकोट के लिए भेजी गई टीम हवाई अड्डे से कई किलोमीटर दूर उतरा और जब तक वे फिर से संगठित होकर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना शुरू करते, तब तक एयरबेस के आस-पास के खेतों में किसानों की हलचल बढ़ गई थी, जिन्होंने उन्हें देखा और शोर मचा दिया। जिसके कारण लगभग 45 कमांडो पकड़े गए और चार की मौत हो गई। कई कमांडो कांगड़ा की पहाड़ियों की ओर भाग गए और फिर वहां की खाड़ियों में आराम करने के बाद भागने में सफल रहे।

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गांव वालों ने पकड़ा और की जमकर पिटाई

इसके अलावा आदमपुर में पाकिस्तानी सैनिक एक गांव के बीचों बीच उतर गए, जहां ग्रामीणों ने कई लोगों को पकड़ लिया और उन्हें पकड़ने से पहले उनकी जमकर पिटाई की। अलार्म बजने पर पंजाब पुलिस की टीमें मौके पर पहुंची और कमांडो को घेर लिया, जिनमें से 42 को पकड़ लिया गया, 12 को गोली मार दी गई और एक भाग निकला।

कुछ ऐसा ही हलवारा में हुआ, जहां एक गांव के पास कमांडो को गिराया गया और कमांडो का सामना गांव वालों से हुआ, जिन्होंने उन्हें काबू में कर लिया। इसके बाद पंजाब पुलिस के जवानों के साथ भी मुठभेड़ हुई, जिसके परिणामस्वरूप चार पाकिस्तानी कमांडो मारे गए, 53 पकड़े गए और छह भागने में सफल रहे। तुफैल ने बताया कि पंजाब के किसान अलर्ट थे, जिसके चलते पाकिस्तान को कुल 182 कमांडो का नुकसान हुआ। इनमें से 140 पकड़े गए, 20 मारे गए और 22 भाग निकले थे।

इसके चलते पाकिस्तान का पूरा मिशन फेल हो गया था और उसकी नापाक साजिशें एक बार फिर सबके सामने आ गई। पाकिस्तान की उस 1965 के युद्ध में करारी हार हुई थी, जिसके बाद उसे फिर से बातचीत की टेबल पर आना पड़ा था।