रंजना मिश्रा
भारत के युवाओं में बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति न केवल सामाजिक चिंता का विषय, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी खतरा पैदा कर रही है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की ताजा रिपोर्ट के आंकड़े भारत में आत्महत्या की गंभीर स्थिति को उजागर करते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में भारत में 1.71 लाख लोगों ने आत्महत्या की, जो दुनिया में सबसे अधिक है।
यह आंकड़ा चिंताजनक है, खासकर जब हम यह जानते हैं कि भारत में आत्महत्या के मामलों की वास्तविक संख्या दर्ज संख्या से कहीं अधिक हो सकती है। अपर्याप्त पंजीकरण प्रणाली, मृत्यु के चिकित्सा प्रमाणन की कमी और आत्महत्या से जुड़े सामाजिक कलंक के कारण कई मामलों का पता तक नहीं चल पाता है। रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि 41 फीसद आत्महत्याएं 30 वर्ष से कम आयु के युवाओं द्वारा की जाती हैं।
इसके पीछे अनेक जटिल कारण हैं, जिनमें मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं, शैक्षणिक दबाव, सामाजिक आर्थिक समस्याएं, प्रेम संबंधों में विफलता, व्यसन और घरेलू हिंसा आदि प्रमुख हैं। भारत में युवाओं पर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का बोझ काफी ज्यादा है, लेकिन उनमें से ज्यादातर इसका उपचार नहीं कराते। परीक्षाओं में सफलता का अत्यधिक दबाव, अभिभावकों और शिक्षकों की अपेक्षाएं और विफलता का डर युवाओं को आत्महत्या की ओर धकेल सकता है।
गरीबी, बेरोजगारी, सामाजिक बहिष्कार, भेदभाव, और परिवार में तनाव भी आत्महत्या के लिए जोखिम का कारक बन सकते हैं। युवाओं के बीच इंटरनेट के उपयोग में होने वाली उल्लेखनीय वृद्धि भी आत्महत्या में प्रमुख भूमिका अदा करती है। इसके कुछ अन्य कारकों में साइबरबुलिंग, लैंगिक उत्पीड़न, घरेलू हिंसा और सामाजिक मूल्यों में गिरावट भी शामिल हो सकते हैं।
मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं आत्महत्या का एक बड़ा कारण हैं। भारत में लगभग 54 फीसद आत्महत्याएं मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के कारण होती हैं। पढ़ाई के दबाव यानी शैक्षणिक तनाव से होने वाली आत्महत्याओं के मामले लगभग 23 फीसद पाए गए हैं। इसी प्रकार भारत में होने वाली आत्महत्याओं में सामाजिक तथा जीवन शैली कारकों का लगभग 20 फीसद और हिंसा का 22 फीसद योगदान रहता है।
इसके अलावा आर्थिक संकट के कारण 9.1 फीसद और संबंधों की वजह से लगभग 9 फीसद आत्महत्याएं भारत में देखी गई हैं। युवा लड़कियों और महिलाओं में कम उम्र में विवाह, कम उम्र में मां बनना, निम्न सामाजिक स्थिति, घरेलू हिंसा, आर्थिक निर्भरता और लैंगिक भेदभाव भी आत्महत्या के महत्त्वपूर्ण कारक हैं। आत्महत्या के आंकड़ों के अनुसार, भारत में वर्ष 2022 में परीक्षा में विफलता के कारण 2095 लोगों ने आत्महत्या की थी।
इस भीषण समस्या का समाधान ढूंढ़ने के लिए बहुआयामी रणनीति अपनाने की जरूरत है, जिसमें मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता, मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में सुधार, शैक्षणिक प्रणाली में सुधार, सामाजिक-आर्थिक सहायता, प्रेम संबंधों में परामर्श, व्यसन से मुक्ति, हेल्पलाइन और सहायता समूह, मीडिया की जिम्मेदारी और सामुदायिक जागरूकता शामिल हैं।
इसके लिए सरकारों, गैर-सरकारी संगठनों और समुदायों को मिलकर कदम उठाने होंगे। युवाओं को यह जानकारी देनी आवश्यक है कि वे जिन समस्याओं का सामना कर रहे हैं, उनका वैकल्पिक और उचित समाधान मौजूद है। अगर इस प्रकार समस्याओं से परेशान युवाओं से लगातार बातचीत की जाए और उन्हें अच्छी प्रकार समझाया जाए, तो आत्महत्या जैसे बड़े संकट से उन्हें बचाया जा सकता है।
युवाओं को आत्महत्या से बचाने के लिए, उनकी मानसिक परेशानियों की शीघ्र पहचान करनी होगी और अनुकूल वातावरण में उनकी देखभाल के समुचित प्रावधान होने चाहिए। इस प्रवृत्ति को रोकने और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए, मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को सभी के लिए सुलभ बनाना और उन्हें सस्ती दर पर उपलब्ध कराना भी आवश्यक है। शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन लाकर परीक्षाओं में सफलता के दबाव को कम करना और विद्यार्थियों में आत्मविश्वास बढ़ाने पर ध्यान देना होगा। नशे से ग्रस्त युवाओं के लिए नशा मुक्ति केंद्रों की स्थापना करनी चाहिए और उन्हें उपचार प्रदान करना चाहिए।
अगर कोई युवा आत्महत्या के विचारों से जूझ रहा है, तो उसे किसी विश्वसनीय व्यक्ति से बात करनी चाहिए जैसे परिवार के सदस्य, दोस्त से या चिकित्सक से। आत्महत्या जैसी घातक प्रवृत्ति से बचने के लिए स्वस्थ जीवनशैली अपनाना बहुत जरूरी है। स्वस्थ जीवनशैली के अंतर्गत, पर्याप्त नींद लें, स्वस्थ भोजन करें, नियमित व्यायाम करें और तनाव को कम करने के लिए स्वस्थ मनोरंजन करें। इसके अलावा सदैव सकारात्मक सोचें, नकारात्मक विचारों को दूर भगाएं। उन्हें ऐसे लोगों से मित्रता या निकटता रखनी चाहिए, जो उन्हें सही सलाह दें और उनके मानसिक बल को बढ़ाएं।
मानसिक समस्याओं से जूझ रहे युवाओं के पारिवारिक माहौल को सुधारने का भी भरपूर प्रयास किया जाना चाहिए। इसके अलावा हमारे देश में ऐसे सामाजिक परिवर्तन की भी आवश्यकता है, जिसमें किसी भी व्यक्ति के साथ जातिगत आधार पर, धर्म के आधार पर या लैंगिक आधार पर भेदभाव न किया जाए।
इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति, अंतर क्षेत्रीय सहयोग और सामाजिक तथा सामुदायिक भागीदारी की बहुत आवश्यकता है, ताकि किसी भी व्यक्ति में मानसिक स्वास्थ्य जैसी समस्याएं उत्पन्न न हों और न ही उनमें आत्मघाती प्रवृत्तियां विकसित हो सकें। गैर-सरकारी संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को आत्महत्या रोकथाम के लिए जागरूकता अभियान चलाने और पीड़ितों को सहायता प्रदान करने के लिए आगे आना चाहिए।
आत्महत्या के कारणों और इससे निपटने के सबसे प्रभावी तरीकों के बारे में अधिक अनुसंधान करने की आवश्यकता है। सरकार को इस दिशा में अधिक निवेश करना चाहिए और विश्वसनीय डेटा इकट्ठा करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। राजनीतिक इच्छाशक्ति से ही आत्महत्या रोकथाम को एक राष्ट्रीय प्राथमिकता बनाया जा सकता है। इसके लिए पर्याप्त बजट आबंटित किया जाना चाहिए। सरकार को इस समस्या से निपटने के लिए एक मजबूत राष्ट्रीय रणनीति विकसित करनी चाहिए और इसके कार्यान्वयन पर ध्यान देना चाहिए।
युवाओं का जीवन अमूल्य है और उनके पास इस दुनिया को देने के लिए बहुत कुछ है। इसलिए चाहे परिस्थितियां कितनी भी मुश्किल क्यों न हों, उन्हें उम्मीद की किरण कभी नहीं छोड़नी चाहिए और समस्याओं से हार न मानकर बेहतर भविष्य के लिए प्रयास करते रहना चाहिए। आत्महत्या कभी भी किसी समस्या का समाधान नहीं है। आज हमारे देश के युवाओं में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। जागरूकता, रोकथाम रणनीति और सामाजिक प्रयासों द्वारा मिलकर हम इस समस्या का समाधान कर सकते हैं और युवाओं को बेहतर जीवन जीने के अवसर प्रदान कर सकते हैं।
किसी भी देश के युवा उस देश के सामाजिक-आर्थिक विकास के रीढ़ की हड्डी होते हैं, या दूसरे शब्दों में कहें तो उस देश का राष्ट्रीय धन होते हैं। उनका इस प्रकार आत्महत्या करना देश का बहुत बड़ा नुकसान है। हमें हर हाल में इस आत्मघाती प्रवृत्ति को समूल नष्ट करना होगा और अपने देश की युवा शक्ति को बचाकर उन्हें देश के नवनिर्माण में लगाना होगा।