किसान आंदोलन की वजह से उम्र के आखिरी पड़ाव पर खड़े गुलाम मोहम्मद जौला फिर से टिकैत बंधुओं के करीब आए हैं। दरअसल, जौला ने मुजफ्फरनगर के 2013 के दंगों के बाद टिकैत परिवार से नाता तोड़ लिया था। उन्हें लगता था कि टिकैत बंधुओं ने दंगों को हवा दी जिससे 60 मुस्लिम मारे गए और कईयों को घर से बेघर होना पड़ा। दिवंगत महेंद्र सिंह टिकैत के हम निवाला रहे जौला ने उसके बाद भारतीय किसान मजदूर संघ का गठन करके अपनी राह अलग कर ली थी। उनका टिकैत परिवार से कोई नाता उसके बाद नहीं रहा, लेकिन 28 जनवरी को राकेश टिकैत के आंसू देखकर वह खुद को उनके करीब जाने से नहीं रोक सके।

नरेश टिकैत के कहने पर जौला 29 जनवरी की महापंचायत में गए तो उनके दिल का गुबार बाहर आया। उम्र दराज मुस्लिम नेता ने नरेश के सामने जमकर दिल की भड़ास निकाली। जौला ने उनसे कहा, टिकैत परिवार ने दो बड़ी गलती कीं। एक चौधरी अजित सिंह को चुनाव हराया और दूसरी वह मुस्लिमों की हत्या में भागीदार बने। जौला का कहना है कि इसके बाद वह नरेश के गले लगे और दूरियां खत्म हो गईं। जानकार कहते हैं कि नरेश और जौला के मिलन से जाट और मुस्लिम समुदाय एक दूसरे के फिर से करीब आ गए। दंगों के बाद दोनों समुदाय एक दूसरे को फूटी आंख भी नहीं देख रहे थे पर किसान आंदोलन और नरेश टिकैत के आंसू दोनों को फिर से एक दूसरे के करीब ले आए।

जौला और टिकैत के बीच दूरियां खत्म होने से प. यूपी की राजनीति में नए समीकरण पैदा होने लगे हैं। दरअसल, इस इलाके के 18 जिलों में जाटों की तादाद 12-17% है। इनका प्रभाव इस इलाके में काफी ज्यादा है। मुस्लिमों की बात की जाए तो अकेले मुजफ्फरनगर में 28% से ज्यादा इनकी तादाद है। जौला कहते हैं कि 27 जनवरी को चौधरी अजित सिंह ने उन्हें दिल्ली बुलाकर कहा कि हिंदू-मुस्लिम गठबंधन की मजबूती के लिए काम करो। जानकार कहते हैं कि किसान आंदोलन ने जाट और मुस्लिमों को साझे मंच पर ला खड़ा किया है। बीजेपी के लिए यह चिंता का सबब है। क्योंकि प. यूपी की 90 असेंबली सीटों में से 72 पर बीजेपी का कब्जा है तो लोकसभा की सारी सीटें उसके पास हैं।

मुजफ्फरनगर के 2013 के दंगों के बाद प. यूपी का सामाजिक तानाबाना बिखर गया था। नए माहौल में यह गठजोड़ बीजेपी को धूल चटा सकता है। अजित सिंह खुद इस चीज को महसूस कर रहे हैं कि 2013 के दंगों के बाद उनका जनाधार तेजी से घटा है। अजित खुद 2014, 19 का चुनाव हारे तो असेंबली में उनकी पार्टी केवल एक ही सीट हासिल कर सकी। एकमात्र जो एमएलए जीता वह बाद में बीजेपी के पाले में चला गया। अजित के बेटे जयंत को लगता है कि किसान आंदोलन फिर से उन्हें जिंदा कर सकता है। इसीलिए वह प. यूपी के लोगों से कहते देखे जाते हैं कि हमारी लड़ाई उन लोगों से है जो विभाजन की कला में सिद्धहस्त हैं।

BKU चीफ नरेश टिकैत भी मानते हैं कि माहौल बदल रहा है। लेकिन इसके लिए बीजेपी सरकार ही जिम्मेदार है। खेद जताने की बजाए सरकार उनके खिलाफ केस पर केस ठोक रही है। वह खुद नहीं समझ पा रहे हैं कि सरकार क्यों जिद पर अड़ी है। उधर, केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान इस चीज को तो मानते हैं कि कृषि कानून बनाने से पहले सरकार को ज्यादा लोगों से रायशुमारी करनी चाहिए थी। लेकिन वह इस बात को खारिज करते हैं कि किसान आंदोलन की वजह से जाट और मुस्लिम करीब आ रहे हैं। उनका कहना है कि अभी चुनाव में काफी समय है और लोग केवल एक मुद्दे के आधार पर अपना फैसला नहीं करने जा रहे हैं।

इलाके के लोगों की मानी जाए तो मोदी के प्रशंसक भी किसान आंदोलन के मुद्दे पर बीजेपी की आलोचना करते देखे जाते हैं। 80 पार के राजपाल कहते हैं कि उनके गांव से रोजाना ट्रैक्टर हाजीपुर जा रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार को किसानों की सुननी चाहिए। हालांकि कई मामलों में वह मोदी की नीतियों के मुरीद हैं। 55 साल के जमींदार अरविंद का कहना है कि वह किसान कानूनों को नहीं समझते, लेकिन यहां के लोगों में सरकार से नाराजगी है। महंगाई और गन्ने के मुद्दे पर लोग नाराज हैं। उनका कहना है कि राकेश टिकैत के आंसू देखने के बाद गांव का एक भी आदमी रात भर नहीं सोया। बकौल अरविंद अब बीजेपी उन्हें मूर्ख नहीं बना सकती। आंदोलन और ज्यादा तीखा होना तय है।