मंगलवार और बुधवार को मनाया जाने वाला छठ पर्व मुख्‍य रूप से पूर्वांचल का त्‍यौहार है, लेकिन अब देश के कई हिस्‍सों तक फैल गया है। इसकी वजह इसके पीछे छिपा वोट बैंक है। दिल्‍ली की बात करें तो 2007 के नगर निगम चुनावों में पहली बार भाजपा को पूर्वांचलियों के वोट बैंक की अहमियत समझ में आई। पार्टी ने 25 से ज्‍यादा पूर्वांचलियों को उम्‍मीदवार बनाया और भारी मतों से जीत हासिल की। इससे सभी पार्टियों ने सब‍क लिया। उसके बाद हुए संसदीय चुनाव में कांग्रेस ने पूर्वांचल के महाबल मिश्रा को पश्चिमी दिल्‍ली (जहां पंजाबियों के बराबर पूर्वांचली मतदाता हैं) से उम्‍मीदवार बनाया। मिश्रा जीत गए।

‘इंडिया अगेंस्‍ट करप्‍शन’ मूवमेंट से 2011 में जन्‍मी ‘आप’ को भी पूर्वांचलियों का भरपूर समर्थन मिला। अलग-अलग शहरों से आकर दिल्‍ली में रह रहे ये पूर्वांचली नौकरशाही में फैले भ्रष्‍टाचार से त्रस्‍त थे। राशन कार्ड, गैस कनेक्‍शन, ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट आदि लेने में परेशानी से जूझ रहे इन लोगों को केजरीवाल और उनके आंदोलन के रूप में बड़ी उम्‍मीद दिखाई दी। दिसंबर 2013 में जब आप ने पहला चुनाव लड़ा तो उसने भी एक पूर्वांचली अजीत झा को बुराड़ी से टिकट दिया। झा ने भाजपा के पूर्वांचली उम्‍मीदवार को शिकस्‍त दे दी। इससे उत्‍साहित आप ने अगली बार 10 पूर्वांचली उम्‍मीदवार उतारे। पार्टी ने 70 में से 67 जीत कर इतिहास रचा। इसके बाद केजरीवाल ने अपनी सरकार में भी दो पूर्वांचलियों (कपिल मिश्रा और गोपाल राय) को जगह दी। बंदना कुमारी को डिप्‍टी स्‍पीकर बनाया।

इस चुनाव के आठ महीने बाद आप सरकार ने मैथिली-भोजपुरी अकादमी को धार दी। इस अकादमी की ओर से एक इवेंट आयोजित किया गया। इसमें बिहार के सीएम नीतीश कुमार को मुख्‍य अतिथि बनाया गया। पूर्वांचल के सभी विधायकों का सम्‍मान किया गया और बिहार चुनाव के मद्देनजर नीतीश कुमार को समर्थन देने की अपील भी की गई।

पूर्वांचल के मतदाताओं की संख्‍या 25 फीसदी से भी ज्‍यादा है। इसलिए हर पार्टी की इन पर नजर रहती है। उनके लिए छठ पर्व बड़ा राजनीतिक अवसर होता है।

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