कानून किस कदर अंधा होता है ये बात बॉम्बे हाईकोर्ट में दाखिल एक रिट को देखकर सहज ही समझी जा सकती है। मामला किस कदर उलझा हुआ था कि रिट का मजमून देख डबल बेंच की जस्टिसेज भी हैरत में रह गईं। उन्होंने तफसील से शख्स की अपील को देखा और फिर उसे रिहा कर दिया।
दरअसल मुंबई की एक जेल में पिछले 9 साल से बंद असलम सलीम शेख ने बॉम्बे हाईकोर्ट से अपील की थी कि उस पर रहम किया जाए। असलम को चोरी के 41 मामलों में 83 साल की सजा के साथ 1 लाख 26 हजार 400 रुपये का जुर्माना अदा करने की सजा अलग अलग अदालतों से सुनाई गई थी। अदालत के फैसलों के मुताबिक अगर वो जुर्माना नहीं भरता तो उसे कुल 93 साल की सजा काटनी होगी। खास बात है कि असलम शेख को ये सजा अलग-अलग केसों में दी गई थी। लेकिन ट्रायल कोर्ट ने अपने फैसलों में कहीं भी नहीं लिखा कि ये सजा एक साथ काउंट की जाएंगी।
शख्स ने की थी अपील- सारी सजाएं एक साथ चलें
असलम शेख ने बॉम्बे हाईकोर्ट के सामने अपने दर्द को बयां किया। उसकी अपील थी कि सजा एक साथ चलें। उसने कोर्ट से ये भी दरख्वास्त की थी कि अदालतों ने उसके ऊपर जो सवा लाख रुपये का जुर्माना लगाया है उसे खारिज किया जाए। वो बेहद गरीब परिवार से है। पिछले 9 साल से जेल में बंद है। उसके लिए मुमकिन नहीं है कि वो आज के हालात में इतनी सारी रकम का भुगतान कर पाए। लिहाजा उस पर रहम किया जाए।
2014 में हुआ अरेस्ट तो बालिग था असलम, नौ साल से जेल में है बंद
असलम शेख पिछले 9 साल से जेल में बंद है। वो पहली बार एक चोरी के केस में पकड़ा गया था। ये वाकया 2014 का है। तब वो नाबालिग था। असलम का कहना है कि पुलिस ने उसे बेवजह फंसाया था। तीन केस तब के हैं जब वो बालिग भी नहीं हुआ था। उसके बाद के दौर में 38 मामलों से भी उसका लिंक जोड़ दिया गया। मामले अलग-अलग अदालतों में गए। उसके पास पैसे नहीं थे तो वो वकील हायर नहीं कर सका। उसने सोचा कि अगर वो सभी मामलों में अपना जुर्म कबूल कर लेगा तो वो बरी हो जाएगा या फिर उसे कम से कम सजा होगी। लेकिन अलग-अलग अदालतों ने उसे 83 साल की सजा देने के साथ सवा लाख का जुर्माना भी लगा दिया। वो पहले से गरीब है। पैसा भर नहीं सकता तो उसे 93 साल जेल में काटने होंगे।
डबल बेंच भी मामले को देखकर हैरत में रह गई। दोनों जस्टिसेज का मानना था कि ये नाइंसाफी है। पुलिस ने जो भी केस दर्ज किए थे वो अज्ञात के खिलाफ थे। असलम एक केस में अरेस्ट क्या हुआ, उस पर सारे मामले थोप दिए गए। उसे लीगल एड मिल सकती थी लेकिन किसी भी कोर्ट ने गौर नहीं किया। ट्रायल कोर्ट ने ये भी नहीं देखा कि सजा अलग-अलग मामलों में है। लिहाजा ये एक साथ चलाई जानी चाहिए। अदालत का कहना था कि कानून का तकाजा है कि किसी भी मामले में सजा देने से पहले सुधार के पहलू को भी देखा जाए। असलम के मामले में ये किसी ने नहीं देखा।