अंधेरी पूर्व विधानसभा उपचुनाव के लिए उद्धव ठाकरे के गुट को जलती मशाल चुनाव चिह्न अलाट करने के फैसले को चुनौती देने वाली समता पार्टी की याचिका को दिल्ली हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है। अदालत ने कहा कि समता पार्टी विचाराधीन चिन्ह पर किसी भी तरह अपने दावे को सिद्ध करने में सफल नहीं हो सकी है। लिहाजा उसकी याचिका को खारिज किया जा रहा है।

समता पार्टी का गठन 1994 में हुआ था। उसी साल इसे मान्यता भी मिल गई। लेकिन 2004 में पार्टी की मान्यता रद्द कर दी गई थी। समता पार्टी ने 2009 और 2014 के लोकसभा चुनाव में भागीदारी की। लेकिन दोनों में उसे हार मिली। 2014 में उसका चुनाव चिन्ह जलती मशाल था पर 2020 दूसरे सिंबल पर लड़ा गया। उनके वकील ने अदालत में दलील दी कि 2014 में वो मशाल के चुनाव चिन्ह पर लड़े थे। चुनाव आयोग को इस चुनाव चिन्ह को फ्री करने से पहले नोटिस देना चाहिए था। उन्होंने आयोग से मिलने का समय मांगा था लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।

दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस संजीव नरूला ने कहा कि समता पार्टी ने मशाल चुनाव चिन्ह पर दावा किया था। इस चिन्ह को शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे गुट को दिए जाने पर आपत्ति जताई थी। लेकिन समता पार्टी की 2004 में मान्यता रद्द कर दी गई थी। अपने दावे को लेकर समता पार्टी कोई तथ्यात्मक दलील नहीं दे सकी।

ध्यान रहे कि शिवसेना पर एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे गुट के दावे के बाद विवाद शुरू हुआ था। चुनाव आयोग ने दोनों ही गुटों पर शिवसेना के अधिकारिक चुनाव चिन्ह धनुषबाण का इस्तेमाल करने पर रोक लगा दी थी। अंधेरी उपचुनाव के लिए आयोग ने उद्धव गुट को चुनाव चिह्न के साथ पार्टी का नया नाम भी मिला था।

उद्धव गुट की शिवसेना को शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे का नाम मिला था। उनको मशाल का चुनाव चिन्ह मिला था। दूसरी तरफ सीएम एकनाथ शिंदे गुट की शिवसेना को चुनाव आयोग ने बालासाहेबांची शिवसेना का नया नाम दिया था। एकनाथ शिंदे गुट को चुनाव चिन्ह तलवार और ढाल अलाट किया गया था।