असम में घुसपैठ करने वाले विदेशी मुस्लिमों के मामले में गुवाहाटी हाईकोर्ट ने एक अहम टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि अगर सरकार को लगता है कि ये लोग देश के लिए उपयोगी है सकते हैं तो इनका इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इनको पढ़ने लिखने का मौका दिया जाना चाहिए। कोर्ट ने सरकार से सवाल भी किया कि जब इन लोगों को वापस भेजने की प्रक्रिया शुरू ही नहीं हुई है तो इन्हें गिरफ्तार कैसे किया जा सकता है।
दरअसल हाईकोर्ट एक ऐसे शख्स के मामले की सुनवाई कर रहा था, जिसे असम पुलिस ने 2016 में इस आरोप में अरेस्ट किया था कि वो घुसपैठ करके सूबे में आया। मोरीगांव के एसपी ने मामले की रिपोर्ट फॉरेन ट्रिब्यूनल को भेजी। वहां से उसे विदेशी करार दिया गया, क्योंकि उसके दस्तावेजों में पिता का नाम सही नहीं था। शख्स ने फैसले को अदालत में चुनौती दी, जिसके बाद ये मामला हाईकोर्ट के सामने आया।
अदालत ने कहा- सरकार को करना चाहिए इनके रहने का इंतजाम
जस्टिस एएम बुजोर बरुआ और जस्टिस रॉबिन फुकन की बेंच ने कहा कि विदेशी करार दिए गए मुस्लिमों को कानूनी प्रक्रिया पूरी होने तक देश में रखना पड़ता है तो उन्हें मानवीयता के तहत सुविधाएं दी जाए। लेकिन अदालत ने ये भी कहा कि ये लोग मानवाधिकारों की आड़ में ऐसी मांग नहीं करेंगे जो उन्हें नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने केंद्र को कहा कि फॉरनर्स एक्ट के सेक्शन 3(2)(e) के तहत इन लोगों के रहने का इंतजाम करना चाहिए।
सरकारी वकील बोले- विदेशी घोषित होने के बाद अपने आप छिन जाती है संपत्ति
केंद्र की तरफ से पेश डिप्टी सॉलीसिटर जनरल आरकेडी चौधरी ने कहा कि 1951 के बाद से मुस्लिमों की तादाद असम में तेजी से बढ़ी। विदेश से घुसपैठ करने वाले लोग सूबे को देश से काटने के लिए यहां आए थे। उनका कहना था कि अगर कोई शख्स विदेशी करार दिया जा चुका है तो उसे संविधान के आर्टिकल 21 के तहत ही अधिकार मिल सकते हैं। ऐसे शख्स के पास अगर कोई प्रापर्टी थी तो वो अपने आप सरकार के पास चली जाएगी।
केंद्र की इस दलील पर हाईकोर्ट ने कहा कि संपत्ति का मालिकाना हक और ऐसे लोगों को रहने का अधिकार देना अलग अलग चीजें हैं। सरकार को चाहिए कि जब तक ऐसे लोगों को उनकी मूल जगह पर नहीं भेज दिया जाता तब तक उनके रहने का इंतजाम किसी जगह पर हो।