कोरोना की दूसरी लहर में सिस्टम कितना लचर हो चुका है, इसकी बानगी एक्टर राहुल की फेसबुक पोस्ट से मिल जाती है। वो बखूबी जान गए थे कि उनका अंतिम समय नजदीक है। लेकिन दुनिया को अलविदा कहने से पहले उन्होंने सरकारों के मुंह पर जो तमाचा मारा वो लंबे अर्से तक लोगों के जहन में रहेगा। हालांकि, इससे सिस्टम चला रहे लोगों को ज्यादा फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि उन्हें आदत जो है।
राहुल ने अपने अंतिम क्षणों में लिखा- मुझे भी अच्छा इलाज मिल जाता तो मैं भी बच जाता। 35 वर्षीय एक्टर ने अपनी पोस्ट में अस्पताल, बेड का ब्योरा देते हुए पीएम मोदी और दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसौदिया को भी टैग किया है। इसके नीचे भावविहल करने वाला संदेश लिखा- जल्द जन्म लूंगा और अच्छे काम करूंगा। अब हिम्मत हार चुका हूं। उनकी पोस्ट पर रिएक्ट करते हुए कई यूजर्स ने उन्हें अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की तो कईयों ने सिस्टम पर अपनी भड़ास निकाली। ज्यादातर का मानना था कि सिस्टम ध्वस्त हो चुका है।
राहुल वोहरा आठ दिनों तक दिल्ली में ताहिरपुर स्थित राजीव गांधी अस्पताल में भर्ती थे लेकिन वो अस्पताल के इलाज से नाखुश थे। वो किसी अच्छे अस्पताल में भर्ती होकर अपना इलाज करवाना चाहते थे। राहुल ने चार मई को अस्पताल में भर्ती होने के बाद फेसबुक पोस्ट पर लिखा था- मैं कोविड पॉजिटिव हूं। एडमिट हूं। लगभग चार दिनों से कोई रिकवरी नहीं है। क्या कोई ऐसा अस्पताल है जहां ऑक्सीजन बेड मिल जाए, क्योंकि यहां मेरा ऑक्सीजन लेवल लगातार गिरता जा रहा है और कोई देखने वाला नहीं है।

एक हफ्ते पहले बुखार और कोरोना के अन्य लक्षणों के चलते वो राजीव गांधी अस्पताल में दाखिल हुए थे। कोरोना की वजह से राहुल के फेफड़े 95 फीसदी तक क्षतिग्रस्त हो चुके थे। उन्हें अच्छा इलाज मिल जाता तो रिकवरी होने के चांस बन जाते, लेकिन टीवी पर सारा दिन अपनी उपलब्धियों का ब्योरा देने वाली दिल्ली सरकार के पास उनके सवालों का कोई जवाब नहीं होगा। बीजेपी के नेता तो खैर किसी भी जवाबदेही से ही कतरा रहे हैं। उनका जिक्र ही बेकार है।

अस्मिता थिएटर ग्रुप के प्रमुख और निर्देशक अरविंद गौड़ ने राहुल की मौत के सिलसिले में एक टीवी चैनल से कहा- राहुल को शनिवार को राजीव गांधी अस्पताल से निकालकर दिल्ली के द्वारका स्थित आयुष्मान अस्पताल में भर्ती कराया था। लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका। सूत्रों का कहना है कि राहुल आखिरी क्षणों तक उम्मीद लगाए थे कि कहीं न कहीं से कोई मदद तो मिलेगी। जब उम्मीदें दम तोड़ गईं तभी उन्होंने दिल को झकझोर करने वाली पोस्ट लिखी।
राहुल एक यूट्यूबर, सोशल मीडिया पर अक्सर एक्टिव रहने वाले अभिनेता के तौर पर अपनी पहचान रखते थे। वो 2006 से 2011 के बीच अरविंद गौड़ के थिएटर ग्रुप से जुड़े रहे। राहुल ने उनके साथ कई नाटकों में काम किया था। उन्होंने नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई फिल्म ‘अनफ्रीडम’ में भी काम किया था।
उत्तराखंड के एक छोटे से गांव से ताल्लुक रखनेवाले राहुल वोहरा को वर्तमान की सामाजिक परिस्थितियों व मुद्दों पर वीडियोज बनाने के लिए जाना जाता था। उनके बनाए ‘तलाक’, ‘पाकिस्तान चले जाओ’, ‘वो हमारे कभी नहीं हो सकते’ जैसे वीडियोज काफी लोकप्रिय हुए थे। राहुल वोहरा शादीशुदा थे। उन्होंने ज्योति तिवारी नाम की लेखिका से शादी की थी।

