Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट में कभी-कभार ऐसे मामले सामने आते हैं, जिससे कोर्ट भी हैरान रह जाता है। ऐसा ही कुछ मामला शीर्ष अदालत में सामने आया है। जिसने जजों को भी हैरत में डाल दिया। एक मामले में पेश हुए याचिकाकर्ता ने दावा कि उन्होंने कोई याचिका फाइल ही नहीं की और ना ही वह वकालतनामा में शामिल किसी वकील को जानते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी मामले पर हैरानी जताते हुए वकीलों को फटकार लगाई है।
साल 2019 में इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका फाइल की गई थी। इसमें याचिकाकर्ता का नाम भगवान दास बताया गया है था। रेप के एक मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आपराधिक केस ना चलाने का फैसला सुनाया था।
30 जुलाई को भगवान सिंह जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच के सामने अपने दो वकीलों के साथ पेश हुए। उनके वकीलों का नाम निखिल मजीठिया और ऋषि कुमार सिंह गौतम था। हालांकि वकालतनामा के अनुसार जिस वकील ने याचिका फाइल की थी वे गायब थे। 30 जुलाई को बेंच ने कहा कि वकालतनामा के मुताबिक जो वकील रिकॉर्ड में हैं, उन्हें पेश होना होगा। 31 जुलाई को फिर से सुनवाई शुरू हुई और इस केस का सारा मामला सामने आ गया।
9 जुलाई को याचिकार्ता ने सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री के जनरल सेक्रेटरी को पत्र लिखा था और कहा था कि उन्हें 3 जुलाई को पुलिस स्टेशन में बुलाया गाय था और उन्हें एक नोटिस दिया गया था। इसके बाद एक फार्म पर साइन करवाए गए थे। उन्होंने यह भी कहा था कि उन्होंने तत्काल कोई एसएलपी नहीं दायर की और ना ही किसी वकील को नियुक्त किया। उन्होंने किसी वकालतनामे पर साइन भी नहीं किए। उन्होंने कहा कि यह याचिका किसी साजिश के तहत दायर की है और ऐसे लोगों पर कार्रवाई होनी चाहिए।
जब बात सुप्रीम कोर्ट की बेंच को पता चली कि याचिकाकर्ता का दावा है कि उसने एसएसपी दायर ही नहीं की। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने एसएलपी के साथ दायर वकालतनामा पर याचिकाकर्ता के साइन को सत्यापित करने के लिए रजिस्ट्री की मूल प्रति मांगी है। वहीं जिस वकील के साइन वकालतनामे पर थे उसने दावा किया कि उन्हें किसी दूसरे वकील से भगवान सिंह के साइन समेत वकालतनामा मिला था। वे इलाहाबाद हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करते हैं।
इसके बाद जस्टिस त्रिवेदी ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा, जब सुप्रीम कोर्ट में ही प्रक्रिया का दुरुपयोग किया जा रहा है तो बाकी न्यायलयों का क्या होगा। उन्होंने कहा, सुप्रीम कोर्ट में आखिर किस तरह की संस्कृति विकसित की जा रही है। किसी के पास कोई जिम्मेदारी नहीं है। कहीं कोई भी पेश हो सकता है। ऑर्डर भी में 10 वकील सूचीबद्ध होंगे और कोई भी मौजूद नहीं रहेगा। एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड कभी मौजूद नहीं रहेगा। क्या सुप्रीम कोर्ट में इसी तरह काम किया जाता है?
अन्य वकीलों ने तर्क दिया कि वे भी दो वकील हैं। हालांकि जस्टिस त्रिवेदी ने इस हस्तक्षेप को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि आप कौन हैं। आप तथ्यों को नहीं जानते। जो वकील रिकॉर्ड में हैं वही जवाब दें। आप हस्तक्षेप ना करें। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उस वकील को हाजिर होना होगा जिसके लिए भगवान सिंह के साइन कराने के दावा किया गया है। इसके अलावा 9 अगस्त को सुनवाई को दौरान ऐडवोकेट ऑन रिकॉर्ड को भी मौजूद रहना होगा। भगवान सिंह से भी एक एफिडेविट फाइल करने को कहा गया है।