केंद्र सरकार हाइड्रोजन के इस्तेमाल से जुड़ी एक बड़ी योजना पर काम कर रही है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट 2021-22 के दौरान राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन की घोषणा की। ये मिशन देश की कुछ सबसे बड़ी कंपनियों जैसे रिलायंस, टाटा, महिंद्रा और इंडियन ऑयल को भी साथ ला सकता है। रिसर्चर चैतन्य गिरी, जिन्होंने मीथेन इकोनॉमी पर एक रिसर्च पेपर लिखा है, के मुताबिक वक्त की जरूरत है कि हाइड्रोजन काउंसिल या यूरोपीय हाइड्रोजन गठबंधन जैसा गठबंधन भारत में भी बने। उन्होंने कहा, “इंडियन ऑयल, टाटा, महिंद्रा जैसी कंपनियां – गठबंधन का हिस्सा बन सकती हैं। रिलायंस जैसी कैमिकल कंपनियाँ भी इसका हिस्सा हो सकती हैं।”

भारत को हाइड्रोजन गठबंधन की जरूरत क्यों है?: चैतन्य गिरी के मुताबिक कोई भी कंपनी और न ही कोई उद्योग इसे अकेले चला सकता है। आपको एक साथ काम करने के लिए ऑटो सेक्टर, ईंधन कंपनियों, विशेष कैमिकल और दूसरी कंपनियों की जरूरत है। हाइड्रोजन को इस्तेमाल करने लायक बनाने के लिए भारत को केवल ईंधन की जरूरत नहीं है। ऐसी कारों की जरूरत होगी जो इसे ईंधन के रूप में इस्तेमाल कर सकें।

गिरि बताते हैं यह तय करने के लिए ईंधन स्टेशनों और तकनीक की भी जरूरत है कि यह सुरक्षित रहे क्योंकि हाइड्रोजन एक विस्फोटक तत्व है। गिरि ने बताया कि जर्मनी जैसे देशों ने पहले ही दिखा दिया है कि हाइड्रोजन गठबंधन एक शानदार तरीका है।

गिरि ने बताया कि भारत इस मामले में नॉर्वे, स्वीडन या न्यूजीलैंड से भी मदद मांग सकता है। लेकिन भारत की आबादी और आकार को देखते हुए बड़ी परियोजनाओं को बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है। गिरि ने बताया कि इन देशों की आबादी भारत के शहरों की आबादी का सिर्फ एक-चौथाई है – नॉर्वे की आबादी 55 लाख है जबकि मुंबई में दो करोड़ से अधिक लोग हैं।

गिरि का मानना ​​है कि हाइड्रोजन को सुरक्षित बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय कंपनियों की मदद ली जा सकती है। ये कंपनियां बुनियादी ढांचे और स्टोरेज बनाने में मदद करेंगी। यह गैस ईंधन स्टेशन जैसे बुनियादी ढांचे के लिए अहम होंगी।