आरएसएस से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच (SJM) ने दिवाली के दौरान पटाखों पर दिल्ली सहित कई राज्य सरकारों द्वारा प्रतिबंध की घोषणा का विरोध करते हुए इसे अवैज्ञानिक बताया है। साथ ही SJM ने कहा कि इसका उद्देश्य भावनाओं को आहत करना था। SJM ने तर्क दिया है कि पहले चीनी पटाखों के कारण प्रदूषण होता था, जिन पर प्रतिबंध लगा दिया गया है और भारतीय पटाखों से ज्यादा प्रदूषण नहीं होता है।
एसजेएम के संयोजक अश्विनी महाजन ने कहा, “स्वदेशी जागरण मंच दीवाली के त्योहार के दौरान दिल्ली सरकार द्वारा पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध का कड़ा विरोध करता है। ये अनुचित है, जिसका उद्देश्य भावनाओं को आहत करना है और लाखों श्रमिकों और अन्य लोगों के रोजगार को झटका देना है।” एसजेएम ने राज्यों से ‘झूठे प्रचार’ के आधार पर पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध से बचने का आग्रह किया।
अश्विनी महाजन ने कहा, “हमें यह जानने की जरूरत है कि पटाखों से होने वाला प्रदूषण मुख्य रूप से चीन से अवैध रूप से आयातित पटाखों के कारण होता है, न कि भारत के ग्रीन पटाखों के कारण। चीनी पटाखों में पोटैशियम नाइट्रेट और सल्फर मिलाने से प्रदूषण होता है। आज भारत में बने ग्रीन (प्रदूषण रहित) पटाखों में पोटेशियम नाइट्रेट और सल्फर नहीं मिलाया जाता है और लिथियम, आर्सेनिक और मरकरी आदि को न्यूनतम तक कम कर दिया गया है। ये ग्रीन पटाखों को वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद, राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान द्वारा प्रमाणित किया जाता है। यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध है कि ग्रीन पटाखे 30 प्रतिशत कम प्रदूषण का कारण बनते हैं।”
एसजेएम ने तर्क दिया कि दिल्ली, हरियाणा और पंजाब सरकारें पराली जलाने पर रोक लगाने में विफल रही हैं। लेकिन वे पटाखों पर प्रतिबंध लगाने का आदेश देकर लोगों को गुमराह कर रही हैं। महाजन ने कहा, “बिना किसी संदेह के सिद्ध है कि दिल्ली और आसपास के उत्तरी राज्यों में पराली जलाना वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत बना हुआ है। दिवाली के अवसर पर वे पटाखों पर प्रतिबंध लगाने, वास्तविक कारण से ध्यान हटा कर लोगों को गुमराह करने का प्रयास करते हैं।” बता दें कि दिल्ली में पटाखे फोड़ने वाले को 200 रुपये जुर्माने के साथ 6 महीने की जेल भी काटनी पड़ सकती है।
महाजन ने आगे कहा, “हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि तमिलनाडु (शिवकाशी), पश्चिम बंगाल और देश के कई अन्य हिस्सों में दस लाख से अधिक लोगों की आजीविका पटाखा उद्योग पर निर्भर करती है। ये लोग अपने पटाखे बेचने के लिए साल भर दिवाली का इंतजार करते हैं। ऐसे में बिना वैज्ञानिक आधार के कम प्रदूषण फैलाने वाले हरे पटाखों पर प्रतिबंध लगाना समझदारी नहीं है।”