अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने फरवरी में दिल्ली में हुए दंगों को लेकर रिपोर्ट जारी की है। इसमें दिल्ली पुलिस पर दंगों के दौरान अपने अधिकारों का उल्लंघन करने का गंभीर आरोप लगा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिस खुद दंगाइयों के साथ हिंसा में शामिल रही। एमनेस्टी ने गृह मंत्रालय से पुलिस अधिकारियों पर लगे इन आरोपों की जल्द, विस्तृत और स्वतंत्र जांच की मांग की है।
गौरतलब है कि 23 फरवरी से 29 फरवरी तक दिल्ली दंगे में कम से कम 53 लोगों की मौत हो गई थी। इसे लेकर एमनेस्टी की 20 पन्ने की रिपोर्ट शुक्रवार को ही रिलीज की गई। इसमें पूर्वोत्तर दिल्ली में दंगों से प्रभावित लोगों के साथ बातचीत को शामिल किया गया है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि ज्यादातर लोगों ने इस बात पर आश्चर्य जाहिर किया कि गृह मंत्रालय ने अब तक दिल्ली पुलिस की जवाबदेही तय नहीं की है। वह भी तब जब पुलिस के मानवाधिकार उल्लंघन के कई वीडियो सोशल मीडिया पर लाइव स्ट्रीम किए गए थे।
रिपोर्ट में आरोप लगाया कि राजधानी के पुलिसकर्मियों ने गिरफ्तार किए गए लोगों को कस्टडी में रखकर टॉर्चर किया और सीएए का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों पर अत्याधिक बल का प्रयोग किया गया। जहां शांतिपूर्ण प्रदर्शन हो रहे थे, वहां भी पुलिस दंगाइयों को चुपचाप खड़े होकर तोड़फोड़ करते देखती रही।
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने मांग की जिन पुलिसवालों का पीड़ित समुदायों ने नाम लिया, उन्हें जब तक इन्क्वायरी पूरी नहीं हो जाती, तब तक निलंबित किया जाए। मानवाधिकार संस्था ने संसद से भी कानूनों को संशोधित करने की मांग की, जिससे पुलिस के सामुदायिक हिंसा की जांच और लोगों को हिरासत में रखने के नियमों को सख्त किया जा सके। रिपोर्ट में पीएम मोदी से अपील की गई कि संयुक्त राष्ट्र के टॉर्चर के खिलाफ अभियान को लागू किया जाए और टॉर्चर को आपराधिक जुर्म बनाया जाए।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि गृह मंत्री अमित शाह ने 36 घंटे के अंदर दंगों को नियंत्रित करने और उन्हें रोकने के लिए दिल्ली पुलिस की तारीफ की थी, लेकिन एमनेस्टी को मिली जानकारी में पुलिस की कोई शानदार भूमिका की बातें सामने नहीं आई। इसमें सिर्फ मानवाधिकार उल्लंघन की बातों का खुलासा हुआ।
गौरतलब है कि दिल्ली पुलिस अब तक दंगों से जुड़ी 750 एफआईआर दर्ज कर चुकी है। साथ ही 200 चार्जशीट भी दाखिल की जा चुकी हैं। कई छात्रों के साथ एकेडमिक्स और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं से पूछताछ हुई है और उनके नाम चार्जशीट में शामिल किए गए हैं। पुलिस का दावा है कि फरवरी की हिंसा केंद्र सरकार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम करने के लिए साजिशन की गई थी।