Political History: देश के पूर्व प्रधानमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्य अटल बिहारी वाजपयी की 1999 में महज एक वोट से सरकार गिर गई थी, जिसमें उनके ही घटक दलों की अहम भूमिका थी। हालांकि, अटल को भी यह एहसास नहीं था कि जो अविश्वास प्रस्ताव उनकी सरकार के खिलाफ लाया गया था, वह पास भी हो जाएगा और वे महज एक वोट से सरकार खो बैठेंगे। उस सियासी किस्से को लेकर हाल ही में एनसीपी नेता शरद पवार ने बड़ा दावा किया है।

एनसीपी चीफ ने कहा कि 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार गिराने में उनकी अहम भूमिका थी। उन्होंने हालांकि नाम तो नहीं लिया लेकिन यह कहा कि अविश्वास प्रस्ताव के मतदान से ठीक 10 मिनट पहले ब्रेक के दौरान उन्होंने एनडीए के एक सांसद से बात की थी, और उन्हें सरकार के खिलाफ वोट करने के लिए राजी किया था।

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क्यों संकट में आई थी वाजपयी सरकार?

दरअसल, अटल बिहारी वाजपयी सरकार के लिए मुसीबत तब शुरू हुई, जब एनडीए की अहम घटक पार्टी AIADMK की प्रमुख जयललिता ने बगावत कर दी थी। विनय सीतापति की किताब जुगलबंदी के अनुसार, जनता पार्टी के सुब्रमण्यम स्वामी ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की और उन्हें सरकार में तनाव से अवगत कराया और उन्हें यह विश्वास दिलाया कि वैकल्पिक सरकार भी बन सकती है।

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एक चाय पार्टी ने गिरा दी अटल सरकार

सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा रखी गई एक चाय पार्टी में सोनिया और जयललिता के बीच मुलाकात हुई थी, जबकि ये दोनों ही एक दूसरे को बिल्कुल पसंद नहीं करती थीं। इस मुलाकात ने ही वाजपयी और एनडीए सरकार की सियासी जमीन हिला दी थी। जयललिता ने जल्द ही घोषणा की कि उनके 18 सांसद वाजपेयी सरकार से हट रहे हैं, जिसके पास बहुत कम बहुमत था। साल 1998 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने 181 सीटें जीती थीं। कांग्रेस ने 141, CPI (M) ने 32, समाजवादी पार्टी ने 20, AIADMK ने 18, RJD ने 17, समता पार्टी ने 12 सीटें, CPI ने 9, अकाली दल ने 8, जनता दल ने छह और BSP ने 5 सीटें जीती थीं।

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अविश्वास प्रस्ताव 17 अप्रैल, 1999 को तय किया गया था। उस सुबह वाजपेयी ने उम्मीद नहीं खोई थी। तमिलनाडु में AIADMK के कट्टर प्रतिद्वंद्वी DMK ने एनडीए सरकार को समर्थन देने की घोषणा की थी। बीएसपी नेता कांशीराम ने भी प्रधानमंत्री को फोन किया और वादा किया कि बीएसपी के पांच सांसद मतदान से दूर रहेंगे, जिससे बहुमत का आंकड़ा कम हो जाएगा। ऐसा लग रहा था कि वाजपेयी मुश्किल से ही सही लेकिन जीत जाएंगे।

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कैसे फेल हुई NDA की प्लानिंग?

अटल के लिए जो दिन राहत भरा होना चाहिए थे, वो मुसीबत बन गया था, क्योंकि सोनिया गांधी के खिलाफ उनके आक्रामक भाषण के बाद उनके और नेता विपक्ष के बीच काफी टकराव हो गया। सबसे पहले आश्चर्य की बात यह रही कि ओडिशा के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री कांग्रेस के गिरधर गोमांग ने अभी तक कोरापुट से अपनी लोकसभा सदस्यता से इस्तीफा नहीं दिया था। गोमांग आखिरी क्षण में अपना वोट डालने सदन में आए, जिससे एनडीए की प्लानिंग गड़बड़ हो गई।

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इतना ही नहीं, वोटों की गिनती के दौरान ही यह सामने आया कि बीएसपी ने अपने वादे से मुकरकर सरकार के खिलाफ वोट देने का फैसला किया। तीसरा और शायद निर्णायक धमाका एनडीए की तरफ से हुआ। नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के सैफुद्दीन सोज, जो उस समय सत्तारूढ़ गठबंधन के घटक थे। उन्होंने ने भी अपनी पार्टी के निर्देशों के खिलाफ वोट दिया। हालांकि बाद में उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया था लेकिन अटल सरकार तो गिर ही गई थी।

नतीजा ये कि वाजपेयी सरकार एक वोट से हार गई, जिसके पक्ष में 269 और विपक्ष में 270 वोट पड़े। प्रधानमंत्री ने अविश्वास में आंकड़ों को देखा और कुछ नहीं कहा। हालांकि कोई वैकल्पिक सरकार नहीं बन पाई। इसलिए फिर से चुनाव हुए और वाजपेयी पहले से भी बड़े बहुमत के साथ सत्ता में लौटे। शरद पवार से जुड़ी अन्य खबरें पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।