West Bengal Voter List SIR: पश्चिम बंगाल में एसआईआर का पहला चरण पूरा हो गया है और मतदाता सूची का ड्राफ्ट जारी कर दिया है। इस ड्राफ्ट में पहले की वोटर लिस्ट में शामिल 58 लाख लोगों के नाम हटा दिए हैं। ड्राफ्ट जारी होने के बाद में बीजेपी समर्थक मानी जाने वाली बंगाल की अहम आबादी यानी मतुआ समुदाय के लोगों की चिंता बढ़ गई है और यह चिंता मोदी सरकार में मंत्री शांतनु ठाकुर के एक बयान ने बढ़ाई है, जिसके चलते लोग एसआईआर के तहत अपना नाम वोटर लिस्ट में शामिल कराने के लिए जद्दोजहद भी कर रहे हैं।
दरअसल, बोंगांव से सांसद और केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर, जो कि ठाकुर परिवार का हिस्सा हैं। उन्होंने कहा, “अगर 50 लाख पाकिस्तानी, बांग्लादेशी मुस्लिम और रोहिंग्या लोगों को मतदाता सूची से बाहर हो जाते हैं, या उनका वोट कट जाता है, तो मतलब ये है कि मेरे समुदाय के 1 लाख लोग अस्थायी रूप से मतदान के अधिकार से वंचित हो जाते हैं, तो कौन सा विकल्प अधिक लाभकारी है?”
BJP-TMC में बढ़ा टकराव
बुधवार को शांतनु ठाकुर ने दोहराया कि एसआईआर के दौरान मतदाता सूची से कई मतुआ समुदाय के लोगों के नाम हटाए जाने से कोई इनकार नहीं कर सकता और इसीलिए हम सभी से सीएए के तहत आवेदन करने को कह रहे हैं। इसी के बाद ठाकुरनगर में बीजेपी और टीएमसी कार्यकर्ताओं के बीच झड़प हो गई।
इसके अलावा टीएमसी की राज्यसभा सांसद और शांतनु ठाकुर की चाची ममता बाला ठाकुर ने बताया कि जब पार्टी के समर्थक स्पष्टीकरण मांगने केंद्रीय मंत्री के पास गए तो उनकी पिटाई की गई। दूसरी ओर भाजपा नेता ने अपनी चाची पर गुंडों को भेजकर उन पर हमला करवाने का आरोप लगाया।
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नागरिकता लेने के लिए चिंतित लोग
ठाकुरनगर के ठाकुरबाड़ी स्थित मतुआ मुख्यालय में स्थापित एक सहायता केंद्र में प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठे 75 वर्षीय मोतीलाल हलदर अपने कागजात हाथ में लिए हुए पूछते हैं कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के तहत किसी व्यक्ति को नागरिकता प्राप्त करने में कितना समय लगेगा। हलदर कहते हैं कि वे 1997 में बांग्लादेश से पश्चिम बंगाल आए थे और 2002 की मतदाता सूची में उनका नाम न होने के कारण मतदाता सूची के मौजूदा विशेष गहन संशोधन (एसआईआर) को लेकर वे बेहद चिंतित हैं।
अहम बात यह है कि हलदर इस परेशानी वाले अकेले व्यक्ति नहीं हैं बल्कि उनकी ही तरह उत्तरी 24 परगना जिले के ठाकुरनगर के मटुआ बहुल इलाके में रहने वाले हजारों मटुआ लोग जनगणना प्रक्रिया को लेकर अनिश्चितता में जी रहे हैं। मुस्लिम समुदाय भी चिंतित है, क्योंकि चुनाव आयोग ने जमा किए गए जनगणना प्रपत्रों में कई विसंगतियों का हवाला देते हुए कहा है कि वह दावा और आपत्ति चरण में सीमावर्ती जिलों पर ध्यान केंद्रित करेगा।
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BJP-TMC दोनों कर रहे अपना वोट बैंक बचाने का प्रयास
इसके बाद से ही मुस्लिम समाज के लोग भी सतर्क हैं। मुस्लिम समाज और मतुआ समुदाय दोनों ही अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिहाज से टीएमसी और बीजेपी के लिए अहम है, क्योंकि दोनों ही अलग-अलग दलों का अहम वोट बैंक माने जाते हैं। अगस्त से ही दोनों पक्ष हलदर जैसे लोगों की मदद के लिए कैंप लगा रहे हैं, ताकि मतदाता सूची से नाम हट जाने की स्थिति में उन्हें नागरिकता संबंधी कागजात मिल सकें।
टीएमसी और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का आरोप है कि एसआईआर प्रस्तावित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) की चुपके से एंट्री है, जिससे हजारों मतुआ समुदाय के लोग अपनी नागरिकता खो सकते हैं। वहीं बीजेपी ने समुदाय की चिंताओं को दूर करने के लिए आगे बढ़कर टीएमसी पर गलत सूचना फैलाने का आरोप लगाया है और कहा है कि सीएए से मतुआ समुदाय को नागरिकता मिल जाएगी।
‘मुझे देश से निकाला जाएगा?’
मोतीलल हलधर ने कहा, “मैंने सीएए के तहत आवेदन किया है। मैंने एसआईआर फॉर्म भी भर दिया है। मेरे दोनों बेटे भारत में पैदा हुए हैं। हम तीनों के पास वोटर आईडी कार्ड हैं। वे यहीं पैदा हुए हैं, इसलिए उन्हें यहां रहने की अनुमति मिल जाएगी लेकिन मेरे पास यहां जमीन से संबंधित एक सबूत के अलावा कोई सबूत नहीं है, जिसे मैंने 2014 में खरीदा था। अगर मुझे वोटर कार्ड रखने की अनुमति नहीं दी जाती है और फिर यहां रहने की अनुमति नहीं दी जाती है, तो मैं कहां जाऊंगा? उन्होंने कहा कि सीएए आवेदन पर कार्रवाई में चार से छह महीने लगेंगे। क्या मतदाता सूची से अपना नाम हटवाने पर मुझे देश से निकाल दिया जाएगा?’
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CAA से नागरिकता में लग रहा समय
ठाकुरबाड़ी में अखिल भारतीय मतुआ महासंघ द्वारा स्थापित शिविर में मौजूद स्वयंसेवकों में से एक 31 वर्षीय अर्घ्यदीप मंडल का भी कहना है कि सीएए के तहत नागरिकता प्राप्त करने में चार से छह महीने लगेंगे। उनका दावा है कि पिछले चार महीनों में 2,000 से अधिक आवेदन दाखिल किए गए हैं। नादिया निवासी 55 वर्षीय फुलमोनी रॉय का कहना है कि उनके पास मतदाता कार्ड नहीं है। उन्होंने कहा कि मेरे पास केवल मतुआ कार्ड और हिंदू कार्ड है जो महासंघ ने हमें दिया है। चूंकि मेरा नाम यहां की मतदाता सूची में नहीं है, इसलिए मेरे नाम से कोई जनगणना प्रपत्र जारी नहीं किया गया। मुझे नहीं पता कि अब क्या करूं।
गैघाटा बस स्टैंड के पास बारासात निवासी 45 वर्षीय सोनाली रानी बिस्वास का कहना है कि उन्होंने भी सीएए के तहत नागरिकता के लिए आवेदन किया है और चुनाव आयोग द्वारा तलब किए जाने पर ही वह 2014 में उनके परिवार द्वारा यहां खरीदी गई जमीन के पंजीकरण दस्तावेज प्रस्तुत कर सकती हैं। उन्होंने कहा कि हमें नहीं पता कि उसके बाद क्या होगा।
मतुआ वोट बैंक की 30 से ज्यादा सीटों पर है प्रभाव
इतना ही नही, राज्य के सबसे बड़े अनुसूचित जाति समूह नामाशुद्रों में मतुआ समुदाय का सबसे बड़ा हिस्सा है। BJP की चुनावी योजनाओं में मतुआ समुदाय की अहम भूमिका है, क्योंकि पार्टी मतुआ समुदाय को केंद्र में रखकर अखिल हिंदू समर्थन आधार बनाना चाहती है। इसलिए बीजेपी मतुआ समुदाय के बीच एसआईआर (SIR) को लेकर फैली चिंताओं को दूर करने और समुदाय के सदस्यों को मताधिकार से वंचित करने के कथित प्रयासों के लिए भाजपा को दोषी ठहराने के टीएमसी के प्रयासों का मुकाबला करने की पूरी कोशिश कर रही है।
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राज्य सरकार का अनुमान है कि मतुआ समुदाय राज्य के मतदाताओं का लगभग 17% हिस्सा है और 30 विधानसभा क्षेत्रों में उनकी अच्छी खासी उपस्थिति है, जबकि समुदाय का अपना अनुमान है कि वे मतदाताओं का लगभग 20% हिस्सा हैं और 40-45 सीटों पर उनका प्रभाव पड़ने की संभावना है।
ड्राफ्ट में मुस्लिम समाज के लोगों की क्या हैं दिक्कतें?
हालांकि, वोटर लिस्ट की ड्राफ्ट सूची में मुस्लिम बहुल विधानसभा सीटों में डिलीटेशन की दर दिखाई गई लेकिन जनगणना प्रपत्रों में कथित विसंगतियों को लेकर चुनाव आयोग द्वारा नियोजित सुनवाई ने उत्तर 24 परगना में अल्पसंख्यक समुदाय के बीच भी चिंता पैदा कर दी है। दत्तपुकुर कस्बे में रहने वाले 56 वर्षीय अंसार अली मोल्लाह का कहना है कि उन्हें समन जारी होने का डर है, क्योंकि 2002 की मतदाता सूची में उनका नाम मोहम्मद अंसारी अली मोल्लाह दर्ज है। 45 वर्षीय मोहम्मद अबुल कलाम के लिए भी पिता के नाम में विसंगति चिंता का विषय है।
चुनाव आयोग जिन तार्किक विसंगतियों” की जांच कर रहा है, उनमें से एक है छह से अधिक बच्चों वाले मतदाता। 37 वर्षीय स्कूली शिक्षक जहांगीर हुसैन कहते हैं कि हम 10 भाई-बहन हैं। हमें सुनवाई के लिए बुलाया जा सकता है और यही चिंता का कारण है। हमारे पास सभी दस्तावेज हैं, लेकिन घंटों कतार में खड़े होकर कागजात दिखाना किसी उत्पीड़न से कम नहीं है। इलाके के कुछ लोगों का यह भी दावा है कि पिछले दो दशकों में सीमा पार करके आए लोगों के नाम भी भर्ती सूची में शामिल हैं।
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