सुरेंद्र किशोर
बिहार सरकार ने यह कहकर लोगों को चौंका और एक हद तक डरा भी दिया है कि गांधी सेतु किसी भी दिन ठप हो जाएगा। राज्य सरकार का आरोप है कि केंद्र सरकार की उदासीनता के कारण यह पुल वेंटिलेटर पर है। बिहार के पथ निर्माण मंत्री राजीव रंजन सिंह ने सही समय पर चेतावनी दी है। सही समय यानी ठप होने से ठीक पहले। पुल से गुजरने वाले लोगबाग इन दिनों यही कहते हैं कि पुल किसी भी समय ढह सकता है। यह पुल उत्तर और दक्षिण बिहार की लाइफ लाइन है। इसके बावजूद पिछले कई साल से पटना स्थित गांधी सेतु की जो जर्जर हालत है, उससे आम जन रोज-रोज पीड़ित होते रहते हैं। इस समस्या के स्थायी समाधान के लिए केंद्र और राज्य सरकार ने मिलकर अब तक कुछ भी ठोस नहीं किया है। कई बार तो दोनों सरकारें इसको लेकर आपस में जुबानी मल्लयुद्ध भी करती रही हैं।
कुछ महीने पहले बिहार सरकार के एक बड़े अफसर ने कहा था कि गांधी सेतु के समानांतर दो पीपा पुल बनाने के प्रस्ताव पर विचार किया जाएगा। पर वह प्रस्ताव भी धरा का धरा ही रह गया। इस देश में कोई कायदे की सरकार होती तो इस विकट स्थिति को देखते हुए यहां लोहे का अस्थायी पुल बनाने के लिए अब तक सेना की मदद ले ली गई होती। पर लगता है कि उसके लिए किसी बड़े हादसे की प्रतीक्षा की जा रही है। इस पुल के ढह जाने के बाद उत्तर बिहार का राजधानी पटना से संपर्क सुगम नहीं रह जाएगा। लोगों को मोकामा पुल से गुजरना पड़ेगा जो पटना से सौ किलोमीटर पूर्व स्थित है। मोकामा पुल की हालत भी जर्जर ही है। उस दिन की कल्पना से ही कई लोगों को ठंड में पसीने छूटने लगते हैं।
बिहार से केंद्र में मंत्रियों की संख्या इन दिनों सात है। इनमें से राम विलास पासवान, राधामोहन सिंह, राजीव प्रताप रूड़ी और उपेंद्र कुशवाहा तो उत्तर बिहार के ही हैं। इन्हें प्रभावशाली भी माना जाता है। पर लगता है कि इस पुल के लिए वे अपने प्रभाव का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। गत छह महीनों में इस पुल को बचाने के लिए इन मंत्रियों ने क्या किया, यह सवाल इन लोगों से पूछा जाना चाहिए। क्या वे बिहार विधानसभा के 2015 के चुनाव और उसके नतीजे का इंतजार कर रहे हैं?
नरेंद्र मोदी की सरकार काम करने वाली सरकार बताई जा रही है। कुछ काम हो भी रहे हैं। एक केंद्रीय मंत्री ने हाल में देश को बताया भी कि नरेंद्र मोदी न तो खुद सोते हैं और न ही वे किसी मंत्री को सोने देते हैं। ढाई महीने पहले पथ परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने आश्वासन दिया था कि पटना के गांधी सेतु के रखरखाव का जिम्मा एनएचआइ अपने हाथ में ले लेगी। पर, अब तक उस दिशा में क्या हुआ? बिहार सरकार को इस बात की कोई सूचना नहीं है। क्या बिहार से केंद्रीय मंत्री गण गडकरी साहब से पूछेंगे? या फिर गडकरी साहब को सोने की पूरी छूट दे दी गई है?
बिहार से केंद्रीय मंत्री गण रेल मंत्री से यह सवाल पूछेंगे कि दीघा-पहलेजा रेल सह सड़क पुल के निर्माण की गति को तेज करने के काम में कौन सी बाधाएं हैं जबकि बिहार सरकार दीघा-पटना रेल लाइन की जमीन के बदले उसे पैसे देने को तैयार है? बिहार सरकार चाहती है कि उन पैसों का इस्तेमाल सिर्फ दीघा पुल के शीघ्र निर्माण में ही हो। यदि दीघा-पहलेजा पुल समय पर बन गया होता तो गांधी सेतु का विकल्प खड़ा हो चुका होता।
अस्सी के दशक में पटना में गंगा नदी पर निर्मित गांधी सेतु वर्षों से उपेक्षित रहा है। यह पुल भ्रष्टाचार और काहिली का भी शिकार होता रहा है। इसके लिए केंद्र सरकार और बिहार सरकार दोनों जिम्मेदार रही हैं। पर आम धारणा है कि अधिक जिम्मेदारी केंद्र सरकार की ही बनती है।