मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जिन्हें प्रदेश के लोग मामा कहकर पुकारते हैं.फिलहाल अपनी सियासत के बदलते दौर से गुज़र रहे हैं। कभी अपनी नीतियों योजनाओं और उदार स्वभाव को लेकर चर्चा में रहे शिवराज सिंह चौहान की सियासत का रुख अब हिन्दुत्व की ओर मुड़ा हुआ दिखाई दे रहा है। इसका ताजा उदाहरण दमोह के स्कूल के कैंपस में खड़ा बुलडोजर है।
दमोह के एक स्कूल ने 10 वीं क्लास में पास हुए अपने छात्रों का एक पोस्टर लगाया था, जिसमें उन छात्रों को शामिल किया गया था जिन्हें अच्छे मार्क्स हासिल हुए हैं। विवाद इस बात पर हुआ कि इन छात्रों में कुछ हिन्दू छात्राएं भी थी, और उन्होने हिजाब पहना हुआ था।
इस बात को लेकर एक तबका खासा नाराज़ हुआ और स्कूल के खिलाफ कार्रवाई की मांग की जाने लगी। हालांकि प्रशासन ने शुरू में गंगा जमुना हायर सेकेंडरी स्कूल को क्लीन चिट दे दी थी. लेकिन दक्षिणपंथी लोगों के दबाव ने शिवराज सरकार को कार्रवाई करने पर मजबूर कर दिया।
ऐसे तो नहीं थे मध्यप्रदेश के ‘मामा’
भाजपा के मजबूत नेताओं में शुमार शिवराज सिंह चौहान एक मंझे हुए राजनेता हैं। उन्होने मोदी-शाह शासन के तहत बहने वाली नई हवा को महसूस किया है। कांग्रेस से 2018 के चुनाव हारने के बाद उनका रुख तेज़ी से बदला है। हालांकि 2020 में कांग्रेस सरकार के गिर जाने के बाद वह एक बार फिर मुख्यमंत्री बनाए गए थे।
लेकिन अपने शासन के आखिरी पड़ाव में उनके लिए यह रास्ता बहुत आसान नहीं दिखाई देता है। इसके कई अहम कारण हैं। एक बार फिर सत्ता में लौटने के बाद शिवराज सिंह के लिए पार्टी के भीतर और बाहर मुश्किलें रही हैं। केंद्र के साथ कनेक्शन बेहतर रखने के साथ अब शिवराज सिंह ने भी हिन्दुत्व का रास्ता चुन लिया है। ऐसे लिखने की क्या वजह है आइए समझते हैं।
इसका ताज़ा उदाहरण दमोह स्कूल है। जहां शिवराज सिंह चौहान राइट विंग संगठनो के दबाव में दिखाई दिए हैं। दूसरी तरफ कामनाथ और कांग्रेस ने भी हिन्दुत्व की ओर कदम बढ़ाए हैं।
शिवराज सिंह चौहान 2005 में जब पहली बार मुख्यमंत्री बने थे, तब अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की जोड़ी थी। उस वक़्त शिवराज सिंह चौहान ने अपना फलसफा सभी के काम आने और सभी को साथ लेकर चलने के तौर पर रखा था। यह वही शिवराज थे जिन्हें ना इफ्तार से परहेज था और ना ही टोपी लगाने में दिक्कत थी।
शिवराज सिंह चौहान को उनकी कल्याणकारी योजनाओं के लिए जाना जाता था। चाहे ये योजना गरीबों के लिए 1 रुपये प्रति किलो चावल हो, संबल योजना हो-जिसमें महिला मजदूरों को 16,000 रुपये का मातृत्व सहायता दी जाती, गरीब लड़कियों के लिए मुफ्त शिक्षा हो या 200 रुपये प्रति माह की दर से बिजली हो। अपनी योजनाओं के रहते वह मामा कहलाने लगे।
2014 के से पहले जब नरेंद्र मोदी बहुमत के साथ सत्ता में आए थे. मोदी और चौहान को एक नज़र से देखा जाता था.दोनों का राजनीतिक कद भी एक था. लेकिन 2014 के बाद माहौल बदल गया और शिवराज सिंह चौहान कहीं पीछे छूटने लगे। हालाँकि उन्हें शुरू में संसदीय बोर्ड का हिस्सा बनाया गया था, जो पार्टी की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था थी, लेकिन अगस्त 2022 में मोदी-शाह के तहत इसका पुनर्गठन किया गया तो चौहान का नाम इसमें नहीं था।
कैसे बदलते गए शिवराज सिंह चौहान
वक्त ने शिवराज सिंह चौहान को काफी बदलते देखा है। वह ठीक उस राह पर दिखाई देते हैं जहां यूपी के मुख्यमंत्री योगी हैं। अपराधियों से लड़ने के तरीकों में बुलडोज़र का यूज़ पहले यूपी में हुआ और ठीक यही तरीका शिवराज सिंह चौहान ने भी अपना लिया है। उनकी सरकार ने सांप्रदायिक हिंसा के दौरान कथित पत्थरबाजों के घरों और संपत्तियों को ध्वस्त करने के लिए बुलडोजर का इस्तेमाल किया है। अगर आदित्यनाथ ने खुद को “बुलडोजर बाबा” उपनाम दिया, तो चौहान को “बुलडोजर मामा” कहा जाने लगा है। और भी कई ऐसे उदाहरण हैं।