Ladakh Controversy: लद्दाख बीजेपी के लिए लंबे वक्त से एक अहम राजनीतिक टारगेट रहा था और बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में उसने यह किला फतह कर लिया था। उस चुनाव में बीजेपी के प्रत्याशी जामयांग त्सेरिंग नामग्याल की जीत हुई थी। उस सफलता के 11 साल बाद बीजेपी के लिए यहां स्थिति काफी ज्यादा बदल गई है और यहां के पार्टी के नेता भी आंतरिक तौर पर नाराजगी जाहिर करते नजर आते हैं।

अहम बात यह है कि बीजेपी की लद्दाख में अस्थिरता को करीब से देखने वाले स्थानीय भाजपा नेताओं ने निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि पार्टी इस विवाद को संवेदनशीलता से संभालने में विफल रही है बल्कि उन मतदाताओं को भी खोया है, जो कि बीजेपी पर विश्वास करते थे।

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RSS का अहम प्रोजेक्ट

अविभाजित जम्मू कश्मीर हमेशा से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एक वैचारिक प्रोजेक्ट रहा है। आरएसएस एवं बीजेपी ने लेह को कांग्रेस से दूर करने के लिए उसकी केंद्रशासित प्रदेश और पर्वतीय परिषद का दर्जा पाने की इच्छा को स्वीकार किया था और उसे जम्मू-कश्मीर से अलग कर केंद्रशासित प्रदेश बना दिया था। आरएसएस ने लद्दाख बौद्ध संघ को समर्थन दिया था। इसके प्रमुख चेरिंग दोरजे लकरुक और थुपस्तान छेवांग सहित एलबीए के कई नेता बीजेपी में शामिल हुए थे। छेवांग वर्तमान में लेह स्थित सर्वोच्च निकाय के अध्यक्ष हैं, जबकि लकरुक इसके सह-अध्यक्ष हैं।

पार्टी से अलग होकर मांग उठा रहे

5 अगस्त 2019 को जब जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त कर दिया गया और राज्य को लद्दाख सहित दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया, तो लेह में इस कदम का जश्न मनाया गया और एलबीए ने इसे अपने लंबे संघर्ष की सफलता बताया। अब छेवांग, लकरुक और बीजेपी के अन्य पूर्व सहयोगी पार्टी से अलग हो चुके हैं और लद्दाख को राज्य का दर्जा दिलाने और उसे संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने के अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं। छठी अनुसूची राज्य के भीतर विधायी, न्यायिक और प्रशासनिक स्वायत्तता के साथ स्वायत्त जिला परिषदों के गठन का प्रावधान करती है।

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बीजेपी नेता बोले-पहले ही माननी चाहिए मांगें

कई बीजेपी नेताओं ने बताया कि केंद्र शासित प्रदेश को छठी अनुसूची में शामिल करने का वादा पार्टी ने स्वयं कई घोषणापत्रों में किया था, साथ ही मोदी सरकार के तहत राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (एनसीएसटी) की भी यह सिफारिश थी। बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने का वादा करने के बाद सरकार को इसे टालना नहीं चाहिए था। हमें ऐसी पार्टी और सरकार के रूप में नहीं देखा जा सकता जो अपने वादे पूरे नहीं करती।

लेह में हिंसा की वजह बना अहंकार

इसके अलावा सरकार की आलोचना करते हुए एक अन्य नेता ने कहा कि यह उनका अहंकार ही है जिसकी वजह से 24 सितंबर को लेह में हिंसा हुई। अब सब कुछ बिगड़ चुका है। नंद कुमार साईं 2019 में एनसीएसटी के अध्यक्ष थे। उन्होंने लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने की सिफारिश की थी। उन्होंने कहा कि अगर इस सुझाव पर अमल किया गया होता, तो लद्दाख में इतनी हिंसा नहीं होती। बीजेपी नेता और पूर्व राज्यसभा सांसद साईं ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि आयोग ने इस मुद्दे को इसलिए उठाया क्योंकि इसकी भारी मांग थी। अब तक छठी अनुसूची का दर्जा मिल जाना चाहिए था।

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3 दिसंबर, 2019 को तत्कालीन केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने लोकसभा को एनसीएसटी की सिफ़ारिशों से अवगत कराया था। साथ ही रेड्डी ने ज़ोर देकर कहा था कि 1997 के लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद (एलएएचडीसी) अधिनियम और उसके बाद के संशोधनों के बाद, इसकी परिषदों की शक्तियाँ “कमोबेश” छठी अनुसूची के लाभों के बराबर हो गई हैं। रेड्डी ने कहा कि 2018 में एलएएचडीसी अधिनियम में संशोधन के बाद, ये परिषदें शायद देश की सबसे सशक्त स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषदें हैं।

केंद्र के टालमटोल से लोगों में गुस्सा

हालांकि 2020 में जब लेह हिल काउंसिल के चुनाव हुए तो बीजेपी ने खुद छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक सुरक्षा उपायों का वादा किया था। पार्टी चुनाव जीत गई। साल 2022 में गृह मंत्रालय ने एक और मोड़ लेते हुए कहा कि छठी अनुसूची का मुख्य उद्देश्य जो कि जनजातीय आबादी का सशक्तिकरण करके उनका सामाजिक-आर्थिक विकास सुनिश्चित करना था, वह लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन के निर्माण के बाद पहले ही पूरा हो चुका है। केंद्र की टालमटोल के ख़िलाफ़ नाराज़गी का मतलब है कि बौद्ध बहुल लेह और मुस्लिम बहुल कारगिल ज़िले अब अपनी मांगों को लेकर एकजुट हो गए। कारगिल की तरफ़, कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व कर रहा है।

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इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कम से कम तीन नेताओं ने पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की गिरफ़्तारी पर भी सवाल उठाए। एक नेता ने इसकी वजह को “अविश्वसनीय” बताते हुए कहा कि कुछ महीने पहले तक तो पार्टी ही सोशल मीडिया पर उन पर रील बना रही थी। अब उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून (एनएसए) के तहत गिरफ़्तार कर लिया गया है। वांगचुक ख़ुद मोदी सरकार के मुखर समर्थक थे, उन पर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने हिंसा भड़काने का आरोप लगाया और उनके पाकिस्तान से संबंध होने के आरोप भी लगाए हैं। एनएसए के तहत गिरफ्तारी के बाद सोनम वांगचुक को आनन-फानन में जोधपुर शिफ्ट किया गया था।

पूरे मामले की जांच की उठी मांग

बीजेपी नेता साई ने कहा कि इन सबका मतलब है कि 2019 के बाद से बहुत कुछ बिगड़ चुका है। कई चीज़ें नियंत्रण से बाहर हो गई हैं। केंद्र को सभी पक्षों से बात करनी चाहिए और इस बात की जांच करनी चाहिए कि 24 सितंबर का विरोध प्रदर्शन कैसे हिंसक हो गया। उन्होंने आगे कहा कि वह कुछ बाहरी ताकतों के शामिल होने से इनकार नहीं कर रहे हैं। उन्होंने आगे कहा कि इस बात की जांच होनी चाहिए कि ऐसे विरोध प्रदर्शनों को किसने प्रेरित किया, क्या सोनम वांगचुक बाहरी ताकतों के प्रभाव में आए हैं।

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