कई राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले मोदी सरकार किसान आंदोलन को खत्म करवाने की पूरी कोशिश कर रही है। किसानों के आंदोलन के बीच, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने संयुक्त किसान मोर्चा को एक मसौदा प्रस्ताव भेजा है, जिसमें मुआवजे, एमएसपी और पुलिस द्वारा दर्ज मामलों को वापस लेने समेत किसानों की अधिकांश मांगों को कुछ शर्तों के साथ स्वीकार कर लिया गया है।
यह कहते हुए कि उन्हें पहली बार सरकार की तरफ से लिखित आश्वासन मिला है, एसकेएम ने इस पर कुछ स्पष्टीकरण मांगे हैं और यह भी साफ किया है कि प्रदर्शनकारी किसानों के खिलाफ दर्ज सभी मामले वापस लिए बिना आंदोलन को खत्म करने का कोई सवाल ही नहीं है।
एक बयान के मुताबिक, “संयुक्त किसान मोर्चा को सरकार की तरफ से सकारात्मक प्रतिक्रिया की उम्मीद है।” आगे की चर्चा के लिए एसकेएम नेतृत्व बुधवार दोपहर एक बैठक करेगा। इस बैठक में प्रस्ताव के जिन बिंदुओं पर संदेह था उन्हें स्पष्टीकरण के लिए सरकार को भेजा जाएगा।
सभी कृषि उत्पादों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी देने वाले कानून के संबंध में उनकी प्रमुख मांग पर, सरकार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक समिति की घोषणा की ओर इशारा किया है। सरकार की तरफ से कहा गया है कि समिति में केंद्र के सदस्य, राज्य सरकारें, किसान संगठनों के प्रतिनिधि और कृषि विशेषज्ञ शामिल होंगे।
वहीं, एसकेएम की आशंका यह है कि सरकार समिति को ऐसे किसानों से शामिल करने की कोशिश करेगी जो अब निरस्त किए गए कृषि कानूनों के समर्थन में थे और एमएसपी के खिलाफ हैं। द टेलीग्राफ के मुताबिक, ”भारतीय किसान यूनियन के धर्मेंद्र मलिक ने कहा, ” एसकेएम ने पूरे देश में इस आंदोलन का नेतृत्व किया, इसलिए इस समिति में केवल हमारे संघ के नेताओं को शामिल किया जाना चाहिए। हमें इस समिति में किसान प्रतिनिधियों को तय करने की अनुमति दी जानी चाहिए।”
एसकेएम के एक अन्य प्रमुख घटक, अखिल भारतीय किसान सभा के अध्यक्ष अशोक धावले के अनुसार, मामलों को वापस लेने की शर्त अस्वीकार्य है क्योंकि किसानों को इसको लेकर आशंका है कि एक बार आंदोलन समाप्त हो गया तो इसे स्वीकार नहीं किया जाएगा। आधिकारिक प्रस्ताव में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश और हरियाणा की सरकारों ने कहा है कि विरोध प्रदर्शन समाप्त होने के बाद सभी मामले वापस ले लिए जाएंगे।