नरेंद्र मोदी सरकार में नए गृह मंत्री अमित शाह इन दिनों एक्शन मोड में नजर आ रहे हैं। वह जम्मू और कश्मीर में परिसीमन आयोग के गठन की दिशा में काम कर रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मंगलवार (चार जून, 2019) को इस बाबत गृह मंत्री की अध्यक्षता में एक बैठक हुई, जिसमें राज्य में परिसीमन पर लगी हुई रोक हटाने से जुड़े प्रस्ताव पर विचार-विमर्श हुआ। शाह के साथ उस दौरान सूबे के राज्यपाल सत्यपाल मलिक, गृह सचिव और इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) प्रमुख भी उपस्थित थे।

परिसीमन पर लगी रोक हटाने के मायने यह हैं कि सूबे की विधानसभा सीटों में फेरबदल होगा। साथ ही जम्मू क्षेत्र में अनुसूचित जाति और जनजाति तबके से बड़ा प्रतिनिधित्व होगा। यही नहीं, 1991 में अनुसूचित जनजाति का ठप्पा पाने वाले सिप्पी, बकरवाला और गुर्जरों को आरक्षण के जरिए राज्य की विधानसभा की संरचना में कुछ और बदलाव भी हो सकेंगे।

दरअसल, राज्य में आखिरी दफा 1995 में परिसीमन हुआ था। यानी लगभग 24 साल से इस दिशा में कोई पहल नहीं हुई। हालांकि, 2005 में सूबे की सीटों का परिसीमन होना था, पर 2002 में फारूख अब्दुल्ला की तत्कालीन सरकार ने इस पर 2026 तक के लिए रोक लगा दी थी।

बता दें कि कश्मीर विधानसभा की स्थापना 1939 में हुई थी। शेख अब्दुल्ला सरकार में तब कश्मीर के हिस्से में 43 सीटें, जम्मू के खाते में 30 सीटें और लद्दाख क्षेत्र के पास दो विधानसभा सीटें गई थीं। मौजूदा समय में जम्मू-कश्मीर में कुल 87 विस सीटें हैं, जिसमें 37 जम्मू में, 46 कश्मीर में और दो लद्दाख में आती हैं।

उधर, ताजा मसले को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती सूबे में परिसमन के पक्ष में नहीं हैं। उन्होंने कहा है कि केंद्र सरकार जख्मों को कुरेदने की कोशिश कर रही है। देखें, उनका ट्वीटः

पीडीपी नेता वहीद-उर-रहमान पारा ने कहा, “बीजेपी सूबे में जम्मू बनाम कश्मीर कराना चाहती है। हमें जम्मू से कोई दिक्कत नहीं है, पर असल समस्या मुख्य मुद्दों पर ध्यान देना है। सबसे जरूरी चीज है कि लोगों के दिल और दिमाग को जीता जाए।”