संगीता खन्ना

भारत में चुनावों में तमाम राजनीतिक दलों द्वारा अपनाए जाने वाले रेवड़ी कल्चर का मुद्दा इन दिनों खूब चर्चा में है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र ने फ्री में चीजें देने वाली योजनाओं को ‘रेवड़ी कल्चर’ कहा था। जिसके बाद से इसपर लंबी बहस छिड़ी हुई है। वहीं दिल्ली में फ्री बिजली और पानी देने वाली आम आदमी पार्टी अरविंद केजरीवाल सरकार का कहना है कि यह जनता का हक है।

रेवड़ी का पुराना इतिहास रहा है:

आज रेवड़ी कल्चर की चर्चा भले ही तेजी से हो रही हो लेकिन असल में रेवड़ी बांटने के उदाहरण हड़प्पा से लेकर महाभारत और सिकंदर काल में भी मिलते हैं। हड़प्पा में 2000 ईसा से पहले तिल की एक भुनी हुई गांठ की खोज की गई थी। जिसमें गेहूं और मटर के भुने हुए दाने मिलाए जाते थे। इससे पता चलता है कि तिल जलाने की रस्म उस समय भी थी। यह एक परंपरा थी जो किसी भी मूर्ति पूजा और त्योहार मनाने के ब्राह्मणवादी तरीकों से पहले होती और लोहड़ी के रूप में आज भी जीवित है।

संयोग से, तिल और गुड़ की तैयारी, चाहे वह रेवड़ी, चिक्की, तिलकुट या लड्डू के रूप में बांटने की परंपरा काफी समय से पहले से ही देखी जा रही है। पुराने समय में तिल का उपहार श्रेष्ठ माना जाता था। महाभारत का उल्लेख करते हुए खाद्य इतिहासकार केटी आचार्य के अनुसार, “अपनी योग्यता के साथ यह परंपरा हमेशा रहने वाली है। प्रियजनों और जरूरतमंदों को रेवड़ी बांटना, एक पुरानी वाली परंपरा है और सभी के लिए एक अच्छा लाभकारी दृष्टिकोण है।”

आचार्य ने अपनी पुस्तक ए हिस्टोरिकल डिक्शनरी ऑफ इंडियन फ़ूड (1998) में ग्रीक लेखक अरिस्टोबुलस का उल्लेख किया है कि सिकंदर के साथ उनके अभियानों में शामिल लोग भारत के बाजारों में गुड़ से बनी रेवड़ी जैसी किसी चीज़ की मौजूदगी के संकेत देते हैं। अरिस्टोबुलस ने लिखा कि स्पष्ट रूप से संकेत मिलते हैं कि दूसरों के लाभ के कार्य के रूप में रेवड़ी बांटने का प्रमाण एक पुरानी परंपरा के तौर मिलता है।

इसका उदाहरण आप मकर संक्रांति पर दिए जाने वाले उपहारों पर भी देख सकते हैं। जिसमें भारत में तिल और गुड़ के लड्डू, गजक और चिक्की का प्रयोग काफी मात्रा में किया जाता है। इस मौके पर लोग अपने प्रियजनों और जरूरतमंदों को चावल, दाल और कपड़ों को उपहार में देते हैं।

सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है मामला:

रेवड़ी कल्चर को लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा है। जिसपर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस एनवी रमना की अगुवाई वाली बेंच ने 17 अगस्त को कहा कि मुफ्त सुविधाएं और चीजें देने की स्कीमों के ऐलान का मामला उलझता जा रहा है। हम राजनीतिक दलों को मुफ्त में चीजें देने की स्कीमों का ऐलान करने से रोक नहीं सकते। अदालत ने कहा कि सवाल यह भी है कि क्या इस मामले में अदालत को कोई फैसला देने का अधिकार है? बता दें कि इस मामले में सर्वोच्च अदालत सोमवार, 22 अगस्त को अगली सुनवाई करेगी।