मशहूर इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपने एक लेख में दावा किया है कि देश अपनी आजाद के बाद के इतिहास के चौथे सबसे बड़े संकट से गुजर रहा है। गुहा ने अपने लेख में लिखा कि भारत को जब आजादी मिली थी, उस वक्त देश काफी परेशानियों में घिरा हुआ था। इसमें देश के बंटवारे के साथ ही हिंसा और बड़ी संख्या में लोगों का पलायन जैसी घटनाएं शामिल थीं।
वहीं आजादी के दो माह बाद ही पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर में अपने घुसपैठिए भेजकर भारत पर युद्ध लाद दिया था। इसके अलावा देश इन परेशानियों से उबरा भी नहीं था कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या हो गई। साथ ही खाली खजाना, भोजन की कमी और कई राज्यों द्वारा भारत में विलय से इंकार जैसी समस्याओं से भी भारत परेशान था।
गुहा ने लिखा कि ऐसे मुश्किल हालात में भी यदि देश नहीं टूटा, जैसा कि कई पश्चिमी देशों ने भविष्यवाणी की थी, तो उसकी वजह उस वक्त की लीडरशिप थी, जिसने देश को एकजुट रखा। इनमें बीआर अंबेडकर, जवाहरलाल नेहरू और वल्लभभाई पटेल जैसे लोग सरकार में थे। वहीं सिविल सोसाइटी में कमलादेवी चट्टोपाध्याय, मृदुला साराभाई और अनिस किदवई आदि लोगों ने उल्लेखनीय काम किया था।
हिन्दुस्तान टाइम्स में लिखे अपने लेख में रामचंद्र गुहा के लेख के अनुसार, गणतंत्र भारत के सामने सबसे पहला और बड़ा संकट 60 के दशक की शुरुआत में चीन और पाकिस्तान के साथ हुआ युद्ध था। इसके अलावा इसी दौरान हमारे दो लोकप्रिय पीएम पंडित जवाहरलाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री का निधन हुआ। इसके अलावा कृषि संकट से भी देश को जूझना पड़ा था।
गुहा के अनुसार, गणतंत्र भारत के सामने दूसरा बड़ा संकट 1970 के मध्य में सामने आया, जब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू कर दिया था। मशहूर इतिहासकार के अनुसार, देश के सामने तीसरा बड़ा संकट साल 1989 से लेकर 1192 के मध्य में आया, जब देश में सांप्रदायिक हिंसा की आग भड़की और साथ ही देश की आर्थिक हालत भी काफी खराब हो गई थी।
रामचंद्र गुहा का कहना है कि साल 1984 में हुए सिख विरोधी दंगे और अमृतसर के स्वर्ण मंदिर मे भारतीय सेना की कार्रवाई, भोपाल गैस कांड भी देश के इतिहास में काले अक्षरों में दर्ज हैं।
रामचंद्र गुहा के लेख के अनुसार, गणतंत्र भारत मौजूदा वक्त में अपने इतिहास के चौथे सबसे बड़े संकट से गुजर रहा है। सरकार की नीतियों के चलते हमारी अर्थव्यवस्था की हालत बिगड़ती जा रही है। देश के नागरिक एक दूसरे के खिलाफ हो गए हैं और वैश्विक तौर पर भारत की छवि कमजोर हुई है।
बीते लोकसभा चुनावों में जब मोदी सरकार सत्ता में आयी थी तो उसके सामने बेरोजगारी, कृषि संकट, लोकतांत्रिक संस्थाओं की खराब होती छवि जैसी परेशानियां थी, लेकिन सरकार ने इन समस्याओं से निपटने के बजाय ऐसे कदम उठाए, जिनसे परेशानियां और ज्यादा बढ़ गई हैं। गुहा का कहना है कि देश में आज सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और केन्द्र और राज्य सरकार के बीच अलगाव बढ़ गया है।