Language Controversy: तमिलनाडु में जारी भाषा विवाद के बीच आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और टीडीपी के मुखिया चंद्रबाबू नायडू ने एमके स्टालिन को बड़ा झटका देते हुए कहा है कि हिंदी भाषा से नफरत नहीं की जानी चाहिए। सीएम ने कहा कि जो लोग अपनी मातृभाषा में पढ़ते हैं, वे दुनिया भर में बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि आम धारणा है कि ज्ञान केवल इंग्लिश से ही आता है, लेकिन वे इससे सहमत नहीं हैं।
अमरावती में विधानसभा को संबोधित करते हुए नायडू ने कहा, ‘भाषा केवल कम्युनिकेशन के लिए होती है। ज्ञान भाषा से नहीं आएगा। केवल वे लोग जो अपनी मातृभाषा में पढ़ते हैं, वे दुनिया भर में बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। मातृभाषा के जरिये सीखना काफी आसान है।’ इतना नहीं उन्होंने कहा कि मैं आपसे यह बहुत साफ तौर पर कह रहा हूं कि भाषा नफरत के लिए नहीं है। यहां आंध्र प्रदेश में मातृभाषा तेलुगु है। हिंदी राष्ट्रीय भाषा है और अंतरराष्ट्रीय भाषा इंग्लिश है।
काम के लिए कई भाषाएं सीखनी चाहिए- सीएम नायडू
सीएम ने कहा कि लोगों को अपनी मातृभाषा को बनाए रखते हुए काम के लिए कई भाषाएं सीखनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हिंदी सीखने से दिल्ली में कम्युनिकेशन में मदद मिलेगी। जापान और जर्मनी जैसे देशों की यात्रा करने वाले लोगों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि भारत में उन भाषाओं को सीखने से उन्हें विदेश जाने में आसानी होगी।
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क्या है पूरा मामला?
अब इस पूरे मामले पर गौर करें तो यह बहस एनईपी के इर्द-गिर्द घूमती हुई नजर आती है। इसके बारे में तमिलनाडु को डर है कि इससे राज्य में हिंदी थोपी जा सकती है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने चिंता जाहिर की है कि नीति क्षेत्रीय भाषाओं की तुलना में हिंदी को ज्यादा महत्व देती है। इसकी वजह से राज्य की भाषाई पहचान पर असर पड़ती है। हालांकि, केंद्र सरकार का तर्क है कि एनईपी बहुभाषावाद को बढ़ावा देती है और भाषा शिक्षा में लचीलापन देती है। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने इस बात से इनकार किया है कि हिंदी थोपी जा रही है, उन्होंने कहा कि नीति के तहत राज्यों को अपनी भाषा चुनने की आजादी है। लैंगवेज वॉर पर क्यों कोई स्टैंड नहीं ले पा रही कांग्रेस