आज ज्यादातर लोगों के सोचने-समझने के तरीके से लेकर उनके व्यवहार में एक विचित्र असंतुलन दिखाई देने लगा है। जो करना है, उसका ध्यान नहीं, और जो नहीं करना है, वह प्राथमिक लगने लगता है और इसके लिए भले ही किसी से झगड़ा करना पड़ जाए, खुद को और ज्यादा परेशान कर लिया जाए।
दरअसल, यह तनाव और उसके साथ जुड़े अवसाद के लक्षण हैं, मगर चूंकि हमारे समाज में इस तरह के व्यवहारों को सहजता से लिया जाता है, इसलिए इस पर तब तक लोगों का ध्यान नहीं जा पाता है, जब तक इस समस्या से घिरे व्यक्ति का व्यवहार अप्रत्याशित रूप से संजीदा, चुप, आक्रामक या बेलगाम न हो जाए और वह संभलने से भी न संभले।
तहों में तनाव
तनाव का कारण अलग-अलग हो सकता है। मसलन, किसी को बहुत करीबी को खोने का दर्द सताता है, तो कोई किसी परीक्षा में नाकाम हो जाता है। कोई व्यवसाय में नुकसान उठाता है या बड़ा आर्थिक घाटा हो जाता है तो कोई हर मोर्चे पर ठगे जाने की वजह से मानसिक रूप से परेशान हो जाता है।
आज हालत यह है कि अगर आसपास नजर दौड़ाया जाए तो ज्यादातर लोग किसी न किसी मानसिक परेशानी के दौर से गुजर रहे मिल जाएंगे, जो लगातार बढ़ती जिम्मेदारी या दबाव का शिकार हैं। गंभीर स्थितियों के अलावा बहुत साधारण कारणों से आत्महत्या कर लेने वाले लोग भी आखिर तनाव और उससे आगे के चरण यानी अवसाद का ही शिकार होते हैं।
पहचान का तकाजा
अवसाद में केवल चुप्पी या उदासी ही एक लक्षण नहीं होता, बल्कि जरूरत से ज्यादा और अकारण भी हंसने लगना या व्यवहार में असंतुलन, जरूरी बातों की अनदेखी, उन्हें ढंकने की कोशिश, ज्यादा चिंता, डर, चिड़चिड़ापन आदि भी अवसाद की ही अभिव्यक्ति है। इसी तरह बेहिसाब सिर दर्द, सीने में तकलीफ, घबराहट, नींद बहुत कम आना, किसी काम में मन नहीं लगना जैसी अन्य बातों की जड़ भी तनाव या अवसाद हो सकता है।
समय पर ऐसे व्यवहारों पर अपना या किसी अन्य का ध्यान नहीं जाने के नतीजे में किसी भावनात्मक परेशानी से घिरा व्यक्ति अकेलेपन का शिकार होता चला जाता है और भीतर ही भीतर खोखला होने लगता है। इसके बाद उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, मधुमेह और मोटापा जैसी स्थितियां अपने आप दिखना शुरू हो जाती हैं। एक वक्त ऐसा भी आता है, जब व्यक्ति टूट जा सकता है।
बचाव के रास्ते
जरूरी यह है कि पीड़ित व्यक्ति के आसपास के लोग, दोस्त, रिश्तेदार उसकी मदद करें। या तो संवेदना के स्तर पर उसके साथ होकर अवसाद से निकलने में मदद की जा सकती है या फिर जरूरत पड़ने पर मनोवैज्ञानिक चिकित्सा का सहारा लिया जा सकता है। अवसाद से घिरे व्यक्ति के भीतर सकारात्मक सोच मजबूत हो, इसके लिए उसके हितचिंतकों को वह सब कुछ करना चाहिए, जो संभव हो।
परेशानी की हालत में मादक पदार्थों का सेवन मुश्किल को और बढ़ाएगा ही। दिनचर्या को नियमित करके शारीरिक रूप से खुद को स्वस्थ रखने और खूब व्यायाम करने का रास्ता कारगर होता है। तनाव या अवसाद से घिरे व्यक्ति के लिए सबसे जरूरी है कि वह किसी भरोसेमंद दोस्त, रिश्तेदार से अपने मन को पूरी तरह खोल दे और अपनी परेशानी के कारणों की पहचान करके उससे निपटने की ओर बढ़ चले।
(यह लेख सिर्फ सामान्य जानकारी और जागरूकता के लिए है। उपचार या स्वास्थ्य संबंधी सलाह के लिए विशेषज्ञ की मदद लें।)