सोनम लववंशी

ये पटरी व्यवसायी समाज में हमेशा से हाशिए पर रहे हैं। ये छोटे दुकानदार और फेरीवाले सरकारी कल्याणकारी सुविधाओं, जैसे सरकारी ऋण, सुरक्षा बीमा योजना आदि से भी वंचित रह जाते हैं। कई मर्तबा कर्ज मिलता भी है, तो वह इतना कम होता है कि उससे व्यक्ति बहुत अधिक तरक्की नहीं कर सकता है।

पटरी कारोबारी शहरी आबादी का महत्त्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। ये शहरी आबादी को सस्ती और सुविधाजनक सेवाएं उपलब्ध कराते और आर्थिक विकास में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कोरोना काल में रेहड़ी-पटरी पर छोटा-मोटा कारोबार करने वालों का कामकाज खत्म-सा हो गया था। ऐसे में ‘पीएम स्वनिधि योजना’ की शुरुआत की गई, जिसके तहत सरकार रोजगार की शुरुआत के लिए बिना किसी गारंटी के कर्ज देती है।

मार्च, 2023 तक 34.47 लाख रेहड़ी-पटरी वालों को 5,152.37 करोड़ रुपए से अधिक के ऋण वितरित किए गए। इस योजना के माध्यम से रेहड़ी-पटरी वालों को न सिर्फ रोजगार का साधन, बल्कि उनके परिवार को आर्थिक संबल भी मिला है। अब तक इस योजना के माध्यम से करीब 46 लाख छोटे व्यापारियों को ऋण दिया जा चुका है।

इस योजना में कर्ज लेने वाले छोटे व्यापारी दस हजार रुपए एकमुश्त कर्ज की राशि समय से चुका दें, तो उन्हें पचास हजार रुपए तक की आर्थिक सहायता देने का भी प्रावधान है। इसके माध्यम से छोटे व्यापारी न केवल अपना रोजगार शुरू कर सकते, बल्कि मुख्यधारा से जुड़कर विकसित भारत बनाने के संकल्प को सार्थक कर सकते हैं।

इसके माध्यम से देश का युवा अपना व्यवसाय शुरू कर सकता है, महिलाएं भी अपने बूते अपना काम-धंधा शुरू कर आत्मनिर्भर बन रही हैं। यह योजना 1 जून, 2020 को शुरू की गई थी। इसका उद्देश्य पटरी कारोबारियों के बीच स्वरोजगार, स्वावलंबन और स्वाभिमान को बढ़ावा देना था।

इसके माध्यम से अब तक पटरी कारोबारियों को 46.54 लाख से अधिक सूक्ष्म कार्यशील पूंजी ऋण वितरित किए जा चुके हैं। देश के करीब 50 लाख से अधिक पटरी कारोबारियों को दस हजार रुपए तक का प्रारंभिक किफायती ऋण प्रदान किया जाता है और यह नियमित पुनर्भुगतान पर सात फीसद की दर से ब्याज सबसिडी पर आधारित है।

इसके अंतर्गत विभिन्न क्षेत्रों में सब्जी बेचने वाले, कपड़ा व्यापारी, कारीगर, बाल काटने, कपड़े धोने की सेवाओं से जुड़े लोग, घरों में सेवाएं देने वाले आदि से संबंधित वस्तुओं और सेवाओं में शामिल विक्रेताओं, फेरीवालों आदि को लाभ मिल रहा है।

दिसंबर, 2022 तक देश में कुल 13,403 पटरी कारोबार क्षेत्रों की पहचान की जा चुकी थी।। इस योजना के कार्यान्वयन में भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) तकनीकी रूप से भागीदार है। गौरतलब है कि इस योजना ने नागरिकों को कर्ज और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के साथ जोड़ा है। इस योजना से देशभर के पटरी कारोबारियों के जीवन में महत्त्वपूर्ण बदलाव आया है।

इसमें वे लोग शामिल हैं, जो सामान की बिक्री के लिए एक स्थायी निर्मित संरचना के बिना जनता को बड़े पैमाने पर वस्तुओं की बिक्री चलते-फिरते या सड़क किनारे करते हैं। एक अनुमान के मुताबिक एशिया, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका के विकासशील देशों में पटरी कारोबारियों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भारत में लगभग 49.48 लाख पटरी कारोबारियों की पहचान की गई है। इनमें उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 8.49 लाख पटरी कारोबारी हैं, उसके बाद मध्य प्रदेश में 7.04 लाख पटरी कारोबारी हैं। दिल्ली में 72,457 पटरी कारोबारी हैं। वहीं सिक्किम में किसी पटरी कारोबारी की पहचान नहीं की गई है।

इस योजना का मकसद शुरुआती तौर पर कोविड से प्रभावित रेहड़ी-पटरी वालों को अपनी आजीविका शुरू करने के लिए अधिकार देना था, लेकिन धीरे-धीरे सरकार ने स्वनिधि से समृद्धि की तरफ बढ़ने का फैसला किया। आज पटरी कारोबारी योजना का उद्देश्य आत्मनिर्भर भारत अभियान को मजबूती प्रदान करना और शहरी अर्थव्यवस्था को आगे ले जाना है।

कहने को तो रेहड़ी-पटरी वाले कामगार असंगठित क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं। ये सरकार द्वारा पंजीकृत भी नहीं रहते हैं। इस क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों की गरिमा, समानता, उचित कमाई और सुरक्षित नौकरी जैसे अधिकार नहीं मिलते हैं। न ही वेतन, भत्तों और अन्य अधिकारों की सुविधा दी जाती है। जबकि नवंबर 2022 तक श्रम पोर्टल पर पंजीकृत अनौपचारिक क्षेत्र के कामगारों की संख्या देश में 27.69 करोड़ थी। इसमें बड़ी बात यह है कि अनौपचारिक क्षेत्र के कामगारों में से 94 फीसद से अधिक की मासिक आय दस हजार रुपए या उससे कम है।

संविधान में नागरिकों को कई मौलिक अधिकार प्राप्त हैं, मगर इन अधिकारों की पूर्ति कई बार प्रभावित होती है। मसलन, अनौपचारिक क्षेत्र में लगे नागरिकों के साथ सामाजिक न्याय बहुत मुश्किल से हो पाता है। जबकि, संविधान का अनुच्छेद 38 (1) कहता है कि राज्य, सामाजिक व्यवस्था सुनिश्चित कर लोगों के कल्याण को बढ़ावा देगी और अनुच्छेद 38 (2) ‘आय की स्थिति, सुविधाओं और अवसरों में असमानता को कम करने’ का निर्देश देता है, मगर दुर्भाग्यवश इन मामलों में असंगठित क्षेत्र के कामगार इससे कोसों दूर हैं।

गरीबी के कारण लोग शहरों की तरफ पलायन कर रहे हैं और इससे असंगठित क्षेत्र का दायरा बढ़ता जा रहा है। आज असंगठित श्रमिकों का देश के जीडीपी में योगदान करीब 65 फीसद है, जबकि कुल बचत में इनका योगदान मात्र 45 फीसद है। पटरी कारोबारी भी असंगठित क्षेत्र के श्रमिक हैं, जिनका देश की अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा प्रत्यक्ष और परोक्ष योगदान है। इनके द्वारा बेचे जाने वाले अधिकांश सामान लघु, मध्यम उद्योगों में ही तैयार होते हैं।

एक अनुमान के मुताबिक देश में करीब पंद्रह करोड़ लोग सीधे या परोक्ष रूप से पटरी कारोबार से जुड़े हैं। मगर ये व्यवसायी समाज में हमेशा से हाशिए पर रहे हैं। ये छोटे दुकानदार और फेरीवाले सरकारी कल्याणकारी सुविधाओं, जैसे सरकारी ऋण, सुरक्षा बीमा योजना आदि से भी वंचित रह जाते हैं। कई मर्तबा कर्ज मिलता भी है, तो वह इतना कम होता है कि उससे व्यक्ति बहुत अधिक तरक्की नहीं कर सकता है।

‘इंडिया स्पेंड’ नामक वेबसाइट पर प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक जब पटरी कारोबारियों के व्यवसाय महामारी से प्रभावित थे और उन्हें सरकार की माइक्रो-क्रेडिट योजना से मदद की उम्मीद थी, तब केवल 11 फीसद जरूरतमंदों को कर्ज मिल पाया था। वहीं एक सर्वेक्षण के अनुसार, आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा पटरी कारोबारियों को ‘आवश्यक सेवा प्रदाता’ घोषित होने के दो महीने बाद और स्वनिधि योजना की घोषणा के बाद 65 फीसद तक उत्तरदाताओं ने उत्पीड़न या बेदखली का सामना करने की सूचना दी। निजी बैंक स्वनिधि योजना के अंतर्गत कर्ज देने से हिचकते हैं। इसके अलावा स्थान की कमी, जबरन वसूली और रंगदारी से अक्सर पटरी कारोबारियों का हित प्रभावित होता है।

सरकार की तरफ से मिलने वाले कर्ज का आकार भी सीमित है। दस हजार रुपए की राशि बहुत से कारोबारियों के लिए पर्याप्त नहीं होती। गौरतलब है कि पीएम स्वनिधि योजना के अंतर्गत करीब 28 रुपए प्रतिदिन सरकार मदद के रूप में देती है, जबकि रेहड़ी-पटरी वालों की जरूरत इससे कहीं ज्यादा है। इस योजना की सबसे बड़ी समस्या रेहड़ी-पटरी कारोबारियों की पहचान करना है।

इसलिए कि इनकी ज्यादातर आबादी सर्वेक्षण के दायरे में नहीं है। फिर, इस क्षेत्र के श्रमिकों के पास नियमित मजदूरी का अभाव है और उनकी मजदूरी भी कम है। यह असमानता को बढ़ाती है, जो समावेशी विकास के साथ देश के समग्र विकास के लिए हानिकारक है। रेहड़ी-पटरी लगाने वाले अनौपचारिक क्षेत्र का अभिन्न हिस्सा हैं।

अनौपचारिक क्षेत्र में सुरक्षा का अभाव होता है। जिसकी वजह से समग्र राजस्व कम हो जाता है और इस प्रकार बुनियादी ढांचे, अर्थव्यवस्था और सामाजिक कल्याण में सार्वजनिक निवेश में बाधा उत्पन्न होती है। इससे देश की अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक असर पड़ता है।