पश्चिम बंगाल में राजनीतिक दलों ने हमेशा उनके परिवार के सदस्यों को शामिल करके नेताजी सुभाष चंद्र बोस की विरासत का फायदा उठाने की कोशिश की है। बुधवार को नेताजी के पोते चंद्र बोस के भाजपा से इस्तीफा देने के साथ पार्टी ने राज्य में अपना नेताजी संपर्क गंवा दिया है। बंगाली बुद्धिजीवियों का समर्थन हासिल करने के बीजेपी के प्रयासों को एक झटका लगा है।

चंद्र बोस ने भाजपा छोड़ने की घोषणा करते हुए कहा कि वह वर्तमान परिस्थितियों में पार्टी के साथ काम नहीं कर सकते और ध्रुवीकरण, वोट-बैंक की राजनीति और विभाजनकारी राजनीति ने पश्चिम बंगाल में भाजपा की संभावनाओं को बर्बाद कर दिया है। राज्य भाजपा के प्रवक्ता समिक भट्टाचार्य ने कहा कि चंद्र बोस पिछले कुछ वर्षों से पार्टी में निष्क्रिय थे और उनकी अनुपस्थिति का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। समिक भट्टाचार्य ने कहा, “हम चंद्रयान के बारे में बात कर रहे हैं, चंद्र बोस के बारे में नहीं। काफी समय से वह पार्टी के संपर्क में भी नहीं थे। वह राजनीतिक गतिविधियों से अनुपस्थित रहे हैं। वह बिल्कुल भी सक्रिय नहीं थे। इसलिए यह आश्चर्य की बात नहीं है कि वह पार्टी छोड़ रहे हैं।”

हालांकि भाजपा के अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि यह घटनाक्रम लोकसभा चुनाव में राज्य में पार्टी की चुनावी संभावनाओं को नुकसान पहुंचा सकता है क्योंकि बोस के इस्तीफे से मतदाताओं में गलत संकेत जा सकता है। एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “पार्टी ने राज्य इकाई को पश्चिम बंगाल से 35 लोकसभा सीटें जीतने का लक्ष्य दिया है। इसके लिए हमें सभी क्षेत्रों से समर्थन प्राप्त करने की आवश्यकता है। बड़ी संख्या में लोगों तक पहुंचने के लिए बंगाली बुद्धिजीवियों का समर्थन प्राप्त करना महत्वपूर्ण है। अगर चंद्र बोस जैसे लोग हमारी पार्टी छोड़ते हैं तो इससे लोगों में गलत संदेश जाता है। इसके अलावा बोस के परिवार के साथ गठबंधन करने से बंगाल में पार्टियों को बहुत फायदा हुआ है।”

राजनीतिक दलों और नेताजी के परिवार के बीच संबंध दशकों पुराना है। कांग्रेस से अलग होने के बाद 1939 में नेताजी ने जिस फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की, उसने पश्चिम बंगाल में उनकी विरासत को आगे बढ़ाया और इसके दिग्गजों में उनके बड़े भाई और स्वतंत्रता सेनानी शरत चंद्र बोस भी थे। शरत चंद्र बोस के बेटे अमिय नाथ बोस आरामबाग से फॉरवर्ड ब्लॉक के सांसद (1967-71) थे। वहीं उनके दूसरे बेटे सुब्रत बोस बारासात से फॉरवर्ड ब्लॉक के सांसद (2004-09) और उससे पहले श्यामपुकुर (2001-04) से विधायक थे।

नेताजी के तीसरे बेटे सिसिर कुमार बोस मध्य कोलकाता के चौरंगी निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस विधायक (1982-87) थे। 1996 में उनकी पत्नी कृष्णा बोस जादवपुर निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस की सांसद बनीं। हालांकि जब ममता बनर्जी ने कांग्रेस से अलग होकर तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) बनाई, तो कृष्णा भी इसमें शामिल हो गईं। वह 1998 से 2004 तक इसी निर्वाचन क्षेत्र से वह टीएमसी सांसद थीं। इसके बाद उनके बेटे और हार्वर्ड के प्रोफेसर सुगाता बोस 2014 से 2019 तक जादवपुर से टीएमसी सांसद थे। नेताजी के पोते सुगाता बोस को भी पार्टी में शामिल करके टीएमसी ने 2011 में पश्चिम बंगाल में सत्ता में आने के बाद बोस की विरासत का फायदा लेना जारी रखा।

2016 में विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने अमिय नाथ बोस के बेटे चंद्र बोस को पार्टी में शामिल करके अपना नेताजी के परिवार से संबंध स्थापित करने का प्रयास किया। अपने परिवार के सदस्यों के विपरीत, चंद्र बोस अपने चुनावी प्रयासों में असफल रहे। 2016 में विधानसभा चुनाव और तीन साल बाद लोकसभा चुनाव हार गए। बोस को 2016 में पश्चिम बंगाल भाजपा का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया था, लेकिन 2020 में संगठनात्मक फेरबदल के दौरान उन्हें हटा दिया गया क्योंकि वह कई मुद्दों पर पार्टी के आलोचक रहे हैं। उन्होंने 2019 में नागरिकता (संशोधन) कानून का विरोध किया था।

वहीं चंद्र बोस के इस्तीफा देने के बाद टीएमसी ने बीजेपी पर कटाक्ष करते हुए कहा कि नेताजी और जनसंघ की विचारधारा अलग-अलग हैं। पार्टी के राज्य उपाध्यक्ष जय प्रकाश मजूमदार ने कहा, “नेताजी की विचारधारा और जनसंघ, ​​हिंदू महासभा या भाजपा का डीएनए मेल नहीं खाता है। इनमें से किसी भी संगठन ने भारत की आजादी के लिए लड़ाई नहीं लड़ी, जबकि नेताजी एक प्रखर स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने देश की आजादी के साथ कभी समझौता नहीं किया। नेताजी भी एक धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति थे जबकि जनसंघ और आरएसएस हिंदू राष्ट्र में विश्वास करते हैं। इसलिए ये तो होना ही था। भाजपा ने कांग्रेस और नेताजी से सरदार वल्लभभाई पटेल को उधार लिया और उनका अपहरण कर लिया क्योंकि उनके पास कोई विश्वसनीय स्वतंत्रता सेनानी नहीं था।