बाबा रामदेव ने आईएमए को लिखे पत्र में 25 बीमारियों के नाम लिख कर पूछा था कि क्या एलोपैथी के पास इन रोगों का इलाज है। आईएमए ने तो नहीं लेकिन एक डॉक्टर ने इस सवाल का जवाब दिया है। डॉक्टर का नाम है विक्रम पटेल। वे हारवर्ड मेडिकल स्कूल में (पेरिशिंग स्क्वॉयर) प्रोफेसर हैं और प्रसिद्ध लांसेट पत्रिका की भारत से जुड़ी एक संस्था के सदस्य भी हैं। इस चिकित्सा विज्ञानी ने रामदेव द्वारा उल्लिखित ब्लोटिंग एम्नीज़िया नाम की बीमारी पर भी जवाब दिया है।
दरअसल ब्लोटिंग एम्नीज़िया नाम की कोई बीमारी होती ही नहीं। यह दो शब्दों की मिलावट भर है। ब्लोटिंग यानी की (गैस के कारण) पेट फूलना और एम्नीज़िया यानी भूलने का रोग। यह शब्द धरती पर पहली बार बाबा रामदेव ने ही इस्तेमाल किया है। डॉ पटेल लिखते हैः आज जबकि महामारी देश में लोगों को मारने में जुटी है, भारत के एक प्रतिष्ठित नागरिक ने चिकित्सा विज्ञान की उस पद्धति (एलोपैथी) के सामने सवालों की बौछार कर दी है, जिसकी मैंने खुद ट्रेनिंग और शिक्षा पाई है। यह आदमी साधारण नागरिक नहीं। वह दो विरोधाभासी संसारों में एक साथ निवास करता है। एक संसार है संतई का और दूसरा व्यापारी का। व्यापारी के रूप में वह शैंपू, टूथपेस्ट से लेकर नूडल्स और आयुर्वेदिक दवाएं तक बेचता है।…ऐसे आदमी के सवाल सावधानीपूर्वक जांच और गंभीर चिंतन के बाद उत्तर मांगते हैं।
अतएव, मैं अपने चिकित्सक भाइयों की ओर से जो बरसों बरस मेडिकल कालेज में अध्ययन करते हैं, बाबा को उत्तर देने का बीड़ा उठा रहा हूं। संत शिरोमणि ने पूछा है कि क्या एलोपैथी के पास कतिपय बीमारियों हाइपर टेंसन, माइग्रेन, डायबिटीज़, थायरॉइड, अर्थराइटिस, कोलाइटिस, हाइ कोलेस्ट्रॉल, बांझपन और दमा का परमानेन्ट इलाज है? छोटा और सरल उत्तर है- हां, बिलकुल है। लेकिन कुछ कैविएट के साथ।
हो सकता है कि एलोपैथी के पास इन रोगों का इलाज न हो। एलोपैथी ने दरअसल ऐसा दावा भी नहीं किया। लेकिन उसके पास ऐसी दवाइयां और सर्जरी प्रक्रिया है, जिनसे उसने इन रोगों से पीड़ित व्यक्तियों का जीना आसान किया है। यही नहीं एलोपैथी इन बीमारियों के कारणों का वैज्ञानिक अध्ययन करते हुए इन बीमारियों को होने से पूरी तरह रोकने में भी सफलता पाई है। उदाहरण के लिए तम्बाकू। हमारी पद्धति ने अध्ययन करके खोजा है कि तंबाकू पीने या खाने से कैंसर समेत कई बीमारियां पैदा होती हैं। हमारे द्वारा अर्जित ज्ञान का इस्तेमाल करते हुए जब सरकारें तंबाकू पर अंकुश लगाती हैं तो इन रोगों के कारण होने वाली बीमारियां घट जाती हैं।
संक्षेप में कहूं तो एलोपैथी दवा और इलाज से भी बढ़कर आगे की चीज़ है। यह वैज्ञानिक परम्परा पर वह अमल है जो सामाजिक कारकों और मानवीय व्यवहार तथा जीव विज्ञान की अंतर्क्रिया के जरिए बीमारी के उद्भव की व्याख्या करता है एवं यह तय करता है कि रोग से कैसे निपटा जाए।
यह दरअसल इसी वैज्ञानिक परम्परा के अनुपालन का परिणाम है कि लोग दुनिया भर पहले से अधिक स्वस्थ और लंबा जीवन जी पा रहे हैं। मैं निजी तौर पर मानता हूं कि मानव स्वास्थ्य में चिकित्सा की हर पद्धति का रोल है। लेकिन मैं यह भी जानता हूं कि दूसरी पद्धतियां एलोपैथी की उपलब्धियों के पास भी नहीं फटकतीं।
यह सवाल सर्वथा उचित है कि हमारी एलोपैथिक पद्धति का मौजूदा महामारी कोविड के इलाज में क्या योगदान है? बीते दिनों के अनुभव के आधार पर मैं कह सकता हूं कि एक साल के दौरान इस बीमारी से निपटने में चूक हुई हैं। मसलन, वेंटीलेटर और कुछ दवाओं को असरदार घोषित करने की जल्दबाज़ी। यहां हमें याद रखना होगा कि डॉक्टर जो भी कर रहे थे, उसका मकसद मरीज का हित था। सामने एक ऐसा मर्ज था जो हमने कभी देखा न था और मरीजों की संख्या तो बहुत ही ज्यादा थी। लेकिन फिर यह भी तो देखिए कि इसी प्रणाली ने रोगकारी वायरस का जेनेटिक कोड खोजा और रोग के खिलाफ दर्जन भर वैक्सीन खोज निकालीं। और, यह सब मात्र एक साल में। जबकि इस काम में दस साल और कई बार इससे भी ज्यादा का समय लगता है।
ये वैक्सीनें एलोपैथी की वह उपलब्धि हैं जिनके बदौलत लॉकडाउन खत्म कर सुरक्षित भविष्य की और निहार रही हैं। दुर्भाग्य से हमारा देश अभी इस हालत में नहीं है। मेरा संत शिरोमणि से अनुरोध है कि यदि उनके अनुसार उनकी दवा कोरोनिल इम्यूनिटी बढ़ाने का काम करती है तो वे इस बात को प्रयोगों के जरिए सिद्ध करने की कृपा करें। वैक्सीन भी आखिरकार इम्यूनिटी ही तो बढ़ाती है।
…और अंत में ब्लोटिंग एम्नीज़िया। भई मुझे मानना होगा कि एलोपैथी के पास इस मर्ज का कोई इलाज नहीं है। मुझे अलग-अलग वक्त पर कई बार गैस के कारण पेट में ब्लोटिंग भी हो चुकी है और भुलक्कड़पन यानी एम्नीज़िया का रोग भी, लेकिन एलोपैथी में दोनों को मिलाकर आपके द्वारा गढ़े गए रोग ब्लोटिंग एम्नीज़िया के रोग का इलाज ही नहीं। हमारी किताबों में इस रोग का ज़िक्र ही नहीं। फिर भी अगर कोविड की तरह कभी ब्लोटिंग एम्नीज़िया की महामारी फैली और मैं उससे पीड़ित हुआ तो मैं संत शिरोमणि की ही शरण में आऊंगा।