देश में राफेल डील के मुद्दे पर जारी हंगामे के बीच रक्षा उत्पाद बनाने वाली सरकारी कंपनी ‘हिंदुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड’ की एक चिंताजनक तस्वीर सामने आयी है। संसद की स्थायी कमेटी और कैग की पिछली कुछ रिपोर्ट्स में हिंदुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड (HAL) की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट में इस संबंध में खुलासा किया गया है। बता दें कि बीते समय में हुई राफेल डील में एनडीए सरकार ने फ्रांस की दसॉल्ट कंपनी के साथ भारत की रिलायंस को साझेदार चुना है। इसके बाद से ही कांग्रेस इस सौदे से सरकारी कंपनी HAL को बाहर रखने पर सवाल उठा रही है। इस रिपोर्ट से कांग्रेस के सवालों का काफी हद तक जवाब मिलने की उम्मीद जतायी जा रही है।
बता दें कि संसद की स्थायी समिति ने साल 2007 की अपनी डिफेंस रिपोर्ट में एचएएल द्वारा विभिन्न रक्षा प्रोजेक्ट में की जा रही देरी पर चिंता व्यक्त की थी। लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट के मामले का उदाहरण देते हुए कमेटी ने इस प्रोजेक्ट में छोटे से बदलाव में 15 साल का समय लगने पर चिंता जाहिर की थी। इसके साथ ही संसदीय समिति ने एचएएल की एक्सपोर्ट नेपाल, थाईलैंड जैसे छोटे देशों तक सीमित होने की भी बात कही थी। वहीं इस साल की अपनी रिपोर्ट में संसदीय समिति ने इस बात पर भी सवाल उठाए हैं कि एचएएल का मुनाफा हर साल घट क्यों रहा है? साथ ही कमेटी ने इसका कारण और इसे दूर करने के उपायों के बारे में भी पूछा है। इसी तरह कैग की साल 2010 की रिपोर्ट में भी एचएएल के विभिन्न प्रोजेक्ट में चल रही सालों की देरी की बात कही थी। इसके साथ ही कैग ने एचएएल के असंतुलित इंफ्रास्ट्रक्चर, हाई पावर वाले शक्ति इंजन में हो रही देरी का मुद्दा उठाया था।
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वहीं कैग की साल 2014 और 2015 की रिपोर्ट में भी एचएएल के कामकाज पर ऊंगली उठायी गई है। अपनी इन रिपोर्ट्स में कैग ने एचएएल के बिना योजना काम करने और अतिरिक्त खर्च जैसे मुद्दों पर खिंचाई की थी। इसके साथ ही कैग ने एचएएल द्वारा बिना प्रशिक्षित स्टाफ और विशेषज्ञों के ही संयुक्त उपक्रम कंपनियां बनाने की भी बात कही। जिस कारण 5 ऐसी कंपनियां जो संयुक्त उपक्रम के प्रोजेक्ट के लिए बनायी गई थी, वह अभी तक अपने उद्देश्यों के नहीं पा सकी हैं। साथ ही एचएएल में प्रभावी मॉनिटरिंग ना होना भी एक परेशानी का सबब है।