गुवाहाटी हाई कोर्ट ने असम सरकार को फटकार लगाई है। दरअसल एक निजी सीमेंट कंपनी को असम के आदिवासी दीमा हसाओ जिले में सीमेंट फ़ैक्टरी लगाने के लिए 3,000 बीघा जमीन (करीब 4 वर्ग किलोमीटर) आवंटित की गई थी। इसी को लेकर हाई कोर्ट ने तीखी टिप्पणी की और राज्य को वह नीति पेश करने का निर्देश दिया जिसके तहत भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र में इतनी बड़ी जमीन आवंटित की गई है।
क्यों भड़का हाई कोर्ट?
दीमा हसाओ असम का एक आदिवासी बहुल पहाड़ी ज़िला है। इसका प्रशासन भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के प्रावधानों के तहत एक North Cachar Hills Autonomous Council (NCHAC) द्वारा किया जाता है। अक्टूबर 2024 में कोलकाता में रजिस्टर्ड पते वाली एक निजी कंपनी महाबल सीमेंट प्राइवेट लिमिटेड को 2,000 बीघा जमीन का एक भूखंड आवंटित किया गया था। उसी साल नवंबर में 1,000 बीघा जमीन का एक और भूखंड उसी कंपनी को आवंटित किया गया था।
NCHAC के अतिरिक्त सचिव (राजस्व) द्वारा जारी आवंटन आदेश में कहा गया है कि इसका उद्देश्य एक सीमेंट प्लांट की स्थापना है। गौरतलब है कि महाबल सीमेंट ने इसी साल फरवरी में असम सरकार के मेगा निवेश सम्मेलन, एडवांटेज असम 2.0 के दौरान राज्य के साथ 11,000 करोड़ रुपये के निवेश के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे। कंपनी के प्रवक्ता ने कहा था कि वे दीमा हसाओ में एक सीमेंट प्लांट स्थापित करेंगे।
क्या यह कोई मजाक है?- गुवाहाटी हाई कोर्ट
पिछले हफ्ते इस आवंटन से जुड़ी दो याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान (जिनमें से एक स्थानीय लोगों के एक समूह की याचिका भी शामिल थी) ने आरोप लगाया था कि इस उद्देश्य के लिए उन्हें अपनी जमीन से बेदखल किया जा रहा है। जस्टिस संजय कुमार मेधी की पीठ ने यह टिप्पणी तब की जब कंपनी के वकील जी गोस्वामी ने जिक्र किया कि आवंटन का आकार 3,000 बीघा है। उन्होंने सुनवाई के दौरान टिप्पणी करते हुए कहा, “3,000 बीघा! क्या हो रहा है? 3,000 बीघा एक निजी कंपनी को आवंटित? यह कैसा फ़ैसला है? क्या यह कोई मजाक है या कुछ और?”
हालांकि कंपनी ने इस साल की शुरुआत में निर्माण कार्य में स्थानीय ग्रामीणों द्वारा पैदा की गई बाधाओं से सुरक्षा की मांग करते हुए एक प्रारंभिक याचिका दायर की थी। जस्टिस मेधी ने पिछले हफ़्ते कहा था कि अदालत उस नीति और प्रक्रिया की जांच करना चाहेगी जिसके तहत कंपनी को जमीन आवंटित की गई थी। अपने आदेश में अदालत ने आवंटित जमीन के आकार को ‘असाधारण’ बताया।
आदेश में कहा गया है, “मामले के तथ्यों पर सरसरी निगाह डालने से पता चलता है कि जिस जमीन का आवंटन करने की मांग की गई है, वह लगभग 3,000 बीघा है, जो अपने आप में असाधारण प्रतीत होता है। हालांकि वकील गोस्वामी ने दलील दी है कि यह आवंटन एक निविदा प्रक्रिया के तहत दिए गए खनन पट्टे के तहत किया गया है।” राज्य को आवंटन प्रक्रिया की जानकारी उपलब्ध कराने का निर्देश देते हुए अदालत ने संबंधित क्षेत्र के आदिवासी निवासियों के अधिकारों और उसकी पर्यावरणीय संवेदनशीलता का भी ध्यान रखा।
आदेश में कहा गया है, “यह अदालत एनसीएचएसी के विद्वान स्थायी अधिवक्ता श्री सी. सरमा को निर्देश देती है कि वे 3,000 बीघा ज़मीन के इतने बड़े हिस्से को एक कारखाने को आवंटित करने की नीति से संबंधित अभिलेख प्राप्त करें। यह निर्देश इस बात को ध्यान में रखते हुए दिया गया है कि यह ज़िला भारत के संविधान के तहत छठी अनुसूची का ज़िला है, जहां वहां रहने वाले आदिवासी लोगों के अधिकारों और हितों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इसके अलावा, संबंधित क्षेत्र दीमा हसाओ ज़िले का उमरांगसो है, जो एक पर्यावरणीय हॉटस्पॉट के रूप में जाना जाता है, जहां गर्म पानी के झरने, प्रवासी पक्षियों और वन्यजीवों का पड़ाव स्थल है।”