सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह के पंज प्यारों में एक भाई धर्म सिंह मेरठ जिले के जिस सैफपुर गांव में पैदा हुए थे, वह हस्तिनापुर से लगा है। सैफपुर गांव सिंख धर्म का एक पवित्र स्थान है। गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना 1699 में आनंदपुर साहिब के केसरगढ़ गुरुद्वारा साहिब में उसी दिन की थी जब उन्होंने सार्वजनिक सभा में अपने पंज प्यारों का चुनाव किया था।
भाई धर्म सिंह का वास्तविक नाम धर्मदास था। सैफपुर गांव के जाट किसान संतराम के घर तीन नवंबर 1666 को जन्मे धर्मदास अपने एक मित्र के माध्यम से सिख धर्म से जुडेÞ थे। गुरु गोविंद सिंह ने 1699 में बैशाखी के दिन केसगढ़ साहिब में पंडाल लगाया था। जिसमें उनके सैंकड़ों अनुयायी मौजूद थे। धर्मदास भी उन्हीं में से एक थे। गुरु गोविंद सिंह ने इस अवसर पर एलान किया कि उन्हें ऐसे पांच बहादुर चाहिए जो गुरुओं की आज्ञा पर अपनी जान न्योछावर करने को तैयार हों।
इस एलान के बाद खुद को पेश करने वाले पहले शख्स लाहौर के दयाराम थे। दूसरे नंबर पर मेरठ के धर्मदास, फिर द्वारिका के मोहकम सिंह, उसके बाद हिम्मत सिंह और अंत में कर्नाटक के साहिब सिंह ने खुद को गुरु गोविंद सिंह की खिदमत में पेश किया था। इस तरह मेरठ की धरती का एक लाल न केवल खालसा पंथ की स्थापना का साक्षी बना, बल्कि इसे आगे बढ़ाने का काम भी किया।
गुरु गोविंद सिंह ने उसी अवसर पर इन्हें नाम के साथ उपनाम सिंह दिया तो धर्मदास धर्मसिंह हो गए। पांचों को तभी अमृत चखाया और फरमान सुनाया कि अब उनकी न कोई जाति होगी और न काई वर्ण। वे सभी आनंदपुर साहिब के निवासी होंगे। इन पंज प्यारों ने भी अपने गुरु गोविंद सिंह को उसी समय अमृत चखाया।
इस तरह भाई धर्मसिंह 1699 से 1708 तक पूरे नौ वर्ष गुरु गोविंद सिंह के साथ ही रहे। गुरु गोविंद सिंह को अपने इन पंज प्यारों पर बड़ा नाज था। वे कहते भी थे कि सवा लाख से एक लड़ाऊं तब मैं गोविंद सिंह कहलाऊं। भाई धर्मसिंह ने आनंदपुर की लड़ाई में भाग लिया था। वे भाई दयासिंह के साथ गुरु गोविंद सिंह के पत्र जफरनामा को लेकर औरंगजेब तक पहुंचाने दक्षिण भारत गए थे। भाई धर्मसिंह के पुश्तैनी घर की जगह अब सैफपुर गांव में एक विशाल गुरुद्वारा है। इसमें भव्य दीवान हाल बन चुका है। यहां लंगर भी बंटता है और एक बड़ा अस्पताल निशुल्क चल रहा है।
भाई धर्मसिंह का जन्मोत्सव भी उल्लास से मनाया जाता है। इसमें हर साल देश के विभिन्न स्थानों से हजारों सिख पहुंचते हैं। जब गुरुद्वारा बनकर तैयार हुआ था, तो पंजाब के तब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने भी यहां पहुंचकर मत्था टेका था। उसके बाद सुरजीत सिंह बरनाला और बलदेव सिंह औलख ने भी यहां पहुंचकर भाई धर्मसिंह के सम्मान में शीश नवाया था।