Gujrat Bilkis Bano Case: गुजरात के बिलकिस बानो केस में 11 दोषियों की रिहाई पर बुधवार, 17 अगस्त को पीड़िता ने अपनी चुप्पी तोड़ी। बिलकिस बानो ने कहा कि इस फैसले पर बोलने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है। बिलकिस ने कहा है कि मुझे बिना किसी डर और शांति के जीने का मेरा अधिकार वापस मिले। बता दें कि गुजरात में 2002 के दंगों से जुड़े बिलकिस बानो मामले में 2008 में सभी 11 आरोपियों को दोषी ठहराया गया था। गैंगरेप और बिलकिस बानो की तीन साल की बेटी सहित उसके परिवार के 14 सदस्यों की हत्या करने को लेकर 11 दोषियों को उम्रकैद की सजा मिली थी।
बिलकिस ने अपने वकील शोभा गुप्ता के माध्यम से जारी एक बयान में कहा, “आज मैं सिर्फ इतना ही कह सकता हूं कि किसी भी महिला के लिए न्याय इस तरह कैसे खत्म हो सकता है? मुझे अपने देश की सर्वोच्च अदालतों पर भरोसा था। मुझे सिस्टम पर भरोसा था और मैं धीरे-धीरे अपने आघात के साथ जीना सीख रही थी। लेकिन इन दोषियों की रिहाई ने मेरी शांति छीन ली है और न्याय में मेरे विश्वास को डिगा दिया है।”
उन्होंने कहा, “मेरा दुख और मेरा न्याय से डगमगाता विश्वास सिर्फ मेरे लिए नहीं बल्कि हर उस महिला के लिए है, जो अदालतों में न्याय के लिए संघर्ष कर रही है। इतना बड़ा और अन्यायपूर्ण फैसला लेने से पहले किसी ने भी मेरी सुरक्षा और मेरी हालत के बारे में नहीं पूछा।”
क्या कहा बिलकिस बानो ने:
बिलकिस बानो ने कहा, “पिछले 20 वर्षों का आघात 15 अगस्त, 2022 को फिर से ताजा हो गया। जब मुझे पता चला कि मेरे जिंदगी तबाह करने वाले और मेरे परिवार के सदस्यों को मुझसे छीनने वाले 11 दोषियों को रिहा कर दिया गया। मेरे पास इसके लिए शब्द नहीं हैं। मैं अब भी सुन्न हूं। मैं गुजरात सरकार से अपील करती हूं, कृपा करके इस फैसले को वापस ले ले। मुझे बिना किसी डर के और शांति से जीने का मेरा अधिकार वापस दे दें।”
क्या था मामला:
गुजरात में 27 फरवरी 2002 को गोधरा में ट्रेन जलाने की घटना के बाद दंगे शुरू हो गये थे। इस दौरान 3 मार्च 2002 को दाहोद के लिमखेड़ा तालुका में बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और परिवार के 14 सदस्यों को भीड़ ने मार डाला था। जिनमें छह के शव कभी नहीं मिले। वहीं 21 जनवरी 2008 में सीबीआई की विशेष अदालत ने इस केस के 11 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
किनकी हुई रिहाई:
आजादी का अमृत महोत्सव के जश्न के मद्देनजर इस साल जून में केंद्र सरकार ने कैदियों की रिहाई को लेकर दिशा निर्देश राज्यों को जारी किए थे। रिहा होने वालों में राधेश्याम शाह, जसवंत नाई, गोविंद नाई, केसर वोहानिया, बाका वोहानिया, राजू सोनी, रमेश चंदना, शैलेश भट्ट, बिपिन जोशी, प्रदीप मोढिया और मितेश भट्ट हैं। एक अन्य दोषी नरेश मोढिया की सुनवाई के दौरान मौत हो गई। इसमें राधेश्याम शाह पेशे से वकील हैं। शाह ने गुजरात सरकार को उनकी रिहाई के आवेदन पर विचार करने के लिए निर्देश देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।