सर्दियों के दस्तक देते ही वायु गुणवत्ता सूचकांक खतरे के निशान से कई गुना ऊपर पहुंच गया है। प्रदूषण की बढ़ी मात्रा ने आर्थिक और सामाजिक गतिविधियों पर रोक तो लगाई ही है, नागरिकों के स्वास्थ्य पर भी इसके गहरे प्रतिकूल प्रभाव पड़े हैं। खतरे का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सभी प्रकार के निर्माण कार्यों पर रोक लगाने सहित स्कूलों और दफ्तरों को बंद करने तक का फैसला लेना पड़ा था। हालांकि प्रदूषण जनित चुनौतियां केवल भारतीय शहरों तक ही सीमित हैं, ऐसा नहीं है। दुनिया के तमाम देशों के बड़े शहर और औद्योगिक केंद्र भी इसी समस्या से ग्रसित हैं।
जलवायु परिवर्तन के इन दुष्परिणामों ने दुनियाभर की सरकारों, वैज्ञानिकों, नीति निर्धारकों सहित आम जनमानस को न केवल चिंतित किया है बल्कि पहले ज्यादा जागरूक भी किया है। जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न हुई पारिस्थितिक चुनौतियों से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर गंभीर प्रयास किए जाने लगे हैं। ये प्रयास सरकारी, गैर सरकारी और निजी सभी स्तरों पर किए जा रहे हैं। इन प्रयासों में मानवीय और तकनीकि दोनों प्रकार से दक्ष लोगों की भारी जरूरत पड़ रही है।
खास बात यह है कि यह क्षेत्र कार्य करने के लिए किसी खास विषय में दक्षता वाले लोगों के लिए ही सीमित नहीं है बल्कि सभी विषयों के विद्यार्थियों जैसे कि भूगोल, जीव विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, रसायन विज्ञान, इंजीनियरिंग, प्रबंधन, चिकित्सा, मानविकी, आइटीआइ, पालिटेक्निक आदि के लिए भी भरपूर संभावनाएं हैं। इस क्षेत्र में लगातार बढ़ते कार्यबल की संभावनाओं को देखते हुए तमाम शैक्षणिक संस्थाओं द्वारा स्नातक, स्नातकोत्तर, डिप्लोमा, सर्टिफिकेट आदि सभी स्तर के पाठ्यक्रम शुरू कर दिए गए हैं। सही दृष्टिकोण और पर्यावरण के क्षेत्र में कार्य करने की रुचि इस क्षेत्र में नाम, पैसा और कार्य संतुष्टि सब कुछ उपलब्ध करा सकती है।
पर्यावरण के क्षेत्र में अवसर
एक अनुमान के मुताबिक प्रदूषण को रोकने और इसके दुष्परिणामों को प्रतिलोम (रिवर्स) करने के क्षेत्र में कार्य करने के लिए देश में कुछ सालों में पूर्णकालिक तौर पर तीन से पांच लाख लोगों की आवश्यकता होगी। इसमें अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में उत्पन्न होने वाले अफसरों के पदों की संख्या शामिल नहीं है। राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद के अनुसार भारत में पारिस्थितिकी चुनौतियों के कारण होने वाला नुकसान 32 अरब डालर से भी ज्यादा है। पर्यावरण विज्ञान के माध्यम से सही दिशा में उठाए गए कदमों से इन समस्याओं का समाधान संभव है। ऐसे युवा जो नौकरी करने के साथ-साथ समाज के लिए कुछ करने की भावना से प्रेरित हैं उनके लिए इस क्षेत्र में तमाम संभावनाएं हैं।
पर्यावरण विज्ञान के विद्यार्थियों के लिए सरकारी, गैर सरकारी, निजी संस्थाओं सहित जलशोधन, रिफाइनरी, उर्वरक आदि उद्यों के साथ साथ पर्यावरण कानून, संचार, पत्रकारिता जैसे क्षेत्र संभावनाओं से युक्त हैं। शिक्षण, प्रबंधन, पर्यावरण शोध, पारिस्थितिकी, स्वास्थ्य क्षेत्र आदि में भी भरपूर मौके हैं। संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण कार्यक्रम, जलवायु से संबंधित अंतर सरकारी पैनल जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में भी नियुक्ति के अनेकों अवसर उपलब्ध हैं।
बारहवीं के बाद मिलेगा प्रवेश
पर्यावरण विज्ञान से संबंधित स्नातक, स्नातकोत्तर, डिप्लोमा और सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम देश के कई संस्थानों में संचालित हैं। कुछ कोर्स में दाखिले के लिए विज्ञान विषयों में बारहवीं पास करना जरूरी है तो कुछ के लिए किसी भी विषय में बारहवीं होना भर काफी है। दिल्ली विश्वविद्यालय के बीई-पर्यावरण प्रौद्योगिकी पाठ्यक्रम में दाखिला संयुक्त प्रवेश परीक्षा के जरिए होता है, जिसमें हर सीट के लिए सौ से ज्यादा उम्मीदवार होते हैं।
कई आइआइटी संस्थानों में इसका स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम मौजूद है। इनमें गेट के स्कोर के आधार पर दाखिला होता है। इसके अलावा पर्यावरण कानून और प्रबंधन से संबंधित पाठ्यक्रम ‘नेशनल ला स्कूल आफ इंडियन यूनिवर्सिटीज’, बंगलुरु और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय से किया जा सकता है। इसके अलावा पर्यावरण अध्ययन में सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम उन विद्यार्थियों के लिए एक बहतरीन पाठ्यक्रम हो सकता हैं जो पर्यावरण से संबंधित मुद्दों के बारे में रुचि रखते हैं।
क्योंकि सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम को विद्यार्थी अपनी उच्च शिक्षा के साथ भी कर सकते हैं और साथ-साथ अपनी पसंद के विषयों की भी पढ़ सकते हैं। सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम की अवधि केवल छह महीने की है। पर्यावरण अध्ययन में सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम में प्रवेश मुख्य रूप से योग्यता के आधार पर होता है लेकिन कुछ संस्थान प्रवेश परीक्षा का आयोजन भी करते हैं। इग्नू योग्यता के आधार पर अपने संस्थान में प्रवेश दे सकता है।
- अविनाश चंद्रा (लोकनीति मामलों के जानकार)