साल 1992 में 73वें संविधान (संशोधन) अधिनियम के माध्यम से जमीनी स्तर पर लोकतंत्र में महिलाओं की राजनीतिक निर्णय लेने की शक्ति को सशक्त बनाने और समावेशी ग्रामीण विकास सुनिश्चित करने के लिए पंचायती राज संस्थाओं (पीआरआइ) में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटों का आरक्षण अनिवार्य किया गया।
इस आरक्षण के साथ ही देश में ‘प्रधान पति’ प्रथा की शुरुआत हुई जिसने धीरे-धीरे विकराल रूप ले लिया। महिला सरपंचों का क्षमता निर्माण व प्रशिक्षण, उनके लिए सलाहकारों की नियुक्ति और प्रौद्योगिकी का उपयोग करके इस प्रथा को समाप्त किया जा सकता है। ये सुझाव केंद्रीय पंचायती राज मंत्रालय की ओर से पूर्व खान सचिव सुशील कुमार की अध्यक्षता में गठित सलाहकार समिति ने दिए हैं।
समिति ने हाल ही में ‘पंचायती राज प्रणालियों और संस्थाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व और उनकी भूमिका में परिवर्तन: प्राक्सी भागीदारी के प्रयासों को समाप्त करना’ विषय पर अपनी रपट मंत्रालय को सौंपी है। समिति ने अपनी रपट में बताया कि ‘प्रधान पति’ या ‘सरपंच पति’ या ‘मुखिया पति’ का मुद्दा छद्म राजनीति के एक ऐसे तरीके का प्रतीक है जो पूरे देश में प्रचलित है।
‘प्रधान पति’ का मतलब केवल पति नहीं होता, बल्कि इसमें वास्तविक राजनीतिक शक्ति का प्रयोग करने वाले पुरुष रिश्तेदार भी शामिल होते हैं, जो आधिकारिक रूप से निर्वाचित महिला नेताओं की ओर से कार्य करते हैं। यह प्रथा तीन दशक पहले (1992) में किए गए संवैधानिक अधिनियम (73वां संशोधन) को कमजोर करती रही है।
‘प्रधान पति’ पर आर्थिक दंड लगाने का भी सुझाव
समिति ने अपनी रपट में कहा कि इस प्रथा को समाप्त करने के लिए कई स्तर पर काम किए जाने की आवश्यकता है। समिति द्वारा अपनी रपट में महिला सरपंचों के क्षमता निर्माण व प्रशिक्षण और मार्गदर्शन जाेर दिया है। इसके अलावा महिला निर्वाचित प्रतिनिधि के सशक्तिकरण, उनके पढ़ाई के स्तर में सुधार और ‘प्रधान पति’ पर आर्थिक दंड व जुर्माने का प्रावधान करने की जरूरत है।
समिति ने कहा कि महिला सरपंचों को बैठकों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से बैठक की कार्यवाही को लिखित रूप में जारी करना चाहिए। समिति ने अपनी रपट में कहा कि इस प्रथा की समाप्ति के लिए सबसे जरूरी है सामाजिक रूप लोगों के जागरूक किया जाए।
समिति ने कहा कि इसके लिए व्यापक रूप से विभिन्न मीडिया का उपयोग किया जाए। रपट में महिला सरपंचों के लिए ‘मेंटरशिप’ कार्यक्रम की भी सिफारिश की गई है। इसके तहत अनुभवी महिला नेताओं को शामिल किया जाए ताकि वे महत्वाकांक्षी और मौजूदा महिला नेताओं, खासकर पहली बार चुनी गईं महिला सरपंचों और महिला प्रधानों के साथ अपने अनुभव साझा कर सकें।
देश में 15.03 लाख निर्वाचित महिला प्रतिनिधि
देश के 21 राज्यों और दो UTs ने पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटों का आरक्षण के संवैधानिक प्रावधान का विस्तार किया है और महिलाओं के लिए 50% की सीमा तक आरक्षण बढ़ाया है। देश में पंचायती राज संस्थाओं के सभी तीन स्तरों में लगभग 2.63 लाख पंचायतों में, 32.29 लाख निर्वाचित प्रतिनिधियों (ईआर) में से लगभग 15.03 लाख यानी लगभग 46.6 फीसद निर्वाचित महिला प्रतिनिधि (ईडब्लूआर) हैं।
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