कृषि कानूनों के खिलाफ गणतंत्र दिवस पर उग्र हुए प्रदर्शनों का किसान संगठनों पर उल्टा असर पड़ सकता है। जबकि केंद्र सरकार अब इस मुद्दे को उठाकर संसद में अपना बचाव करने की तैयारी में है। माना जा रहा है कि लाल किले और दिल्ली के अहम इलाकों में हुए हिंसक प्रदर्शन के बाद केंद्र आंदोलन में शामिल उग्रवादियों के मुद्दे को भी भुनाएगा।
एक सरकारी सूत्र ने बताया- “हमारी रणनीति आगे जरूर बदलेगी। कोई भी बल प्रयोग कर लाल किले में घुसकर अपना झंडा लगाकर यह नहीं कह सकता कि आइए कानून के बारे में बात करें। अगर किसान नेता कृषि कानूनों को लेकर हमारे साथ समझौता कर लेते हैं और यह (आंदोलनकारी) इसे मानने से इनकार कर देते हैं, तब यह नेता क्या करेंगे। आज की घटनाओं ने दिखा दिया कि उनकी याचिका सुनी भी न जाए।”
गौरतलब है कि सरकार किसान संगठनों को यह भी प्रस्ताव दे चुकी थी कि वह इन तीनों कृषि कानूनों को कुछ समय के लिए रोक देगी, हालांकि तब किसानों ने इसे मानने से इनकार कर दिया था। अब दिल्ली में हुई हिंसा के बाद सरकार अपने प्रस्ताव का उदाहरण देते हुए खुद के बचाव में उतर सकती है। बता दें कि ताजा घटनाओं से किसान यूनियनों और पंजाब की कांग्रेस सरकार ने भी खुद को अलग कर लिया है और हिंसा की निंदा की है। ऐसे में सरकार इस बात का भी फायदा उठाएगी।
सूत्रों ने यह भी कहा कि ट्रैक्टर परेड के गड़बड़ हो जाने से अब किसान संगठनों पर दबाव है, जिन्हें यह साबित करना होगा कि मध्यस्थ के तौर पर सब उनके नियंत्रण में है। एक अन्य सरकारी सूत्र ने कहा, “सरकार ने अब तक सभी मुद्दों पर काफी लचीला रुख अपनाया है और कई सारे प्रस्ताव भी पेश किए, जिन्हें किसानों ने नकार दिया। लेकिन अब हालात बदल गए हैं और कुछ शरारती तत्व बातचीत में व्यवधान डालने की कोशिशों में हैं, हम उम्मीद करते हैं कि किसान नेता इस मौके को मुद्दों के हल के लिए इस्तेमाल करेंगे।”
देशविरोधी करार दिया जा रहा किसानों का आंदोलन: किसान आंदोलन में हुई हिंसा के मुद्दे पर अब तक केंद्र सरकार के किसी मंत्री का बयान नहीं आया है। पहले ही भाजपा के कई नेता किसानों के प्रदर्शनों में माओवादियों और खालिस्तानियों के घुसने का आरोप लगा चुके हैं। हालांकि, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की ओर से रोके जाने के बाद अब तक ज्यादातर नेता इस मुद्दे पर शांत थे। लेकिन लाल किले पर हुई हिंसा के बाद भाजपा अपनी नीति बदलने में जुट गई है। पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने शाम को ही कई वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठक बुलाई थी।
सीनियर नेता पी मुरलीधर राव ने पार्टी का रुख बदलने का इशारा करते हुए कहा, “हमें पहले लग रहा था कि यह आंदोलन सरकार की ओर से सुलह के लिए पेश किए गए फॉर्मूले के खिलाफ है। लेकिन यह आंदोलन तो भारतीय गणतंत्र और उसकी आत्मा के खिलाफ ही प्रतीत होता है। अभी जो भी हुआ, वह स्वतंत्रता और विश्वास का उल्लंघन है।” इसी तरह भाजपा महासचिव कैलाश विजवर्गीय ने कहा- “दिल्ली में आंदोलन के नाम पर क्या हो रहा है? क्या देश के किसान ऐसा कर सकते हैं?” इससे पहले भाजपा नेता राम माधव और प्रवक्ता संबित पात्रा ने भी हिंसा के मुद्दे को उठाते हुए कहा था कि जिनको हम अन्नदाता कहते रहे थे, वे उग्रवादी साबित हुए।