वैश्विक मंदी का असर भारत पर भी पड़ रहा है, जिसकी वजह से खासकर इंजीनियरिंग के क्षेत्र में कई कंपनियां भर्ती रोक रही हैं। इसका सीधा असर आइआइटी जैसे संस्थानों से निकलने वाले छात्रों पर पड़ रहा है। ‘स्टार्टअप’ में भी पूंजी कम आ रही है, जिसके कारण नौकरियों की संख्या कम हो रही है। जैसे-जैसे ब्याज दरें बढ़ रही हैं, ‘स्टार्टअप’ के लिए कर्ज लेना अधिक महंगा हो रहा है, जिससे उनके लिए पूंजी जुटाना मुश्किल हो रहा है। कई स्टार्टअप को पूंजी की कमी के कारण कर्मचारियों की छंटनी करनी पड़ी है।
देश में बेरोजगारी की समस्या एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है। वैश्विक परिस्थितियों के चलते भारत के नौकरी बाजार की हालत भी खराब है, जिसका असर छात्रों के ‘प्लेसमेंट’ या उनके रोजगार पर देखने को मिल रहा है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान यानी आइआइटी को भारत के सबसे प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक माना जाता है, जहां प्रवेश पाना बेहद मुश्किल होता है। यहां पढ़ाई करने का मतलब है सुनहरे भविष्य की गारंटी। मगर हाल के वर्षों में आइआइटी से निकलने वाले कई छात्रों को भी नौकरी नहीं मिल पा रही है। इस वर्ष यह आंकड़ा 38 फीसद तक पहुंच गया है। यह निश्चित रूप से चिंता का विषय है।
दरअसल, अर्थव्यवस्था में चल रही मंदी, छात्रों में कौशल का अभाव, आइआइटी जैसे बड़े संस्थानों में पढ़ रहे छात्रों की ऊंची अपेक्षाएं, इंजीनियरिंग स्नातकों की बढ़ती संख्या तथा आइआइटी छात्रों में गैर-तकनीकी कौशल की कमी आदि कुछ प्रमुख कारण हैं, जो छात्रों को नौकरी प्राप्त करने में बाधा बन रहे हैं। वर्ष 2022 में देश भर के सभी तेईस आइआइटी के कुल 17,900 छात्र ‘प्लेसमेंट’ या रोजगार के लिए पंजीकृत हुए थे, लेकिन इनमें से केवल 14,490 छात्रों का परिसर में चयन या ‘कैंपस प्लेसमेंट’ हो पाया। यानी 19 फीसद आइआइटी इंजीनियरों को नौकरी नहीं मिल पाई। 2023 में नौकरी के लिए पंजीकृत होने वाले कुल आइआइटी छात्रों में से इक्कीस फीसद को नौकरी नहीं मिल सकी। इस वर्ष 38 फीसद आइआइटी इंजीनियरों को नौकरी नहीं मिल पाई। हालांकि आइआइटी से स्नातक करने वाले बहुत से छात्र नौकरी के लिए खुद को पंजीकृत नहीं कराते हैं, क्योंकि वे स्नातक के आगे की शिक्षा, अनुसंधान या उद्यमिता का विकल्प चुनते हैं। इसलिए ‘प्लेसमेंट’ दरें केवल उन छात्रों का प्रतिनिधित्व करती हैं, जिन्होंने ‘कैंपस प्लेसमेंट’ के लिए पंजीकरण कराया था।
पूरी दुनिया को 2020 से मंदी का सामना करना पड़ रहा है। यह मंदी कई वजहों से आई है। कोविड-19 महामारी ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को व्यापक रूप से बाधित किया, जिससे व्यापार और पर्यटन प्रभावित हुए, आपूर्ति शृंखला में व्यवधान आया। रूस-यूक्रेन युद्ध ने र्इंधन की कीमतों, मुद्रास्फीति में वृद्धि और वैश्विक वित्तीय बाजारों में अस्थिरता पैदा की है। इससे वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि और उत्पादों की कमी हुई है। कई देशों में मुद्रास्फीति बढ़ रही है, जिससे लोगों की क्रयशक्ति कम हो रही है। मुद्रास्फीति का मुकाबला करने के लिए कई केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरों में वृद्धि की है, जिससे कर्ज लेना महंगा हो गया है। इस मंदी से दुनिया भर के देशों में आर्थिक विकास धीमा हुआ है, बेरोजगारी और गरीबी बढ़ी है।
हालांकि सभी देश मंदी से समान रूप से प्रभावित नहीं हुए हैं। कुछ देश, जैसे चीन, अपेक्षाकृत मजबूत प्रदर्शन कर रहे हैं, जबकि यूरोप के कुछ देश अधिक गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं। मंदी हमेशा नहीं रहती है, आखिरकार अर्थव्यवस्थाएं ठीक हो जाएंगी और विकास फिर से शुरू हो जाएगा। लेकिन यह कहना अभी मुश्किल है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था कब पूरी तरह से मंदी से उबर पाएगी। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसा 2024 या 2025 तक हो सकता है। वैश्विक मंदी का असर भारत पर भी पड़ रहा है, जिसकी वजह से खासकर इंजीनियरिंग के क्षेत्र में कई कंपनियां भर्ती रोक रही हैं। इसका सीधा असर आइआइटी जैसे संस्थानों से निकलने वाले छात्रों पर पड़ रहा है। नवउद्यमों या ‘स्टार्टअप’ में भी पूंजी कम आ रही है, जिसके कारण नौकरियों की संख्या कम हो रही है। जैसे-जैसे ब्याज दरें बढ़ रही हैं, ‘स्टार्टअप’ के लिए कर्ज लेना अधिक महंगा हो रहा है, जिससे उनके लिए पूंजी जुटाना मुश्किल हो रहा है। कई नवउद्यम को पूंजी की कमी के कारण कर्मचारियों की छंटनी करनी पड़ी है। इसमें पूंजी कम होने से नए उत्पादों और सेवाओं के विकास में बाधा उत्पन्न हो रही है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों में पढ़ रहे कुछ छात्रों को अपनी योग्यता और कौशल के अनुरूप वेतन और पदवी मिलने की अधिक अपेक्षा रहती है। इसलिए वे कम वेतन वाली नौकरियां करने को तैयार नहीं होते हैं। इसके चलते भी उन्हें नौकरी मिलने में देरी होती है। साथ ही, भारत में इंजीनियरिंग कालेजों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है, जिसके परिणामस्वरूप इंजीनियरिंग स्नातकों की संख्या भी बढ़ गई है, लेकिन उतनी तेजी से नौकरियां नहीं बढ़ पा रही हैं। अक्सर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों के कई छात्रों में संचार, समूह कार्य और समस्या समाधान जैसे आवश्यक और गैर-तकनीकी कौशल की कमी देखी जाती है, जो उन्हें नौकरी पाने से रोक सकती है। पिछले कुछ वर्षों में छात्रों ने इंजीनियरिंग के अलावा अन्य क्षेत्रों जैसे कि कला, डिजाइन और उद्यमिता में रुचि दिखाई है। यह आइआइटी में कंप्यूटर विज्ञान और इंजीनियरिंग जैसे पारंपरिक रूप से मजबूत ‘प्लेसमेंट’ वाले विभागों में नौकरी को प्रभावित कर सकता है।
हालांकि ऐसा नहीं कि सभी छात्रों को नौकरी नहीं मिल पा रही। कई छात्रों को, खासकर उच्च मांग वाले क्षेत्रों, जैसे कंप्यूटर विज्ञान और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के क्षेत्र में अच्छी नौकरियां मिल रही हैं, लेकिन जो छात्र नौकरी नहीं ढूंढ़ पा रहे हैं, उनके लिए यह निश्चित रूप से एक चुनौतीपूर्ण स्थिति है। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए कुछ समाधान हो सकते हैं। आइआइटी संस्थानों को कंपनियों के साथ बेहतर संबंध बनाने चाहिए, ताकि छात्रों को रोजगार के अधिक अवसर मिल सकें। आइआइटी को अपने पाठ्यक्रम में उद्यमिता शिक्षा को भी शामिल करना चाहिए। इससे छात्रों को व्यवसाय शुरू करने के मूल सिद्धांतों, बाजार अनुसंधान, वित्तीय प्रबंधन और कानूनी पहलुओं के बारे में जानकारी मिलेगी। आइआइटी को उद्योगपतियों, उद्यमियों और सफल स्टार्टअप संस्थापकों के साथ छात्रों को जोड़ने के लिए ‘नेटवर्किंग’ तैयार करना चाहिए।
छात्रों को अनुसंधान और विकास में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। यह उन्हें नए विचारों और नवाचारों को विकसित करने में मदद कर सकता है, जो उनके व्यवसायों के लिए सफलता की कुंजी हो सकते हैं। उद्यमिता को प्रोत्साहित करके आइआइटी जैसे बड़े संस्थान न केवल छात्रों को नौकरी ढूंढ़ने में मदद कर सकते हैं, बल्कि वे भारत को एक नवाचारी और उद्यमशील अर्थव्यवस्था बनाने में भी योगदान दे सकते हैं। कुछ छात्र नौकरी करना पसंद करते हैं, लेकिन जो छात्र अपना खुद का व्यवसाय शुरू करना चाहते हैं, उनके लिए आइआइटी उन्हें आवश्यक समर्थन और संसाधन प्रदान कर सकते हैं। आइआइटी, छात्रों को सशक्त बनाने और उन्हें सफल होने के लिए आवश्यक उपकरण प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि भारत में इंजीनियरिंग की नौकरी का बाजार लगातार बदल रहा है। नई तकनीकों के उभरने के साथ-साथ कुछ कौशलों की मांग बढ़ रही है, जबकि अन्य कौशल कम प्रासंगिक हो सकते हैं। इसलिए आइआइटी इंजीनियरों के लिए महत्त्वपूर्ण है कि वे नवीनतम रुझानों से अद्यतन रहें और अपने कौशल को विकसित करते रहें, ताकि वे नौकरी बाजार में प्रतिस्पर्धी बने रह सकें।